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गोविंदा से शक्ति कपूर तक बॉलीवुड के 10 एक्टर्स, किसी ने एक ही साल में 20 तो किसी ने दीं 26 फ़िल्में
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सबसे पहले गोविंदा की फिल्मों का ही बात करते हैं। उन्होंने 1989 में 14 फ़िल्में पर्दे पर दी थीं। ये फ़िल्में थीं 'आखिरी बाजी', 'पाप का अंत', 'जेंटलमैन', 'घराना', 'जंग बाज़', 'ताकतवर', 'जैसी करनी वैसी भरनी', 'बिल्लू बादशाह', 'गैर कानूनी', 'फ़र्ज़ की जंग', 'आसमान से ऊंचा', 'दो कैदी', 'दोस्त गरीबों का' और 'सच्चाई की ताकत'।' 1988 में भी उनकी 10 फ़िल्में रिलीज हुई थी।
अपने करियर में 700 से ज्यादा फ़िल्में करने वाले शक्ति कपूर ने 1980 और 1990 के दशक के हर साल में कभी 10, कभी 15, कभी 20 तो कभी 26 फ़िल्में दीं। 2001 में भी उनकी 20 फ़िल्में पर्दे पर आई थीं। शक्ति की सबसे ज्यादा 26 फ़िल्में 1989 में रिलीज हुई थीं। ये फ़िल्में थीं 'चालबाज', 'आग से खेलना', 'जेंटलमैन', 'आखिरी गुलाम', 'जंगबाज', 'अभिमन्यु', 'जैसी करनी वैसी भरनी', 'गरीबों का देवता', 'रखवाला', 'तौहीन', 'सूर्या', 'कसम सुहाग की', 'मिल गई मंजिल मुझे', 'जोशीले', 'घराना', 'दांव पेंच', 'गुरु', 'हम इंतजार करेंगे', 'मुजरिम', 'ताकतवर', 'महादेव', 'नफरत की आंधी', 'कहां है क़ानून', 'मजबूर', 'सच्चाई की ताकत' और 'निशानेबाजी'।
कादर खान अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन वे उन एक्टर्स में शामिल हैं, जिन्होंने एक ही साल में सबसे ज्यादा फ़िल्में देने का रिकॉर्ड अपने नाम किया। 1980 से 1999 तक सिर्फ 1996 को छोड़ दिया जाए तो किसी साल उनकी 11, किसी साल 18, किसी साल 20, किसी साल 23 तो किसी साल 26 फ़िल्में रिलीज हुई थीं। उनकी सबसे ज्यादा 26 फ़िल्में 1988 में आई थी। कादर की ये फ़िल्में 'औरत तेरी यही कहानी', 'भेदभाव', 'इंतकाम', 'मर मिटेंगे', 'मुलजिम', 'प्यार मोहब्बत', 'साजिश', 'सोने पे सुहागा', 'पैगाम', 'गंगा तेरे देश में', 'बीवी हो तो ऐसी', 'खून भरी मांग', 'वक़्त की आवाज़', 'घर घर की कहानी', 'शूरवीर', 'शेरनी', 'वो मिली थी', 'चरणों की सौगंध', 'कब तक चुप रहूंगी', 'कसम', 'प्यार का मंदिर', 'शहंशाह', 'दरिया दिल', 'बिजली और तूफ़ान', 'गीता की सौगंध', और 'सोम मंगल शनि' थीं।
प्रेम चोपड़ा ने 1994 में 11, 1977 और 1995 में 12-12 और 1985 में 13 फिल्मों में काम किया। एक ही साल में आईं उनकी सबसे ज्यादा फ़िल्में 19 थीं, जो 1989 में आई थीं। ये फ़िल्में थीं 'मजबूर', 'घराना', 'मिट्टी और सोना', 'खून का कर्ज', 'क़ानून की आवाज़', 'आखिरी बदला', 'दांव पेंच', 'इंदिरा', 'जोशीले', 'सच्चे का बोलबाला', 'संतोष', 'क्लर्क', 'रखवाला', 'गरीबों का दाता', 'अभिमन्यु', 'जंग बाज़', 'दाना पानी', 'दाता' और 'सिक्का'।
