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लगभग एक जैसे थे दुनिया के ये दो महान गणितज्ञ, जॉन नैश को मिला नोबल; दूसरे के हिस्से गुमनामी
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वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म बिहार के बसंतपुर गांव में 2 अप्रैल 1942 को हुआ था। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन एल. केली, वशिष्ठ से इतने प्रभावित थे कि उन्हें आर्यभट्ट की परंपरा का गणितज्ञ कहते थे। केली ही वह आदमी थे जिनकी बदौलत वशिष्ठ अमेरिका गए और पढ़ाई पूरी की। फिर वहां काम भी किए।
वशिष्ठ और जॉन नैश का शुरुआती जीवन, गणित को लेकर दीवानगी और वैवाहिक स्थिति लगभग एक जैसी है। एक समय दोनों गणित में इतने डूब गए कि दोनों की मानसिक स्थिति खराब हो गई। नैश पर पागलपन इतना हावी हो गया कि उन्हें गलत सही का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था। बीमारी की वजह से वो एक काल्पनिक दुनिया में चले जाते थे। उनका पागलपन खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था। एक बार अंजाने में वो अपने ही बेटे की जान लेने की कोशिश करने लगे थे। लेकिन ऐसे मुश्किल वक्त में उनकी नैश की पत्नी ने उन्हें संभाला।
अच्छी देखभाल का नतीजा ये रहा कि नैश अपनी काल्पनिक दुनिया और वास्तविक दुनिया में फर्क को समझने में कामयाब हुए। हालांकि वो पूरी तरह ठीक नहीं हुए थे मगर उनका व्यवहार पहले के मुकाबले ठीक हो गया और पत्नी, परिवार और सहयोगियों को लगा कि अब वे ठीक हैं। बाद में गणित में किए काम की वजह से उन्हें नोबल जैसा सम्मान भी मिला।
इस मामले में वशिष्ठ नारायण सिंह भाग्यशाली नहीं रहे। अमेरिका में पढ़ाई के बाद वशिष्ठ ने वहीं काम शुरू किया। वो 1969 में नासा के अपोलो मिशन से भी जुड़े थे। 1971 में को भारत लौट आए। और 1973 उनकी शादी वंदना रानी सिंह से हो गई। वशिष्ठ भी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित थे। सिजोफ्रेनिया में मरीज को पागलपन के दौरे आते हैं। वो एक तरह के भ्रम में होते हैं और कई बार सिजोफ्रेनिया के मरीजों का पागलपन खतरनाक भी हो जाता है।
ऐसे में अगर मरीज को भावनात्मक रूप से संभाला जाए और उसका इलाज हो तो सही होने की उम्मीद रहती है। मगर शादी के बाद जब घरवालों और वशिष्ठ की पत्नी को ये बात पता चली तो पत्नी ने उस तरह का हौंसला नहीं दिखाया जैसे नैश की पत्नी ने पति के लिए दिखाया था। वशिष्ठ की पत्नी ने तलाक लेकर उन्हें छोड़ दिया। भारत आने के बाद पहले वशिष्ठ ने आईआईटी कानपुर, आईआईटी बंबई और फिर आईएसआई कोलकाता में नौकरी की।
एक इंटरव्यू में वशिष्ठ नारायण सिंह के घरवालों ने बताया था कि पत्नी के तलाक देने से मिले झटके को वशिष्ठ बर्दाश्त नहीं कर पाए थे। इसी दौरान उनके रिसर्च को भी कुछ लोगों ने चोरी करके अपने नाम से छपवा लिया। इस बात से भी उन्हें धक्का लगा। 1974 में उन्हें दिल का दौरा भी पड़ा। वे ठीक तो हुए लेकिन उनका गरीब परिवार सही तरीके से इलाज नहीं करा पाया।
इसके बाद वशिष्ठ परिवार के साथ रहने लगे। लेकिन 1989 में अचानक गायब हो गए। चार साल तक उनका कुछ भी अता-पता नहीं चला। 1993 में वो सारण में बेहद दयनीय हालत में मिले। वो कहां थे कैसे थे इस बारे में लोगों को कोई जानकारी नहीं थी। इसके बाद से वो भाई के घर में ही रहे। परिवार चाहकर भी उनका सही से इलाज नहीं करा पाया।
2019 में उनका निधन हो गया। निधन की तस्वीरें सामने आई तो एक महान गणितज्ञ का शव भावुक कर देने वाली हालत में दिखा। मीडिया की खबरों के बाद प्रशासन मुस्तैद हुआ। वशिष्ठ नारायण सिंह जिंदगीभर जूझते रहे। नैश को उनकी पत्नी ने संभाल लिया। मगर वशिष्ठ के हिस्से पीड़ा और गुमनामी ही आई।
(फाइल फोटो)