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इस बाहुबली की वजह से बिखरने की कगार पर है लालू यादव का 'कुनबा', लंबी चौड़ी है अपराधों की लिस्ट
पटना (Bihar) । बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही तोड़फोड़ का सिलसिला शुरू हो चुका है। आरजेडी के पांच विधायक और कई नेता जेडीयू में चले गए। इससे भी बड़ा झटका आरजेडी को तब लगा जब पार्टी में रामा किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह के आने की कवायद शुरू हुई। इससे नाराज होकर वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष समेत सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। उनके आरजेडी से अलग होने की अटकलें भी हैं। कहा जा रहा है कि रामा सिंह के मामले में वो किसी तरह का समझौता करने के मूड में नहीं हैं। रघुवंश, लालू यादव के सबसे करीबी नेताओं में शुमार रहे हैं। पार्टी का देशव्यापी चेहरा हैं। रघुवंश पार्टी से बाहर जाते हैं तो ये एक तरह से लालू के राजनीतिक कुनबे का बिखरना ही होगा।
उधर, रामा सिंह ने साफ कर दिया है कि वो अगस्त के आखिर तक आरजेडी में शामिल हो जाएंगे। इससे पहले भी उनके शामिल होने की डेट सामने आई थी, लेकिन रघुवंश की वजह से उसे टालना पड़ा। अब रामा कह रहे हैं कि लालू और तेजस्वी की सहमति के बाद वो पार्टी में शामिल हो रहे हैं। किसी के (रघुवंश प्रसाद) आने जाने से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा। रामा सिंह बाहुबली नेता हैं जिनकी वजह से इस समय बिहार की राजनीति में बवाल मचा हुआ है। वो अपहरण, धमकी, रंगदारी, मर्डर जैसे संगीन मामलों में आरोपी हैं। आइए बिहार के बाहुबली के बारे में जानते हैं।
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रामा किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह का नाम 90 के दशक में तेजी से उभरा था। उनकी दोस्ती अपने समय के डॉन अशोक सम्राट से हुआ करती थी। वो वैशाली ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर बिहार में बादशाहत का सपना देख रहे थे। लेकिन, इसी दौरान अशोक सम्राट हाजीपुर में पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया था।
रामा सिंह तो वैसे कई बार चर्चा में रहे, लेकिन उनका पुलिस फाइल में बड़ा नाम तब आया जब वह विधायक बन गए।
साल 2001 में छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के कुम्हारी इलाके में 29 मार्च 2001 को पेट्रोल पंप व्यवसायी जयचंद वैद्य का अपहरण हुआ था। अपहरणकर्ता जयचंद को उनकी कार के साथ ले गए थे। इस केस में रामा सिंह को छत्तीसगढ़ की अदालत में सरेंडर कर जेल भी जाना पड़ा था।
रामा सिंह पांच बार विधायक रहे हैं । 2014 के मोदी लहर में राम विलास पासवान की लोजपा से वैशाली से सांसद चुने गए। उन्होंने आरजेडी के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को हराया था। इसी हार के बाद रघुवंश प्रसाद रामा सिंह का नाम तक नहीं सुनना चाहते हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने जयचंद वैद अपहरण कांड को ही आधार बना कर पटना हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह का आरोप था कि चुनाव आयोग को दिए गए शपथ पत्र में रामा किशोर सिंह ने वैद अपहरण कांड से संबंधित जानकारी नहीं दी है, इसलिए लोकसभा की उनकी सदस्यता रद्द की जानी चाहिए।
2014 में सांसद बनने के बाद 2019 में एलजेपी ने रामा सिंह को टिकट नहीं दिया था। यहां से वीणा देवी को प्रत्याशी बनाया गया था। तभी से यह कयास लगाए जा रहे थे कि आने वाले दिनों में रामा सिंह एलजेपी को अलविदा कहने के बाद कोई बड़ी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं।
गणित के नामी प्रोफेसर रहे रघुवंश प्रसाद आरजेडी के उन गिने-चुने नेताओं में से एक हैं, जिनपर कभी भी भ्रष्टाचार या गुंडागर्दी के आरोप नहीं लगे। रघुवंश ज्यादातर मौकों पर दिल्ली की राजनीति में आरजेडी का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।
रघुवंश प्रसाद जब यूपीए की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री बने तब उन्होंने ही महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की शुरुआत की। यह एक ऐसी योजना है, जिसकी तारीफ आज तक होती है।
डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी वरिष्ठ रघुवंश प्रसाद को न्योता भी दे चुके हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर आरजेडी में ऐसा क्या हुआ कि जिसकी वजह से रघुवंश प्रसाद जैसे समाजवादी नेता के सामने पार्टी छोड़ने की नौबत आ गई है।