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क्यों मची है रार! 8 तस्वीरों में समझें क्या अंतर है ओल्ड पेंशन स्कीम और NPS में
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ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस को अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में 1 अप्रैल 2004 से बंद कर दिया गया था और इसे राष्ट्रीय पेंशन स्कीम यानी एनपीएस मे तब्दील कर दिया गया था।
देश में बहुत से कर्मचारी संगठन ओपीएस को लागू कराने के लिए आंदोलन चला रहा है। कर्मचारी संगठनों की ओर से समय-समय पर ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने की मांग की जा रही है।
दरअसल, कर्मचारी संगठनों का मानना है कि ओपीएस की जगह एनपीएस में बहुत कम फायदे मिलते हैं। इसमें कर्मचारी और उनके परिवार भविष्य सुरक्षित नहीं है। यही नहीं रिटायरमेंट के बाद जो पैसा मिलता भी है, उस पर टैक्स लगता है।
ओल्ड पेंशन स्कीम में कर्मचारी की अंतिम सैलरी का 50 प्रतिशत पेंशन रकम होती थी। इस रकम का भुगतान सरकार करती थी। दूसरी ओर एनपीएस के तहत वे कर्मचारी जिन्होंने 1 अप्रैल 2004 के बाद नियुक्ति पाई है, वे अपनी सैलरी से 10 प्रतिशत रकम पेंशन के लिए देते हैं।
सरकार इसमें 14 प्रतिशत का योगदान देती है। पेंशन का पूरा 24 प्रतिशत हिस्सा पेंशन रेगुलरेटर यानी पीएफआरडीए के पास जमा किया जाता है। वो इसे सही जगह निवेश करता है, जिससे रकम बढ़ती है।
एनपीएस में सरकारी कर्मचारियों को इन्वेस्टमेंट की मंजूरी दी जाती है। वे पूरे कार्यकाल में पेंशन अकाउंट में रेगुलर योगदान कर पैसे को इन्वेस्टमेंट का अप्रुवल दे सकते हैं। रिटायर होने पर पूरी पेंशन रकम का एक हिस्सा एक बार में निकाल सकते हैं।
कर्मचारी बची हुई रकम के लिए एन्युली प्लान खरीद सकते हैं। इसे मासिक, तिमाही या वार्षिक स्तर पर निकाल भी सकते हैं।
रिटायर हो चुके संबंधित कर्मचारी को उसके निधन तक यह रम रकम मिलती रहती है। इसके बाद पूरी रकम एकमुश्त वो जिसे नॉमिनी बनाया होता है, उसे मिल जाती है।