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तेजाब डालकर दो लड़कों को मार डाला था, गरीब पिता की ऐसी हाय लगी कि जिंदगीभर जेल में रहेगा शहाबुद्दीन
पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। 243 विधानसभा सीटों के चुनाव में अन्य मुद्दों के साथ भ्रष्टाचार और अपराध भी एक बड़ा मुद्दा रहेगा। चुनाव में लालू यादव और उनकी पार्टी आरजेडी का एक आपराधिक नाम पीछा करेगा। वो है- सफेदपोश कुख्यात अपराधी मोहम्मद शहाबुद्दीन। वैसे बिहार में अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण देने के आरोप से कोई पार्टी नहीं बच सकती, मगर इनमें शहाबुद्दीन का नाम ऐसा है जिसके अपराध ने सारी हदें पार कर दीं। सीवान में वो समानांतर सरकार भी चलाने लगा था। बावजूद उसे हमेशा लालू यादव का राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा।
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शहाबुद्दीन के अपराधों के क्रूर तरीके और उसकी लंबी चौड़ी लिस्ट जानकर अच्छे-अच्छों को पसीना आ जाएगा। एक ऐसा अपराधी जिसके आगे लालू राज में पुलिस, कानून, अदालत और सरकारें बौनी नजर आती थीं। यह सवाल भी लोग करते हैं कि अगर आज की तारीख में लालू राज खत्म नहीं होता तो शहाबुद्दीन का आतंक किस स्तर पर होता?
लेकिन लालू के राज में ही शहाबुद्दीन के पाप का घड़ा ऐसा भरा कि अब उसे अब जिंदगीभर जेल की सलाखों में सड़ना पड़ेगा। शहाबुद्दीन के आतंक को भला चंदा बाबू से बेहतर कौन बता सकता हैं। चंदा बाबू के बेटों की हत्या के मामले में उसे विशेष अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी। ये केस शहाबुद्दीन के सबसे खौफनाक मामलों में शामिल किया जाता है।
प्रतापपुर गांव में दो भाइयों को 2004 में तेजाब से नहलाकर मार दिया गया था। ये चंदा बाबू के बेटे थे। इनका दोष सिर्फ यह था कि शहाबुद्दीन को इन्होंने रंगदारी देने से इनकार कर दिया था। शहाबुद्दीन के आदमियों ने रंगदारी नहीं देने पर बहस के बाद बेरहमी से हत्या कर दी थी। घटना में सरकार की भूमिका सिर्फ इसी बात से समझी जा सकती है कि पुलिस ने अपराधियों पर कार्रवाई की बजाय चंदाबाबू के घरवालों को ही कहीं और चले जाने को कह दिया।
घटना में मारे गए दोनों भाइयों की हत्या का चश्मदीद गवाह तीसरा भाई राजीव था। वो इस केस का एकमात्र गवाह था। लेकिन शाहबुद्दीन के खिलाफ वो गवाही न दे पाए इसलिए कोर्ट में पेशी से पहले ही उसे भी मार दिया गया। हत्याकांड ने देशभर को हिलाकर रख दिया था। पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े हुए। मामला विशेष अदालत में पहुंचा और शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा मिली। वो तो भला हो नीतीश कुमार का जिनकी सरकार बनने के बाद शहाबुद्दीन जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा।
दो भाइयों की हत्या मामले में पटना हाईकोर्ट ने भी उम्रकैद की सजा बरकरार रखी। सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई लेकिन पटना हाईकोर्ट का फैसला ही बरकरार रखा गया। शहाबुद्दीन के आपराधिक करियर में बहुत साल बाद का ये मामला एक बानगी भर नहीं है। उसके नाम ऐसे कई खौफनाक मामले दर्ज हैं। कई मामले लोगों ने डर वश दर्ज ही नहीं कराए।
पत्रकार की हत्या, कम्युनिस्ट नेता की हत्या, पुलिस के अफसर को थप्पड़ मारना, रेड मारने आई पुलिस फोर्स पर अंधाधुंध फायरिंग करना, घर में पाकिस्तानी हथियारों का जखीरा, जेलर और जज को धमकाना, रंगदारी वसूलना कई ऐसे मामले हैं जो शहाबुद्दीन के दुस्साहस की कहानी कहते हैं। वो अपनी अदालतें भी लगाता था। उसे यह दुस्साहस राजनीतिक रसूख की वजह से मिली।
जेल में शहाबुद्दीन के ठाठ की कहानियां भी बाहर आई हैं। नीतीश कुमार की वजह से ही शहाबुद्दीन जेल पहुंचा था। लेकिन जब 2015 में नीतीश ने लालू के साथ सरकार बनाई उसे जमानत मिल गई थी। 2016 में जेल से निकलने के बाद 1300 गाड़ियों का काफिला लेकर शहाबुद्दीन सीवान के लिए निकला था।
उसने खुलेआम लालू यादव को अपना नेता बताया और कहा कि नीतीश तो परिस्थितियों के नेता हैं। जेल जाने के बाद उसकी पत्नी चुनाव लड़ती रही है। इस चुनाव में भी शहाबुद्दीन एक बड़ा मुद्दा होगा। शहाबुद्दीन को पुलिस ने "ए लिस्टेड" क्रिमिनल माना है। यानी ऐसा अपराधी जो कभी सुधार नहीं सकता है। इस सफ़ेदपोश अपराधी को अभी कई मामलों में सजा मिलने का इंतजार है।
ये अपराधी लालू का कितना लाडला है इसका अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि आरजेडी ने 2019 के चुनाव में भी शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब को अपना उम्मीदवार बनाया था। हालांकि वो चुनाव जीत नहीं पाई।