क्या है हिन्दी का इतिहास, किस भाषा को कहा जाता है इसकी जननी, जानें रोचक फैक्ट्स
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कब हुई हिन्दी की शुरुआत?
ऐसा कहा जाता है कि हिन्दी भाषा का इतिहास 3400 साल से भी ज्यादा पुराना है। 1500 ईसा पूर्व हिन्दी की शुरुआत हुई थी और 1900 ईसवी में हिन्दी खड़ी बोली में लिखना-पढ़ना शुरू किया गया।
हिन्दी की जननी किसे कहा जाता है?
हिन्दी की जननी संस्कृत को कहा जाता है। संस्कृत भाषा से ही हिन्दी का उदय हुआ। प्राचीन धर्म ग्रंथ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए थे। बाद में इन धर्म ग्रंथ को हिन्दी भाषा के रूपांतरित किया गया था।
क्या हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला है?
नहीं, संविधान में हिन्दी को हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। महात्मा गांधी ने साल 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की थी।
14 सितंबर का दिन कैसे तय हुआ?
साल 1949 में 14 सितंबर के दिन ही संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा बनाने का फैसला लिया था। हिंदी दिवस पहली बार 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था। हिन्दी विश्व में चौथी ऐसी भाषा है जिसे सबसे ज्यादा लोग बोलते हैं। हिंदी दिवस का आयोजन सबसे पहले साल 1953 में हुआ था। इसको मनाने का उद्देश्य हिंदी भाषा की स्थिति और विकास पर होने वाले मंथन को ध्यान में रखना है।
कब मिला राजभाषा का दर्जा?
हिन्दी को 14 सितंबर, 1949 में हिन्दी को राजभाषा बनाने का फैसला किया गया था।
पंडित नेहरू ने हिन्दी को लेकर क्या तर्क दिए थे?
13 सितंबर, 1949 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संसद में चर्चा के दौरान कहा था, किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता। कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती। भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में हमें हिंदी को अपनाना चाहिए।
हिन्दी पर कैसे हावी हो गई अंग्रेजी?
26 जनवरी, 1950 को जब हमारा संविधान लागू हुआ। हिंदी सहित 14 भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं के रूप में आठवीं सूची में शामिल किया गया। 26 जनवरी 1965 को अंग्रेजी की जगह हिंदी को पूरी तरह से देश की राजभाषा बनाना था। इस बीच दक्षिण भारत हिंदी के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए। हिंदी विरोधी आंदोलन के बीच 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित किया गया, जिसने 1965 के बाद अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में प्रचलन से बाहर करने का फैसला बदलना पड़ा। हिन्दी के खिलाफ तमिलनाडु में हिंसक प्रदर्शन होने लगे। लोगों ने आत्मदाह की कोशिशें की। जिसके बाद 1967 में राजभाषा अधिनियम में संशोधन किया गया। इस संशोधन में तय हुआ कि गैर-हिंदी भाषी राज्य जब तक चाहे, तब तक अंग्रेजी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में आवश्यक माना जाए। आज भी यही व्यवस्था लागू है।