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Mahashivratri 2022: भगवान शिव को क्यों चढ़ातें है भांग, धतूरा, क्यों हैं महादेव की तीन आंखें?

उज्जैन. आज (1 मार्च, मंगलवार) महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2022) है। ये भगवान शिव की पूजा का पर्व है। भगवान शिव का एक नाम भोलेनाथ भी है। भगवान शिव का ये नाम इसलिए भी है क्योंकि उनके जितना सरल और सौम्य स्वरूप किसी अन्य देवता का नहीं है। भगवान शिव श्माशन में रहते हैं। भांग-धतूरे का सेवन करते हैं। बैल उनका वाहन है। ये सभी चीजें उन्हें अन्य देवताओं से अलग दर्शाती हैं। भगवान शिव का ये स्वरूप दिखने में भले ही साधारण लगे, लेकिन इसके पीछे लाइफ मैनेजमेंट के अनेक सूत्र छिपे हैं। इन सूत्रों को अपने जीवन में उतारकर हम कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं। महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2022) के मौके पर हम आपको शिवजी से जुड़े इन लाइफ मैनेजमेंट सूत्रों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है… 

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Asianet News Hindi
Published : Mar 01 2022, 08:01 AM IST
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भगवान शिव को कुछ ऐसी चीजें चढ़ाई जाती हैं जिससे आम तौर पर लोग दूर रहते हैं जैसे भांग, धतूरा। भांग एक नशीला पदार्थ है जबकि धतूरे में विष होता है। ये दोनों ही चीजें मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। भगवान शिव को ये चीजें अर्पित करने का अर्थ यही होता है कि जिन चीजों से मानव जीवन को खतरा हो, उनसे दूरी ही बनाकर रखनी चाहिए। नहीं तो संकट आने में दूर नहीं लगती। भगवान शिव इन चीजों को स्वयं में समाहित कर मानव जीवन की रक्षा करते हैं। 
 

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त्रिशूल भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र है। यदि त्रिशूल का प्रतीक चित्र देखें तो उसमें तीन नुकीले सिरे दिखते हैं। ये तीन प्रवृत्तियां का प्रतीक है- सत, रज और तम। सत मतलब सात्विक, रज मतलब सांसारिक और तम मतलब तामसी अर्थात निशाचरी प्रवृति। त्रिशूल के तीन नुकीले सिरे इन तीनों प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। त्रिशूल के माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देते हैं कि इन गुणों पर हमारा पूर्ण नियंत्रण हो। यह त्रिशूल तभी उठाया जाए जब कोई मुश्किल आए। तभी इन तीन गुणों का आवश्यकतानुसार उपयोग हो।
 

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देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था। समुद्र मंथन का अर्थ है अपने मन को मथना। मन में असंख्य विचार और भावनाएं होती हैं, उन्हें मथ कर निकालना और अच्छे विचारों को अपनाना। विष बुराइयों का प्रतीक है। शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया। उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। शिव का विष पीना हमें यह संदेश देता है कि हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। 
 

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भगवान शंकर का वाहन नंदी यानी बैल है। बैल बहुत ही मेहनती जीव है। वह शक्तिशाली होने के बावजूद शांत एवं भोला होता है। वैसे ही भगवान शिव भी परमयोगी एवं शक्तिशाली होते हुए भी परम शांत एवं इतने भोले हैं कि उनका एक नाम भोलेनाथ भी जगत में प्रसिद्ध है। भगवान शंकर ने जिस तरह कामदेव को भस्म कर उस पर विजय प्राप्त की थी, उसी तरह उनका वाहन भी कामी नही होता। उसका काम पर पूरा नियंत्रण होता है। साथ ही नंदी पुरुषार्थ का भी प्रतीक माना गया है। 
 

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चंद्रमा की किरणें शीतलता प्रदान करती हैं। लाइफ मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से देखा जाए तो भगवान शिव कहते हैं कि जीवन में कितनी भी बड़ी समस्या क्यों न आ जाए, दिमाग हमेशा शांत ही रखना चाहिए। यदि दिमाग शांत रहेगा तो बड़ी से बड़ी समस्या का हल भी निकल आएगा। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है। मन की प्रवृत्ति बहुत चंचल होती है। भगवान शिव का चंद्रमा को धारण करने का अर्थ है कि मन को सदैव अपने काबू में रखना चाहिए। 
 

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धर्म ग्रंथों के अनुसार, सभी देवताओं की दो आंखें हैं, लेकिन एकमात्र शिव ही ऐसे देवता हैं जिनकी तीन आंखें हैं। तीन आंखों वाला होने के कारण इन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहते हैं। आंखों का काम होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में आने वाली मुसीबतों से सावधान करना। जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं, जिन्हें हम समझ नहीं पाते। ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में हमें सही-गलत की पहचान कराते हैं। यह विवेक अत:प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस जरूरत है उसे जगाने की।
 

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भस्म (राख) शिव का प्रमुख वस्त्र भी है, क्योंकि शिव का पूरा शरीर ही भस्म से ढंका रहता है। शिव का भस्म रमाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक कारण भी हैं। भस्म की एक विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसका मुख्य गुण है कि इसको शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। भस्म त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम करती है। भस्मी धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालना ही मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है।
 

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