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पाक के इस राष्ट्रपति ने मिल्खा को दिया था फ्लाइंग सिख का नाम, बंटवारे में खो दिया था परिवार
स्पोर्टे्स डेस्क. भारत के महान धावक मिल्खा सिंह (milkha singh) का निधन हो गया। वो 91 साल के थे। कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ में भर्ती किया गया था। रात 11.40 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन के साथ भारतीय खेल के एक युग का अंत हो गया। मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख (flying sikh) के नाम से भी जाता जाता है। यह नाम उन्हें पाकिस्तान में मिला था। आइए जानते हैं मिल्खा सिंह के जीनव से जुड़े कुछ रोचक फैक्ट्स।
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कब हुआ था जन्म
मिल्खा सिंह का जन्म 1929 में ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के एक गांव गोविंदपुरा में हुआ था। विभाजन के बाद ये गांव पाकिस्तान में चला गया। 1947 में विभाजन के दौरान मिल्खा सिंह दिल्ली आ गए। उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाईयों का सामना किया। बंटवारे के समय उन्होंने माता-पिता समेत अपने आठ भाई बहनों को खो दिया था।
सेना में भर्ती हुए
भारत आने के बाद उन्होंने सेना में शामिल होने का फैसला किया था। इस फैसले ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी और एक क्रॉस-कंट्री रेस ने उनके प्रभावशाली करियर की नींव रखी। उनका नाम सुर्खियों में तब आया जब उन्होंने एक रेस में 394 सैनिकों को हरा दिया। इसके बाद उनका नाम आगे की ट्रेंनिग के लिए रखा गया।
देश के लिए जीता पहला गोल्ड
1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में मिल्खा सिंह ने गोल्ड मेडल जीता। यह आजाद भारत का पहला गोल्ड मेडल था। हालांकि 1960 के रोम ओलिंपिक में मिल्खा पदक से चूक गए थे। मिल्खा ने 1956 में मेलबर्न में ओलंपिक, 1960 में रोम में ओलंपिक और 1964 में टोक्यो में ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
ऐसे पड़ा फ्लाइंग सिख नाम
रोम ओलंपिक में हार के बाद 1960 में पाकिस्तान के इंटरनेशनल ऐथलीट खेल के लिए उन्हें बुलाया गया। मिल्खा सिंह बंटवारे के दर्द के कारण कभी भी पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। बहुत समझाने के बाद उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। कहा जाता है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री मिल्खा सिंह ने उन्हें इस रेस में शामिल होने के लिए मनाया था 1958 में अब्दुल खालिक को एशिया के सबसे तेज धावक माना जाता था। इस खेल में मिल्खा सिंह का मुकाबला अब्दुल खालिक से था, लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए। मिल्खा की जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने 'फ्लाइंग सिख' का नाम दिया। अयूब खान ने मिल्खा सिंह से कहा था, 'आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं। इसके बाद से ही उन्हें 'द फ्लाइंग सिख' कहा जाने लगा।
मिल्खा सिंह का करियर
तीन ओलंपिक 1956 मेलबर्न, 1960 रोम और 1964 टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने हिस्सा लिया। रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था। 1958 और 1962 के एशियाई खेलो में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था।