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बिहार में सीन से पूरी तरह गायब हैं दिग्गज शरद यादव, चुनाव से पहले JDU में वापसी की चर्चाएं
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बाद में 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान वो बिहार में एनडीए के खिलाफ महागठबंधन की मोर्चेबंदी के अगुआ नेताओं में शामिल हुए। उन्होंने राजद के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा। हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव के बाद से ही शरद यादव बिहार को लेकर चुप हैं।
हाल ही में उनकी बीमारी की खबर भी आई थी। दिल्ली के अस्पताल में उनका इलाज हुआ। इसी दौरान जेडीयू के सीनियर नेताओं ने उनसे बातचीत का सिलसिला शुरू किया।
सीनियर नेता कर रहे बातचीत
अब जबकि बिहार में चुनाव की सरगर्मी निर्णायक मोड़ पर है एक बार फिर से शरद की चर्चा होने लगी है। कहा जा रहा है कि जेडीयू के सीनियर नेता उन्हें फिर से पार्टी में लाने की कोशिशों में लगे हैं।
कभी एनडीए में था जबरदस्त रुतबा
शरद लंबे समय तक नीतीश के साथ थे और एनडीए के अहम नेताओं में शुमार रहे। दिल्ली में जेडीयू की राजनीति शरद यादव ही देखते थे। एनडीए में शरद का वैसा ही रुतबा था जो एक जमाने जॉर्ज फर्नांडीज़ का हुआ करता था।
आरजेडी को नुकसान पहुंचाने की रणनीति
शरद यादव को ओबीसी राजनीति की वकालत करने वाले नेता के रूप में याद किया जाता है। मंडल राजनीति के बाद वो बिहार के अगुआ ओबीसी नेताओं में हमेशा शामिल रहे। यादव वोट बैंक के लिए ही नीतीश कुमार, शरद को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में हैं ताकि आरजेडी को नुकसान पहुंचाया जा सके।
12% यादव वोटों पर जेडीयू की नजर
बिहार में कुल मतदाताओं में यादवों का हिस्सा करीब 12% से ज्यादा है। यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि शरद मूल रूप से मध्य प्रदेश के हैं मगर बिहार की राजनीति की वजह से उन्हें पहचान मिली।