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हैरान कर देने वाला है ये मंदिर, यहां 20 साल से कुत्ते होते हैं आरती में शामिल,आदमी लगाते हैं भोग

बक्सर (Bihar)। चरित्रवन श्मशान घाट परिसर में स्थित श्मशामवासिनी मां काली मंदिर से रोजाना सुबह-शाम 20 साल से हैरान कर देने वाली तस्वीर सामने आ रही है। दरअसल यहां मंदिर के भक्तों में इंसानों के साथ कुत्ते भी सुबह-शाम मंदिर की आरती में झुंड बनाकर शरीक होते हैं। इंसार आरती करते हैं तो ये कुत्ते एक स्वर में भौंकते हैं। आरती के बाद ये भी प्रसाद के रूप में मिलने वाले मिश्री को खाते हैं, जबकि सप्ताह में दो बार कुत्तों को आरती के बाद भोग भी लगाया जाता है। जिसे खाकर वे चले जाते हैं। मान्यता है कि यहां की पूजा करने से काल-विपदा टल जाती है।

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Asianet News Hindi
Published : Sep 21 2020, 06:58 PM IST
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श्मशान घाट के आसपास टहलने वाले दर्जनभर खूंखार कुत्ते किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। ये मिश्री खाने के बाद चुपचाप वहां से चले जाते हैं। मंदिर के पुजारी मुन्ना पंडित बताते हैं कि वे खुद करीब 20 सालों से ऐसे ही आरती में कुत्तों के शामिल होते देख रहे हैं।
 

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पुराने लोग बताते हैं कि बहुत पहले मड़ई में मां काली की पूजा होती थी। उस समय भी कुत्ते यहां जमघट लगाए रहते थे। बाद में पुजारी हरेराम बाबा के समय मंदिर की स्थापना हुई और सुबह-शाम विधिवत आरती होने लगी। (प्रतीकात्मक फोटो)
 

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मंदिर से कुत्तों का जुड़ाव को देखते हुए इसी परिसर में श्री काल भैरवनाथ मंदिर का निर्माण कराया गया है। इस मंदिर के सामने पंचमुंड आसन है। ऐसा माना जाता है कि यहां की पूजा करने से काल-विपदा टल जाती है।(प्रतीकात्मक फोटो)

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श्मशाम वासिनी काली मंदिर में हर सप्ताह रविवार और मंगलवार को विशेष पूजा होती है, जिसे शिवाबली पूजा कहा जाता है। इसमें कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं और पूजा संपन्न होने के बाद कुत्तों को भोग लगाया जाता है।(प्रतीकात्मक फोटो)

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कुछ जानकार लोगों ने बताया कि यहां का खर्च फक्कड़ बाबाओं की आमद से चलता है। श्मशान घाट में कर्मकांड कराने के बदले फक्कड़ बाबा को जो पैसे मिलते हैं, उसका आधा हिस्सा मंदिर के खाते में जाता है। ऐसे में मंदिर की दैनिक आमदनी काफी अच्छी है। (प्रतीकात्मक फोटो)

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