सार

कर्मबीर उर्फ टिंकू कहता है कि जब तक शरीर ने काम किया, चिट्टा पीया। अब शरीर कमजोर हो गया। काम कर नहीं पाता। अब कैमिकल का नशा करता है। जो अपेक्षाकृत सस्ता है। यह जानलेवा नशा है। यह बात वह भी जानता है। लेकिन, फिर भी जब तलब उठती है तो खुद को रोक नहीं पाता।

अमृतसर। जी, साब मैंने नशा किया है। मैं अभी-अभी नशा करके आया हूं। तभी आपसे बात कर रहा हूं। नशा ना करूं तो बात भी नहीं कर पाता। उठा ही नहीं जाता। सारा शरीर ऐंठ जाता है। भयानक पीड़ा होती है। ऐसा लगता है कि कलेजा मुंह से बाहर आ जाएगा। एक सेकेंड भी नशे के बिना नहीं रह सकता। मकबूलपुर कॉलोनी के इस युवक का नाम है कर्मबीर उर्फ टिंकू। उम्र सिर्फ 28 साल है। लेकिन, नशे ने इसकी हालत इतनी खराब कर दी कि बूढ़ा-सा नजर आने लगा है। जितना कमाता है, सब नशे में लगा देता है। नशा किस तरह से विधवा कॉलोनी के युवाओं को बर्बाद कर रहा है- कर्मबीर इसका एक उदाहरण भर है। पढ़ें Asianet News Hindi की रिपोर्ट का Part 4...

कर्मबीर उर्फ टिंकू कहता है कि जब तक शरीर ने काम किया, चिट्टा पीया। अब शरीर कमजोर हो गया। काम कर नहीं पाता। अब कैमिकल का नशा करता है। जो अपेक्षाकृत सस्ता है। यह जानलेवा नशा है। यह बात वह भी जानता है। लेकिन, फिर भी जब तलब उठती है तो खुद को रोक नहीं पाता। उसने बताया कि चिट्टा खरीदने के लिए मेरे पास पैसे नहीं है। इसलिए सस्ता नशा खरीदता हूं। यह भी पता है कि मैं हर रोज मौत के नजदीक जा रहा हूं। मौत तो बर्दाश्त हो सकती है। नशे के बिना होने वाली पीड़ा बर्दाश्त से बाहर हो जाती है। यही पीड़ा मुझे बार बार नशा खरीदने के लिए मजबूर करती है। 

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बाइक मैकेनिक था, अब घर के बर्तन तक बेच दिए
नशा यहां कितना खतरनाक है? कैसे नशा युवाओं को तबाह कर रहा है। उन्हें अपने चंगुल में फंसा कर कैसे मरने के लिए मजबूर करता है, कर्मबीर को देखकर उसकी भयानकता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। मजदूरी करने वाले कर्मबीर ने बताया कि वह बाइक मैकेनिक था। ठीक-ठाक पैसे कमा लेता था। रहन-सहन ठीक था। जब नशे की लत पड़ी तो अपने घर के बर्तन तक बेच दिए। कुछ नहीं है मेरे पास। थोड़ा बहुत काम मिलता है। उससे जो भी पैसा मिलता है, मैं नशे पर खर्च कर देता हूं। 

नशे की ऐसे लत पड़ी और चंगुल में फंस गया
टिंक कहता है कि चार पहले दोस्तों के कहने पर एक बार चिट्टे का नशा किया था। आज भी चार साल पहले का वह दिन नहीं भूलता, जब दोस्तों के कहने पर चिट्टा सूंघा था। एक बार तो लगा कि दुनिया ही बदल गई। इतना अच्छा लगा कि दिनभर खुश रहा। रात को ठीक से सोया। सुबह उठा तो थोड़ा सिर में दर्द था। लगा कि ठीक हो जाएगा। दोपहर होते-होते मुंह सूखने लगा। ऐसा महसूस हो रहा था- शरीर ठीक से काम नहीं कर पा रहा है। वह समझ नहीं पा रहा था हुआ क्या? तभी नशा करने वाला एक दोस्त आया, एक बार फिर उसने पुड़िया दी। कोई पैसा नहीं लिया। 

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नशा लेते ही सारे दर्द भूल जाता था
मैंने उसे सूंघ लिया। मैं कुछ देर बाद ही ठीक हो गया। महसूस हुआ कि शरीर में नई ऊर्जा आ गई है। पूरा दिन आराम से गुजर गया। यह क्रम सप्ताहभर चला। समझ ही नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है? नशा लेते ही सब कुछ भूल जाता था। पता नहीं था नशा उसे इस तरह से पकड़ लेगा कि निकल ही नहीं पाएगा। वह समझ रहा था कि सब कुछ ठीक है। झटका जब लगा, तब नशा देने वाला दोस्त भी पैसे मांगने लगा। 300 रुपए में एक पुड़िया मिलती थी। दिनभर इससे काम चल जाता था।

