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इस शख्स की कहानी में छिपा है जंगलराज का खौफ, चुनाव लड़ने का 'गुनाह' किया; दौड़ा-दौड़ाकर हुई थी पिटाई
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लालू-राबड़ी राज के दौरान सीवान में शहाबुद्दीन संविधान और कानून से ऊपर था। उसकी समानांतर सरकार चलती थी। वो अदालतें लगाता था। खुद को लोगों का विधाता समझने लगा था। उसका रुतबा ऐसा था कि उसे किसी का भी डर नहीं था। न अदालत की, न सरकार का, न पुलिस की और न ही विपक्षी दलों का। सीवान में उसका खौफ किस तरह था इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से भी लगा सकते हैं कि 15 साल पहले तक लोग अपने घरों और दुकानों में उसकी तस्वीर टांग कर रखते थे। सिर्फ इस डर की वजह से कि कहीं शहाबुद्दीन को यह न लगे कि फलां उसके विरोध में हैं और उसका सम्मान नहीं करता है।
(फाइल फोटो)
विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने भी शहाबुद्दीन का खौफ झेला था। पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव भी ऐसे ही नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने उसके खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत की और अमानवीय पीड़ा से गुजरना पड़ा। ओमप्रकाश ने शहाबुद्दीन के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखाई थी। उन्हें ठीक से प्रचार भी नहीं करने दिया गया। पहले चुनाव में जीत नहीं पाए मगर लालू के बाहुबली उम्मीदवार के खिलाफ अच्छा-खास वोट हासिल किया।
(फाइल फोटो)
लोग कहते हैं कि हिमाकत शहाबुद्दीन को बर्दाश्त नहीं हुई और इसकी सजा में ओमप्रकाश को सरेआम दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। कई समर्थकों को भी पीटा गया। कई ने तो तब सीवान भी छोड़ दिया। कई की समर्थकों की हत्याएं भी हुईं। नीतीश राज में शहाबुद्दीन जेल गया तो लोगों को थोड़ी राहत मिली। 2009 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में, 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में ओम प्रकाश ने हीना शहाब को हराया। दरअसल, शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक की वजह से आरजेडी बाहुबली की पत्नी हीना शहाब मैदान में थी, लेकिन वो जीत नहीं पाई। यह शहाबुद्दीन के आतंक का ही खामियाजा था कि 2019 के चुनाव में भी हीना शहाब को जेडीयू की कविता सिंह से हारना पड़ा।
(फाइल फोटो)
शहाबुद्दीन कम्युनिस्ट और बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ खूनी मार-पीट के बाद सुर्खियों में आया था। पहली बार 1986 में उसके खिलाफ केस दर्ज हुआ था। आज की तारीख में पुलिस रजिस्टर में शहाबुद्दीन एक ऐसे अपराधी के रूप में दर्ज है जिसे लेकर मान लिया गया है कि वो कभी नहीं सुधर सकता।
(फाइल फोटो)
लेकिन ये आदतन अपराधी लालू की कृपा से दो बार विधायक बना और चार बार सांसद बना। पाकिस्तानी हथियारों का जखीरा रखने वाला और आईएसआई के लिए काम करने वाला कुख्यात अपराधी लालू जी की कृपा से 1996 में केंद्रीय राज्य मंत्री भी बनने वाला था। मगर एक पुराना केस खुलने की वजह से ऐसा नहीं हो पाया।
(फाइल फोटो)
सीवान में शहाबुद्दीन का खौफ ऐसे भी समझ सकते हैं कि लोग अपने लिए खर्च करने से भी बचते थे। घरों में सभी लोग नौकरी नहीं करते थे। नई गाड़ियां नहीं खरीदते थे। क्योंकि संपन्नता दिखने पर शहाबुद्दीन को "टैक्स" के रूप में रंगदारी देनी पड़ती थी। मना करने पर जान तक जा सकती थी।
(फाइल फोटो)
शहाबुद्दीन पर लालू परिवार की कृपा का रहस्य आजतक लोग नहीं समझ पाए हैं। ये सोचने की बात है कि आलोचनाओं के बढ़ने पर समय के साथ लालू ने अपने बाहुबली सालों साधु और सुभाष से किनारा कर लिया। लेकिन सीवान और पूरे बिहार का सबसे दुर्दांत अपराधी उनका और उनकी पार्टी का खास बना रहा। शहाबुद्दीन बिहार पर लगा एक ऐसा जख्म है जो बिहार में जंगलराज के जिक्र के साथ हमेशा जिंदा हो जाएगा।
(फाइल फोटो)