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'साइकिल गर्ल' की रियल स्टोरी, 60 दिन में बदली परिवार की जिंदगी, कभी खाने के भी नहीं थे पैसे
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ज्योति कुमारी अभी 9वीं क्लास में है। उसके दो छोटे भाई और एक छोटी बहन है। एक बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। वो अपने पति के साथ अभी ज्योति के घर में ही रह रही हैं। ज्योति साइकिल में ही अपना भविष्य भी देखती है।
ज्योति कुमारी अपने मां के साथ जनवरी में गुड़गांव गई थी। उसके पिता मोहन पासवान वहां ई-रिक्शा डेढ़ साल से चला रहे थे। फरवरी में ज्योति की मां वापस आ गई थी। लेकिन, ज्योति वहीं रुक गई। पिता का एक्सीडेंट हो गया था तो पैर फ्रैक्चर हो गया। इसी कारण वो पैदल नहीं चल पा रहे थे। इसी के बाद ज्योति उन्हें साइकिल से घर लाई।
ज्योति बताती हैं कि लॉकडाउन के कारण गुड़गांव में वहां खाने-पीने को कुछ नहीं था। मकान मालिक कमरा खाली करने को बोल रहा था तो उसने पापा को बोला कि चलिए हम आपको ले चलते हैं। पहले पापा नहीं माने। लेकिन जब उन्हें भी कोई रास्ता नहीं दिखा तो आने को तैयार हो गए।
ज्योति कहती है, हम गांव के ही एक ग्रुप के साथ निकले थे। सुबह चार बजे से रात के दस बजे तक मैं साइकिल चलाती थी। बीच-बीच में कई बार हिम्मत हार गई। पापा से बोला कि अब साइकिल नहीं चल रही। फिर पापा ने कहा कि, अब निकल गए हैं तो घर पहुंचना ही पड़ेगा। रास्ते में कहां रहेंगे? आखिरकार 8 दिन में अपने घर पहुंच ही गए।
ज्योति बोली, जब हम गांव पहुंचे तो सब हैरान थे और बोल रहे थे कि बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। हमें अखिलेश यादव ने 1 लाख रुपए दिए। चिराग पासवान ने 51 हजार रुपए, तेजस्वी यादव ने 50 हजार रुपए दिए। और बहुत सारे लोगों ने कुछ न कुछ रुपए पैसे दिए। किसी ने 20 हजार तो किसी ने 10 हजार रुपए अकाउंट में डाले।
मां कहती हैं, ज्योति इतना लंबा साइकिल चलाकर आई इसी वजह से हमारा घर बन रहा है। ज्योति को ढाई लाख रुपए कैश मिले थे। इसके अलावा अकाउंट में भी पैसा आया है। करीब 6 लाख रुपए सब जोड़कर हुए हैं, जो कैश आया है, उसी से हम घर बना रहे हैं। वो खुश होकर बताती हैं, अब हमें सब पहचानते भी हैं।
ज्योति को चार साइकिल मिली हैं। इसके साथ ही अखिलेश यादव ने 1 लाख, चिराग पासवान ने 51 हजार और तेजस्वी यादव ने 50 हजार रुपए दिए हैं।
ढाई लाख रुपए तो कैश मिले। इसके अलावा चार सायकल भी मिलीं। मम्मी, पापा और मुझे कपड़े मिले। थर्मस, घड़ी और गिफ्ट भी मिले। अभी सब पेटी में रख दिए हैं। जब नया घर बन जाएगा तब बाहर निकालेंगे। बरामदे में चारों नई मिली साइकिलें भी खड़ी हैं।
ज्योति के मां और पिता मोहन पासवान कहते हैं, बेटी के एक काम ने हमारा पूरा जीवन बदलकर रख दिया। अब हमें ज्योति के नाम से ही सब जानते हैं। पूरे गांव में ज्योति का नाम सबको पता है।