पहला नशा सस्ता मिला, फिर रेट बढ़ाए, खून तक बेचना पड़ा
अब खर्च बढ़ गया तो घर पर इसका असर पड़ने लगा। पहले तो वह झूठ बोलता रहा। लेकिन बाद में घर में सब पता चल गया। पत्नी ने खूब झगड़ा किया। मगर मैं नशे का आदी हो चुका था। छोड़ नहीं सकता था। सालभर पुड़िया से काम चलता रहा। अब धीरे-धीरे एक पुड़िया कम पड़ने लगी। डेढ़ पुड़िया लेने लगा। तस्करों ने रेट बढ़ा दिए। जो पुड़िया पहले 300 रुपए में मिलती थी, वह 400 और अब तो 500 रुपए प्रति पुड़िया मिलती है। अब पैसे नहीं हैं। नशा जरूर करना है। इसलिए 20 रुपए का नशीला कैमिकल खरीदता हूं। इससे काम चल रहा है। मैंने नशे के लिए अपना खून तक बेचा है।

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नशे ने घर उजाड़ा, बेटी मरी, पत्नी आजतक नहीं लौटी
नशे की लत से काम खत्म हो गया। बेटी बीमार हुई तो इलाज नहीं करा पाया। उसकी मौत हो गई। एक दिन पत्नी भी घर से गई, आज तक वापस नहीं आई। क्या कभी इलाज नहीं कराया? इस सवाल पर उसने कहा कि कई बार कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। क्योंकि नशे के बिना रहा नहीं जाता। हद से हद वह एक दिन नशे के बिना रह सकता है। इसके बाद उसे नशा किसी भी कीमत पर चाहिए। 

यहां पुलिस नहीं, नशा तस्करों की चलती है
टिंकू ने बताया कि निश्चित ही नशे ने उसे तबाह कर दिया है। वह इस बात को जानता है। वह नहीं चाहता है कि कोई यह नशा करे। क्योंकि जिसे एक बार लग गया, उसे मौत के बाद ही इस से निजात मिलती है। कर्मबीर के पास ही बैठे गुरकिरत ने बताया कि बहुत बार समझा लिया। लेकिन मानता ही नहीं है। क्या करें। अब कहना ही छोड़ दिया। गुरकिरत ने बताया कि यहां किसी पुलिस या प्रशासन की नहीं चलती। यहां चलती है सिर्फ तस्करों की। पता नहीं उनके पास कौन सी पावर है। 

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तस्करों के आगे भीगी बिल्ली बने रहते हैं नशेड़ी
पुलिस को यदि तस्करों की शिकायत करें तो उन्हें पता चल जाता है। वह धमकाते हुए सीधे घर में घुस जाते हैं। नशे के आदी उन्हें सस्ते में अपना कीमती सामान, यहां तक कि अपना घर और दुकान तक बेच देते हैं। कर्मबीर जैसे नशा करने वाले उनके इशारे पर काम करते हैं। यह किसी के साथ भी कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन तस्करों के सामने हमेशा ही भीगी बिल्ली बने रहते हैं। 

तस्करों के तार पाकिस्तान से जुड़े, वहीं से नशा आता है
गुरकिरत ने बताया कि नशा तस्करों ने अपना जाल यहां बिछा रखा है। इस कॉलोनी में ही नहीं, बल्कि आसपास के इलाके में भी उनका राज चलता है। इनके तार पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं। वहां से यहां नशा आता है। इसके बाद इसे हमारे जैसे इलाकों में सप्लाई कर दिया जाता है। इस इलाके को नशा मुक्त करने के लिए योजना बनानी होगी। इसमें नशा करने वालों को नशा छुड़ाने के लिए काम करना होगा। जो किशोर हैं, उन्हें नशे से कैसे बचाया जा सकता है, इस दिशा में काम करना होगा। 

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बच्चों को नशे से बचाने के प्रयास करने होंगे
जो परिवार नशे की वजह से बर्बाद हो गए हैं, उनके पुनर्वास के लिए काम करना होगा। जो परिवार नशे की वजह से तबाह हो गए, उनके बच्चों की शिक्षा की ओर ध्यान देना होगा। जिससे इस इलाके से नशा भगाया जा सके। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक यहां के युवा कर्मबीर की तरह नशे की चपेट में आते ही रहेंगे। उन्हें नशा, नशा के तस्करों से तब तक कोई नहीं बचा सकता।

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