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किसी ने झुग्गी में रहकर तो किसी ने टूटे बल्ले के साथ हासिल किया अपना मुकाम, सभी के लिए मिसाल हैं ये खिलाड़ी
नई दिल्ली. महिला दिवस के मौके पर हर जगह महिलाओं और उनके योगदान के चर्चे हैं। उन सभी औरतों और लड़कियों को याद किया जा रहा है, जो दूसरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। जगह-जगह आयोजित कार्यक्रमों में उन्हें सम्मान भी मिलेगा, पर इस मौके पर भी भारतीय क्रिकेट टीम की खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया की धरती पर भारत को पहली बार T-20 वर्ल्डकप का खिताब जिताने के लिए जूझ रही होंगी। टीम में मौजूद हर खिलाड़ी आज हमारे लिए सुपर स्टार है, पर यहां तक पहुंचने का किसी भी खिलाड़ी का सफर इतना आसान नहीं रहा है। टीम इंडिया की हर खिलाड़ी सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। हर खिलाड़ी के जीवन से आप कुछ ना कुछ सीख सकते हैं।
| Published : Mar 07 2020, 09:22 PM IST
किसी ने झुग्गी में रहकर तो किसी ने टूटे बल्ले के साथ हासिल किया अपना मुकाम, सभी के लिए मिसाल हैं ये खिलाड़ी
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किसी खिलाड़ी ने टूटे बैट के साथ अपना करियर बनाया तो किसी ने लकड़ी से खुद ही अपना बैट बना लिया। आभावों में जीते हुए इन खिलाड़ियों ने अपना नाम बनाया है और अब देश का नाम रोशन कर रही हैं।
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स्मृति मांधाना को आस पड़ोस के लोग कहते थे कि दिन भर धूप में दौड़ोगी भागोगी तो काली पड़ जाओगी, फिर कौन ब्याह करके ले जाएगा। हालांकि उनके परिवार ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया और उनका सपोर्ट किया, जिसकी बदौलत इस महिला खिलाड़ी ने यह मुकाम हासिल किया।
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शेफाली वर्मा के पिता संजीव वर्मा के साथ ठगी हो गई थी, परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा था। शेफाली के पास ग्लव्स खरीदने तक के पैसे नहीं थे। वो फटे हुए ग्लव्स और टूटे बल्ले के साथ खेलती थी, पर पिता ने पैसे उधार लेकर अच्छे क्लब में बेटी का दाखिला करवाया और शेफाली ने उनके फैसेल को सही साबित करते हुए वहां से टीम इंडिया तक का रास्ता तय किया।
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महिला दिवस के अवसरह पर ही अपना जन्मदिन मनाने वाले हरमनप्रीत कौर का जीवन भी महिलाओं के लिए एक मिसाल है। हरमन पहले हॉकी और एथलेटिक्स खेलती थी, पर बाद में उनका मन क्रिकेट में लगने लगा। पिता की कमाई ऐसी नहीं थी कि उन्हें क्रिकेट किट भी नसीब होती, पर अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने टीम इंडिया में अपनी जगह बनाई।
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टीम इंडिया की विकेटकीपर तानिया भाटिया के साथ खेलने के लिए लड़कियां भी नहीं होती थी। उन्हें लड़कों के साथ प्रैक्टिस करनी पड़ती थी। हालांकि, उन्हें इसका फायदा भी मिला और अब वो वर्ल्डकप में भारत के लिए कमाल कर रही हैं।
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वेदा कृष्णमूर्ति जब सिर्फ 11 साल की थी तब उनका परिवार शिफ्ट हो गया था। इस छोटी सी उम्र में वो अपने परिवार से दूर करीबन 9 महीने तक अकेले रहती थी। इसके बाद उनकी बहन उनके साथ रहने के लिए आई। बाद में उन्होंने इस संघर्ष को सही साबित करते हुए टीम इंडिया में अपनी जगह बनाई।
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भारतीय टीम की लेग स्पिनर पूनम यादव को सामाज की छोटी सोच का सामना करना पड़ा था। महज 8 साल से क्रिकेट खेलने वाली पूनम को उनके पिता ने समाज के दबाव में आकर क्रिकेट खेलने से मना कर दिया था, पर पूनम नहीं मानी और उन्होंने अपने कोच से बात की। उनके कोच ने पिता को समझा लिया और पूनम आज भारतीय टीम का हिस्सा हैं।
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कभी मुंबई की झुग्गियों में रहने वाली राधा यादव के पिता एक छोटी सी दुकान के मालिक थे। दुकान से घर का खर्च चलाना भी मुश्किल होता था ऐसे में क्रिकेट किट का सवाल ही नहीं पैदा होता था। राधा ने लकड़ी से खुद का बैट बनाया और प्रैक्टिस शुरू कर दी। बाद में प्रफुल्ल सर की मदद से राधा को प्रैक्टिस का बेहतर मौका मिला और वो प्रोफेशनल क्रिकेटर बन गई। पहले उन्हें 10 से 15 हजार रुपये महीने की कमाई पर खेलना पड़ता था, पर अब वो भारतीय टीम का हिस्सा हैं।
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टीम इंडिया की लेफ्ट आर्म स्पिनर राजेश्वरी गायकवाड़ के पास आज भी रहने के लिए खुद का घर नहीं है। राजेश्वरी का परिवार किराए के मकान में रहता है। उनके पिता की स्टेडियम में ही मौत हो गई थी, जब वो अपनी बेटी को देखने के लिए आए थे। इसके बावजूद राजेश्वरी भारत के लिए कमाल कर रही हैं। उनका संघर्ष अभी जारी है।
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भारतीय टीम की विकेटकीपर नुजहत परवीन एक साधारण मुस्लिम परिवार से आती हैं। उनके समाज में आज भी कई तरह की बंदिशें हैं। हालांकि परवीन इन सब चीजों के बारे में कभी भी नहीं सोचा और अपने रास्ते पर आगे बढ़ती चली गई। इसी का नतीजा है कि वो आज भारतीय टीम का हिस्सा हैं।