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खुद को पिता की मौत का गुनहगार मानता है 57 साल का ये एक्टर, आज भी है उस 1 हरकत का अफसोस
मुंबई। बिहार के दरभंगा में जन्मे एक्टर और कॉमेडियन संजय मिश्रा (Sanjay Mishra) ने बीच में एक्टिंग छोड़ दी थी और उत्तराखंड के ऋषिकेश जाकर एक ढाबे पर काम करना शुरू कर दिया था। कहा जाता है कि संजय अपने पिता की मौत से इतने मायूस थे कि उन्होंने एक्टिंग छोड़ने का मन बना लिया था। दरअसल संजय अपने पिता के बहुत करीब थे। पिता की मौत ने उनको ऐसा झकझोरा कि वो गुमशुदा हो गए और अकेला महसूस करने लगे। एक इंटरव्यू में संजय ने अपने पिता से अटैचमेंट और उनकी मौत से पहले के कुछ किस्से शेयर किए थे। इसमें उन्होंने बताया था कि एक अफसोस जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भुला सकता।
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संजय मिश्रा के मुताबिक, उनकी फिल्म आलू चाट 20 मार्च, 2009 को रिलीज हुई थी और 4 दिन बाद यानी 24 मार्च को संजय के पिता का निधन हो गया था। संजय ने बताया था कि इस फिल्म के रिलीज होने की खुशी में मेरे पिता ने अपने सब दोस्तों को इकट्ठा किया और कहा कि हम लोग संजय के साथ यह फिल्म देखेंगे। उसी वक्त मैं बीमारी से उबरके अस्पताल से घर लौटा था।
इसके बाद हम लोग बगल के ही एक मॉल में फिल्म 'आलू चाट' देखने गए। वहां कुछ लोगों की भीड़ ने मुझे घेर लिया और सेल्फी खिंचाने की जिद करने लगे। इस पर मैं भड़क उठा और सिनेमा हॉल के अंदर ही गुस्से में गालियां बक दीं। चूंकि मेरे पिताजी के साथ उनके दोस्त भी थे, इसलिए उन्हें ये बात पसंद नहीं आई। इसके बाद इंटरवल में न पिताजी ने मुझे देखा और न ही मैं उन्हें देख रहा था।
ढाई घंटे बाद फिल्म खत्म हुई और हम लोग लिफ्ट से नीचे आ रहे थे। तभी पापा ने मुझसे कहा- तुम्हें उस पर चिल्लाना नहीं चाहिए था। इस पर मैंने भड़कते हुए कहा- आप क्या जानते हैं? चिल्लाना नहीं चाहिए था, आपसे फोटो खिंचवा रहा था वो? इससे पहले पापा से मैंने कभी इतनी ऊंची आवाज में बात नहीं की थी।
संजय ने आगे बताया कि बीमारी के दौरान मुझे एंटीबायोटिक दवाओं का जो डोज दिया जाता था वो इतना ज्यादा था और फिर उसके बाद अस्पताल से छूटते ही सीधे सिनेमा हॉल में लोगों की चिकचिक। इन सबसे परेशान होकर मैं अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाया और पिताजी पर चिल्ला उठा था।
संजय मिश्रा के मुताबिक, हम लोग वैशाली में रहते हैं। इंडिया गेट पर शूटिंग थी तो मैं ली मेरेडियन होटल में ठहरा था। वहां एक बिहारी कुक था, जिसने मुझसे पूछा आपके लिए मीट बनाएं। मैंने कहा- मसालेदार नहीं बढ़िया देसी बनाओगे। इसके बाद मैंने कहा- कल बनाना, हम अपने पापाजी को बुलाएंगे। अगले दिन मैंने पापा को फोन कर कहा-हम गाड़ी भेज देंगे, बढ़िया मीट बना है।
इस पर पापाजी ने भड़कते हुए कहा- तुम मत खाना। अभी तुम्हारी तबीयत ठीक हुई है। यही सब खा-खाकर तबीयत बिगाड़ लेते हो। मैंने कहा- पापाजी डांटिए मत। आप आइए फिर यहीं रुकिएगा। इसके बाद मैंने गाड़ी भेज दी, लेकिन गाड़ी अकेली आ गई और पापा नहीं आए।
इसके बाद मैंने पापा को फोन करके पूछा-आप आए क्यों नहीं, तो बोले थोड़ी तबीयत डांवाडोल लग रही थी। फिर मैंने पूछा- क्या खाए थे आप? अरे वो तुम आए थे न जब तो धीरे से तुम्हारी मम्मी को बताए थे कि वो बनाइए कटहल की सब्जी। तो मैंने कहा कि उस दिन की सब्जी अभी खाए थे तो होगा न गड़बड़। इसके बाद पिताजी बोले- मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं है। ये उनकी आखिरी लाइन थी। सुबह पता चला पापाजी नहीं रहे।
संजय के मुताबिक, पापाजी को डायरी लिखने का बड़ा शौक था। इसमें वो हर दिन का लिखते थे और उस दिन का भी लिखा था, जिस दिन हम लोग आलू चाट देखने गए थे। उन्होंने लिखा था- मनोज पाहवा ने बेहतरीन काम किया, लेकिन संजय में भी कुछ है। लेकिन आज उसने मेरे दोस्तों के सामने मुझे बेइज्जत किया। वो पढ़कर मैंने सोचा कि आखिर ये क्या लेकर गए मेरे पापा
संजय ने गिल्टी फील करते हुए कहा था- अगर कोई 2 सेकंड के लिए उन्हें जिंदा कर दे तो मैं अपनी गर्दन उतारके उनके सामने रख दूं और कहूं कि मेरा मकसद कभी ऐसा नहीं था। मैं बचपन में कई बार आपकी गोद में रोया होऊंगा और इसी तरह आप पर चिल्ला दिया था। ये अफसोस मुझे जिंदगी भर रहेगा। उनकी वो दो लाइनें, मुझे सलाह मत दो और डायरी की वो लाइन। ये अफसोस आप कितना भी पैसा कमा लो लेकिन नहीं मिटेगा।
बता दें कि संजय के पिता शम्भुनाथ मिश्रा पेशे से जर्नलिस्ट थे, जबकि उनके दादा डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट थे। बिहार के दरभंगा में जन्मे सजंय जब 9 साल के थे तो उनकी फैमिली वाराणसी शिफ्ट हो गई थी। संजय ने अपनी एजुकेशन वाराणसी से केंद्रीय विद्यालय बीएचयू कैम्पस से की।
इसके बाद इन्होंने बैचलर की डिग्री साल 1989 में पूरी करने के बाद 1991 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लिया। संजय मिश्रा ने सीरियल चाणक्य से अपने करियर की शुरुआत की थी। संजय की शादी 28 सितंबर साल 2009 में किरन मिश्रा से हुई है। संजय की दो बेटियां पल और लम्हा हैं।