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सर्टिफिकेट, डिग्री और डिप्लोमा कोर्स में क्या है अंतर, 12वीं के बाद एडमिशन लेनें से पहले जानें जरूरी फैक्ट्स
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झांसे में आने से बचें
देश में प्राइवेट संस्थाएं बढ़ती जा रही हैं। इसके साथ-साथ कई ऐसी संस्थाएं भी मिल जाती हैं जो बोगस होती है। कई बार छात्र इस तरह की कोर्स के झांसे में आ जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि छात्र एडमिशन लेने से पहले इसके बारे में अच्छी तरह से विचार कर लें।
सर्टिफिकेट कोर्स
सर्टिफिकेट कोर्स ज्यादातर वो छात्र करते हैं जो किसी कारण से अपनी पढ़ाई को ज्यादा समय नहीं दे सकते हैं या फिर जॉब करना उनकी जरूरत होती है। सर्टिफिकेट कोर्स को शार्ट-टर्म कोर्स भी कहा जाता है। इस कोर्स के जरिए कैंडिडेट्स को किसी एक स्किल्स की जानकारी दी जाती है। ज्यादातर यूनवर्सिटी और कॉलेज इस तरह के कोर्स का ऑफर स्टूडेंट्स को देती हैं। इन कोर्सज की अवधि कुछ महीनों से लेकर 1 साल तक होती हैं। इसके लिए कैंडिडेट्स को ज्यादा फीस भी नहीं देनी पड़ती है।
डिप्लोमा कोर्स क्या होता है
यह कोर्स सर्टिफिकेट कोर्स से थोड़ा सा अलग होता है। इस कोर्स के लिए कैंडिडेट्स को 1 से 2 साल का समय देना पड़ता है। डिप्लोमा कोर्स कई स्ट्रीम के लिए होते हैं। मेडिकल फील्ड हो या फिर इंजीनरिंग का फील्ड हर जगह कैंडिडेट्स के पास इस कोर्स का विकल्प होता है। डिप्लोमा कोर्स की खास बात ये होती है कि आप जिस कोर्स का सिलेक्शन करते हैं उस फील्ड के बारे में डिटेल्स के साथ जानकारी दी जाती है। इस तरह के कोर्स हॉस्पिटल, टेक्निकल संस्थाएं देती हैं। अब देश की कई बड़ी यूनिवर्सिटी भी इस तरह का कोर्स ऑफर करती हैं।
डिग्री कोर्स
डिग्री कोर्स मुख्य रूप से तीन से चार साल के होते हैं। इस तरह के कोर्स केवल मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों के द्वारा ही दिए जाते हैं या फिर किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से संबंध रखने वाले कॉलेज देते हैं। इस कोर्स को बैचलर कोर्स भी कहा जाता है।
मास्टर डिग्री
मास्टर डिग्री उन्हीं छात्रों को मिल सकती है जिन्होंने डिग्री कोर्स को पूरा किया हो। मास्टर कोर्स में एमए, एमबीए, एमकॉम जैसे कोर्स शामिल होते हैं। इसके साथ-साथ ही कैंडिडेट्स को पीएचडी भी करते हैं। ज्यादातर मास्टर कोर्स 2 से 3 साल के होते हैं।