अमरीश पुरी बॉलीवुड के सबसे खूंखार विलेन्स में से एक थे। उन्होंने 1984 से 1992 तक सिर्फ 1985 को छोड़कर हर साल 11 से 18 फ़िल्में तक दीं। यहां तक कि 2004 में तक उनकी 12 फ़िल्में आई थीं। अमरीश पुरी ने ज्यादा फ़िल्में 1989 में दीं, जो 18 थीं। ये फ़िल्में थीं 'मेरा फर्ज', 'मुजरिम', 'नफरत की आंधी', 'राम लखन', 'तुझे नहीं छोडूंगा', 'आग से खेलेंगे', 'जादूगर', 'हिसाब खून का', 'बटवारा', 'त्रिदेव', 'ना-इंसाफी', 'दाता', 'इलाका', 'फर्ज की जंग', 'दो कैदी', 'सूर्या :एन अवेकनिंग', 'मिल गई मंजिल मुझे' और 'जुर्रत'।
मिथुन चक्रवर्ती ने 1983 को छोड़कर 80 के दशक के हर साल में 10 से 17 फ़िल्में बड़े पर्दे पर दीं। इतना ही नहीं, 90 के दशक में भी 1990, '1995, 1998 और 1999 में भी उनकी 10 से ज्यादा फ़िल्में हर साल रिलीज हुई थीं। मिथुन ने 1989 में सबसे ज्यादा 17 फ़िल्में पर्दे पर दी थीं। ये फ़िल्में 'भ्रष्टाचार;, 'लड़ाई', 'दाना पानी', 'हिसाब खून का', 'आखिरी गुलाम', 'मुजरिम', 'दाता', 'गरीबों का देवता', 'दोस्त', 'इलाका', 'प्रेम प्रतिज्ञा', 'हम इंतजार करेंगे', 'आखिरी बदला', 'गलियों का बादशाह', 'गुरु', 'मिल गई मंजिल मुझे' और 'मेरी जुबान' थीं।
बॉलीवुड के शॉट गन शत्रुघ्न सिन्हा ने 1972, 1984, 1985, 1988, में 11 और 1987 और 1989 में 10 फ़िल्में पर्दे पर दीं। लेकिन जिस साल उनकी सबसे ज्यादा फ़िल्में आईं, वह था 1973। इस साल में उनकी 13 फ़िल्में 'आ गले लग जा', 'झील के उस पार', 'ब्लैकमेल', 'छलिया', 'एक नारी दो रूप', 'गाय और गौरी', 'गुलाम बेगम बादशाह', 'हीरा', 'कशमकश', 'प्यार का रिश्ता', 'सबक', समझौता' और 'शरीफ बदमाश' पर्दे पर रिलीज हुई थीं।
जंपिंग जैक कहे आने वाले जीतेंद्र ने 1977 में 10, 1981 में 12 और 1986 व 1990 में 12-12 फ़िल्में बॉक्स ऑफिस को दीं। एक ही साल में रिलीज हुईं उनकी सबसे ज्यादा फिल्मों की संख्या 13 है, जो 1982 में रिलीज हुई थीं। ये फ़िल्में थीं 'रास्ते प्यार के', 'सम्राट', 'धरम कांटा', 'अनोखा बंधन', 'जियो और जीने दो', 'दीदार-ए-यार', 'फर्ज और क़ानून', 'मेहंदी रंग लाएगी', 'बदले की आग', 'इंसान', 'चोरनी', रक्षा' और 'अपना बना लो'।
ही-मैन के नाम से मशहूर धर्मेन्द्र ने 1975, 1984 और 1989 में 10-10 फ़िल्में बड़े पर्दे पर दीं। लेकिन उनकी सबसे ज्यादा 12 फ़िल्में 1987 में आई थीं। धर्मेन्द्र की ये फ़िल्में थीं 'जान हथेली पे', 'हुकूमत', 'लोहा', 'इंसानियत के दुश्मन', 'सुपरमैन', 'आग ही आग', 'दादागिरी', 'इंसाफ की पुकार', 'मर्द की जुबान', 'मेरा करम मेरा धरम', 'वतन के रखवाले', 'मिट जाएंगे मिटने वाले'।
बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की सबसे ज्यादा 12 फ़िल्में 1985 में आईं। ये फ़िल्में थीं 'आवारा बाप', 'इंसाफ मैं करूंगा', 'ऊंचे लोग', 'बाबू', 'अलग-अलग', 'आखिर क्यों', 'बेवफाई', 'दुर्गा', 'मास्टरजी', 'बाएं हाथ का खेल', 'हम दोनों और 'ज़माना'। इसके अलावा 1977 में भी उन्होंने 11 फ़िल्में पर्दे पर दी थीं।
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