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संघर्ष के दिनों से उस मनहूस घड़ी को आज भी नहीं भूले हैं रवि किशन, बोले-खूब रोया था
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रवि किशन के पिता चाहते थे कि वो दूध का व्यापार करें लेकिन उनका मन फिल्मों में ज्यादा लगता था और बचपन से ही एक्टिंग करना चाहते थे। इस बात पर ही उनके पिता ने बेल्ट से पिटाई की थी और कहा था कि ये क्या तुम नचनिया बन रहे हो।
जब रवि 17 साल के हुए तो उनकी मां ने उन्हें 500 रुपए दिए और वो भागकर मुंबई आ गए। यहां वो एक चॉल में रहकर फिल्मों में काम ढूंढने लगे। रवि ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर पिता जी उनकी पिटाई ना करते तो आज वो एक गुंडा या पुरुष वेश्या बन जाते।
फिल्म 'तेरे नाम' के लिए रवि किशन ने सर्वश्रेष्ठ सपोर्टिंग एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था। वहीं, 2005 में आई उनकी भोजपुरी फिल्म 'कब होई गवनवा हमार' को सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। वो ऐसे एक्टर बने जिन्हें एक साथ हिंदी और भोजपुरी का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त फिल्मों का हिस्सा होने का गौरव मिला।
एक इंटरव्यू में रवि किशन ने अपने संघर्षों के दिनों के बारे में बात करते हुए बताया था कि संघर्ष के दिनों में उनकी किसी ने मदद नहीं की थी। उन्होंने बताया था कि उनकी बेटी जब पैदा हुई थी, उस वक्त उनके पास अस्पताल का बिल भरने तक के पैसे नहीं थे। उन्होंने ब्याज पर रुपए लेकर अस्पताल का बिल भरा था।
फिल्म इंडस्ट्री के बुरे अनुभव को लेकर रवि किशन ने एक किस्सा भी शेयर था। रवि ने कहा था कि वो बारिश में भीगते हुए रिकॉर्डिंग स्टूडियो पहुंचे थे और वहां उन्होंने 7-8 घंटे की रिकॉर्डिंग की और जब उन्होंने प्रोड्यूसर से चेक मांगा तो वो बोला कि फिल्म में काम दे दिया ये क्या कम है...चेक मत मांगना नहीं तो रोल काट दूंगा।
रवि बताते हैं कि प्रोड्यूसर की ये बात सुनकर वो हैरान रह गए थे। उन्हें उस वक्त जमीन छुड़ाने के लिए पैसों की सख्त जरूरत थी। वो बाइक पर बैठकर बारिश में भीगते हुए वापस आए। आसमान को देखकर वो खूब रोए था। उस मनहूस दिन को वो आजतक कभी नहीं भूल पाए हैं।