सार

राजनीति में ऊंट कब किस करवट बैठे, कोई नहीं जानता! ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं, जब एक ही परिवार के दो लोग आमने-सामने चुनाव लड़ते हैं। यह मामला थोड़ा अलग है, क्योंकि यहां मां-बेटी दूसरी बार आमने-सामने हैं। इस बार बाकी चारों बेटियां भी मां के खिलाफ प्रचार-प्रसार करेंगी।

गरियाबंद, छत्तीसगढ़. राजनीति जो न कराए, वो कम है! सत्ता का लालच अपनों के बीच भी जंग करा देता है। यह मामला भी इसी का उदाहरण है। गरियाबंद के मुंगझर पंचायत में सरपंच के चुनाव में एक बार फिर मां-बेटी आमने-सामने हैं। पिछले चुनाव में मां से 6 वोटों से हारी बेटी ने इस बार रणनीति बदली है। उसने अपनी बाकी चारों बहनों को भी अपने पक्ष में प्रचार-प्रचार के लिए उतार लिया है। गांववालों को समझ नहीं आ रहा कि वे किसे जिताएं और किसे हराएं? हालांकि गांववाले मां को जितना चाहते हैं, लेकिन बेटी भी एक प्रत्याशी के तौर पर उन्हें पसंद है। खैर, यह अलग बात है कि दिनभर एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव-प्रचार करने वालीं मां-बेटी रात को एक साथ होती हैं।


बेटी को भरोसा, इस बार मां को हराकर मानेगी..
सुशीला बाई करीब 20 साल से गांव की सरपंच हैं। उनकी गांव में काफी इज्जत है। इसकी वजह, उन्होंने अपने गांव में काफी विकास कार्य कराए हैं। यही वजह है कि गांववाले उन्हें पसंद करते हैं। पिछले चुनाव में सुशीला बाई ने अपनी बेटी मंजू को 6 वोटों से हराया था। इस बार मंजू को उम्मीद है कि वे मां को हरा देंगी। उधर, सुशीला बाई को भरोसा है कि उन्होंने गांव में जो विकास कार्य कराए हैं, उन्हें देखते हुए वे ही जीतेंगी।

इस बार मंजू ने मां को घेरने नई रणनीति बनाई है। उन्होंने अपनी चार बहनों को भी अपने सपोर्ट में कर लिया है। मंजू की चारों बहनें भी इसी गांव में रहती हैं और रिश्ते में उनकी देवरानी लगती हैं। मंजू का मानना है कि उनकी बहनें मां को हराने में उनकी सबसे बड़ी ताकत बनेंगी।