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काबुल में है हजारों साल पुराना भगवान बुद्ध का भिक्षापात्र, चुनाव में तेज हुई वापस बिहार लाने की मांग
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एएसआई के पहले महानिदेशक सर अलेक्जेंडर कनिंघम की वर्ष 1883 में लिखी पुस्तक के 16वें खंड में भी इसका जिक्र है। किताब में लिखा गया है कि बुद्ध के भिक्षापात्र जैसा ही काबुल का पात्र है। पवित्र भिक्षापात्र की उंचाई चार मीटर, वजन 350-400 किलोग्राम और मोटाई 18 सेंटीमीटर और 1.75 मीटर गोलाई है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई का एक दल दो वर्ष पहले काबुल जाकर सत्यापन भी कर चुका है। काबुल जाने वाले विशेषज्ञ दल में कई अहम लोग शामिल थे। माना जाता है कि कुशीनगर में महापरिनिर्वाण के पहले भगवान बुद्ध ने वैशाली के लोगों को भिक्षापात्र दान में दिया था।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार दूसरी शाताब्दी में राजा कनिष्क ने इसे पुरषपुर (वर्तमान में पेशावर) ले गए। इसके बाद इसे गंधार (कंधार) ले जाया गया। फिर 20वीं शाताब्दी में यह काबुल के म्यूजियम पहुंच गया।
रघुवंश प्रसाद सिंह ने 15वीं लोकसभा से ही भिक्षापात्र वापस लाने की मांग करते आए हैं। चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग के यात्रावृतांत में भिक्षापात्र का जिक्र है। अगर यह भिक्षापात्र फिर से वैशाली में रखा गया तो वैशाली बौद्धों के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक हो जाएगा।
रघुवंश प्रसाद सिंह के मुताबिक संस्कृति मंत्रालय ने कहा है कि जब तक पुरातत्विक साक्ष्य के साथ प्रमाणित नहीं हो, इसके बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। वैशाली के पूर्व सांसद ने कहा था कि फाह्यान, ह्वेनसांग, कनिंम, रोमिला थापर जैसे विद्वानों के लेखों एवं पुस्तकों में महात्मा बुद्ध के भिक्षापात्र का उल्लेख है ।
महात्मा बुद्ध के भिक्षापात्र के बारे में इतिहासकार श्रीधर वासुदेव साहनी ने भी वर्णन किया है। एएसआई के प्रकान रिपोर्ट आन टुअर ऑफ नार्थ एंड साउथ बिहार, एएसआई प्रकाशन (1880-81) वाल्यूम 16 में कनिंघम ने भिक्षापात्र का उल्लेख किया है और कहा है कि वह अफगानिस्तान में है।
विशेषज्ञों का दावा है कि पाकिस्तान के पेशवार विश्वविद्यालय के फैजुल्ला सेहरी, थाइलैंड और श्रीलंका के विश्वविद्यालयों के लेखों एवं प्रकाशनों में भी महात्मा बुद्ध के भिक्षापात्र का जिक्र है। फ़ाहयान की पुस्तक में भी इसका जिक्र है।