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10वीं तक हरिवंश के पास पहनने को नहीं थे जूते, PM मोदी भी मुरीद; साझा कर चुके हैं इनकी सादगी के किस्से
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हरिवंश को लोग उनके सरल स्वभाव और साधारण जीवन की वजह से भी जानते हैं। वो कभी लाव-लश्कर के साथ कभी अपने गांव नहीं गए। जब भी गांव आए, एक साधारण आदमी की तरह पहुंचे, गांव में रूके और लोगों से बात किया। यही स्वभाव उनकी शख्सियत का परिचय है।
हरिवंश का जन्म 30 जून 1956 को बलिया जिले के सिताबदियरा गांव में हुआ था। वो जेपी आंदोलन से खासे प्रभावित रहे हैं। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए और पत्रकारिता में डिप्लोमा की पढ़ाई पूरी की और एक पत्रकार के रूप में करियर की शुरुआत टाइम्स ग्रुप से की थी।
हरिवंश ने साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग से काम शुरू किया। साल 1981 तक वो धर्मयुग के उपसंपादक रहे। हालांकि इसके बाद उन्होंने पत्रकारिता छोड़ दी थी और 1981 से 1984 तक हैदराबाद और पटना में बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी की।
1984 में एक बार फिर हरिवंश ने पत्रकारिता में वापसी की और साल 1989 तक आनंद बाजार पत्रिका की सप्ताहिक पत्रिका रविवार में सहायक संपादक रहे।
चंद्रशेखर जब प्रधानमंत्री बने तो हरिवंश नारायण सिंह को अतिरिक्त सूचना सलाहकार बनाया। चंद्रशेखर के निधन के बाद हरिवंश बिहार के सीएम नीतीश कुमार के बेहद करीब आ गए। नीतीश हरिवंश की काफी इज्जत करते हैं। हरिवंश ने प्रभात खबर के संपादक के रूप में लंबे समय तक काम किया। एक समय प्रभात खबर को अखबार नहीं जनांदोलन का भी टैग मिला।
(फाइल फोटो)
चार दशक तक पत्रकारिता के बाद 2014 में जेडीयू के जरिए संसदीय राजनीति में प्रवेश किया। जेडीयू ने हरिवंश को राज्यसभा भेजा। यहां वो एनडीए के उपसभापति बने। उपसभापति के रूप में उन्होंने जिस तरह मर्यादा का ध्यान रखा उसी तरह सदस्य के तौर पर भी उनका कार्यकाल गरिमापूर्ण रहा है। हाल ही में वो दोबारा उपसभापति बने।
पीएम नरेंद्र मोदी उनकी की विनम्रता और उनकी साधारण पृष्ठभूमि को बताने के लिए दो किस्सों का जिक्र भी किया था। जिसके मुताबिक हाईस्कूल में आने के बाद पहली बार हरिवंश के लिए जूता खरीदने की बात हुई थी। उसके पहले उनके पास कोई जूता नहीं था। गांव में एक जूता बनाने वाले को आर्डर दिया गया।
(फाइल फोटो)
हरिवंश रोज देखने जाते कि उनका जूता कितना बना है। जूता बनाने वाले से हर दिन सवाल करते थे कि कब तक बन जाएगा। इसी तरह उन्हें पहली बार जब सरकारी स्कॉलरशिप मिली तो घर के लोग उम्मीद लगाए बैठे थे कि बेटा पूरा पैसा घर लेकर आएगा, लेकिन उन्होंने पैसे लाने की बजाय किताबें खरीद लीं थीं।
बता दें कि पहली बार राज्यसभा के उपसभापति बनने के दौरान वे चार बार अपने गांव पहुंचे थे। प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति पर उनका गांव आना तय रहता है। वे दो भाई हैं, बड़े भाई रघुवंश नारायण सिंह डॉ. भीम राव आंबेडकर विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रिक विभाग में इंजीनियर थे, अब सेवानिवृत होकर मुजफ्फरपुर में ही रहते हैं। दोनों ही भाइयों का गांव से हमेशा गहरा नाता रहा है।