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ड्राइवर के लेट होने पर पैदल मंत्रालय निकल लिए थे रघुवंश बाबू, देर रात तक खाली ऑफिस में पढ़ते थे फाइलें

पटना। बिहार के कद्दावर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) राजनीति में जमीन से जुड़े नेताओं में गिने जाते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जीवनभर कभी भी अपनी विचारधारा से समझौता नहीं किया। राजनीतिक जीवन में कई बड़े पदों पर रहे। मगर राजनीतिक जीवन पूरी तरह से बेदाग है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (PM Manmohan Singh) की यूपीए (UPA) सरकार में उन्हें मानरेगा के शिल्पकारों में गिना जाता है। संसदीय परंपरा में वैशाली से प्रतिनिधित्व करने वाले रघुवंश बाबू विचारधारा के बावजूद अलग-अलग दलों में सम्मान से देखा जाता था। इसकी वजह उनकी सादगी, स्पष्टवादी छवि और काम के प्रति बेहद ईमानदार होना है। 

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Asianet News Hindi
Published : Sep 14 2020, 12:12 PM IST
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कई लोग रघुवंश बाबू के निधन के बाद उनकी यादें साझा कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार दिबांग ने भी रघुवंश से जुड़े संस्मरण को ट्विटर पर साझा किया है। दिबांग (Debang) ने बताया कि ऊंचे पद पर रहने के बावजूद उनका व्यक्तित्व बेहद साधारण था। उन्होंने एक किस्सा साझा करते हुए लिखा, "चार दिन पहले उनसे बात हुई। बोले ठीक हैं, दो दिन में एम्स से निकलेंगे। कुछ दिन दिल्ली रहेंगे। बोले, बात करनी है। मिलने की बात हुई।" 

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दिबांग ने लिखा, "दो दिन पहले मैसेज आया हालत बिगड़ी है। अब नहीं रहे रघुवंश जी। उनको लंबे समय से जानता था। पटना जाता तो मिलता। मौजूदा राजनीति और पुरानी यादों पर खूब बात होती।"

(फोटो : दिबांग के ट्विटर पेज से साभार)

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दिबांग ने लिखा, "मंत्री थे तो कई बार नौ-बजे का बुलेटिन खत्म कर उनसे मिलने जाता। पूरा मंत्रालय बंद। सिर्फ मंत्रीजी अपने कमरे में फाइल पढ़ते मिलते। मंत्री होकर इतना पढ़ते हैं? कहते, फाइल पढ़ना ज़रूरी है। अफसर तो कहते हैं सर आप साइन कर दें। तभी, आंकड़े उनको इकाई और दहाई तक याद रहते। ऐसे थे अपने रघुवंशजी।" फोटो: रघुवंश का अंतिम दर्शन करते लोग 

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रघुवंश की सादगी का किस्सा उनके केंद्रीय मंत्री रहने के दौरान का है। कहते हैं कि एक बार उन्हें अशोका रोड स्थित आवास से उद्योग मंत्रालय तक जाना जाना था। वो समय से तैयार हो गए, मगर ड्राइवर नहीं पहुंचा। फिर क्या था। रघुवंश बाबू पैदल ही उद्योग मंत्रालय के लिए निकल गए। सुरक्षाकर्मी भी साथ-साथ पैदल चल रहे थे। हालांकि मंत्रालय पहुंचने से ठीक पहले ड्राइवर गाड़ी लेकर पहुंचा। 

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ड्राइवर के लेट होने के बावजूद रघुवंश बाबू नाराज नहीं हुए। उन्हें मालूम था कि किसी कारणवश ही उससे देरी हुई होगी। यह किस्सा जाहिर करता है कि वो साधारण आदमी और उसकी जरूरतों की भी इज्जत किया करते थे। रघुवंश की सादगी के कई किस्से मशहूर हैं। 

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रघुवंश का भदेस व्यवहार लोगों का ध्यान खींचता था। उनके भीतर का गांव हमेशा जिंदा रहा। वो विरोधियों की प्रशंसा भी खूब करते। और जरूरत पड़ने पर अपनों पर भी तीखी टिप्पणी करते हैं। कई लोगों ने बताया कि आरजेडी (RJD) में एकमात्र रघुवंश ऐसे नेता थे जो लालू (Lalu Yadav) की आलोचना करते, जरूरत पड़ने पर उनसे असहमति भी जताते। 

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रघुवंश ने कई मौकों पर पार्टी और लालू के विचार से असहमति जताई। हालांकि 32 साल तक लालू के सबसे करीबी नेता भी बने रहे। यह सबकुछ रघुवंश की ईमानदार व्यक्तिव के गवाहा हैं। वो जीवन भर राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर के विचार पर राजनीति करते रहे। 

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