10 FACTS; अगर अब तक ये नहीं जाना तो रतन टाटा के बारे में कुछ भी नहीं जानते
| Published : Feb 04 2020, 06:16 PM IST
10 FACTS; अगर अब तक ये नहीं जाना तो रतन टाटा के बारे में कुछ भी नहीं जानते
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रतन टाटा के पिता नवल टाटा रतनजी टाटा और नवजबाई टाटा के गोद लिए हुए बेटे थे। इससे पहले नवल टाटा जे.एन. पेटिट पारसी अनाथालय में रहते थे। रतन टाटा को अपनी दादी नवजबाई टाटा से बहुत लगाव था। जब रतन टाटा सिर्फ 10 साल के थे तो 1940 में उनके माता-पिता अलग हो गए और उनकी परवरिश उनकी दादी ने की।
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जेआरडी टाटा के जमाने से बॉम्बे हाउस (टाटा का मुख्यालय) में बारिश के दौरान आवारा कुत्तों को शरण दी जाने की परंपरा है। इसके रेनोवेशन के बाद, बॉम्बे हाउस में अब आवारा कुत्तों के लिए एक केनेल बनाया गया है। इस केनेल में कई सारी सुविधाएं है जिसमे कुत्तों के खेलने के लिए खिलौने आदि शामिल हैं। रतन टाटा ने इस परंपरा को जारी रखा है और उन्हें भी कुत्तों से बेहद लगाव है। उसके पास दो पालतू कुत्ते हैं जिनकी वो बहुत प्यार से देखभाल करते हैं उनके कुत्तों का नाम टिटो और मैक्सिमस है।
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रतन टाटा ने अपनी कंपनी के लिए कुछ ऐतिहासिक विलय भी किए, जिसमें टाटा मोटर्स के साथ लैंड रोवर जगुआर, टाटा टी के साथ टेटली और टाटा स्टील के साथ कोरस शामिल थे। इन सभी विलय ने टाटा समूह की वृद्धि में अहम भूमिका निभाई थी।
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नैनो कारें रतन टाटा की सबसे प्रिय परियोजना है। 2009 में, उन्होंने एक ऐसी कार बनाने का वादा किया, जिसकी कीमत केवल एक लाख रुपये होगी। और तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने अपने सपने को पूरा किया और देश को नैनो के रूप में पहली 'लखटकिया' मिली।
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रतन नवल टाटा को कारों का बहुत शौक है। उनके पास फेरारी कैलिफ़ोर्निया, कैडिलैक एक्सएलआर, लैंड रोवर फ्रीलैंडर, क्रिसलर सेब्रिंग, होंडा सिविक, मर्सिडीज बेंज एस-क्लास, मासेराती क्वाट्रोपोर्टे, मर्सिडीज 500 एसएल, जगुआर एफ-टाइप, जगुआर एक्सएफ-आर समेत बेहतरीन कार का कलेक्शन है।
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रतन टाटा को फ्लाइट्स उड़ाना बहुत पसंद है। वह एक कुशल पायलट हैं। रतन टाटा 2007 में F-16 फाल्कन उड़ाने वाले पहले भारतीय थे। 2010 में, रतन टाटा ने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के लिए एक कार्यकारी केंद्र बनाने के लिए $ 50 मिलियन दान किए थे, रतन टाटा ने इसी जगह से अपनी कॉलेज की पढ़ाई की है। यहां पर एक हॉल को टाटा हॉल का नाम दिया गया है।
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रतन टाटा की पहली नौकरी टाटा स्टील में थी जो उन्होंने वर्ष 1961 में शुरू की थी। उनकी पहली जिम्मेदारी ब्लास्ट फर्नेस और लाइमस्टोन पत्थर के सप्लाई को मैनेज करना था। 1991 में में टाटा समूह के चेयरमैन बनने के बाद उन्होंने अपने बिजनेस स्किल के जरिए 21 साल में टाटा समूह के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। 21 साल में रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप का राजस्व 40 गुना और लाभ को 50 गुना तक बढ़ा दिया। 1991 में केवल 5.7 बिलियन डॉलर कमाने वाली कंपनी ने 2016 में लगभग 103 बिलियन डॉलर कमाए।