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भारत की इस जगह पर मिलता था दुनिया का सबसे सस्ता पनीर, 5 रुपए में 1 किलो पैक करवाने दूर-दूर से आते हैं लोग
फूड डेस्क : आमतौर पर हम लोग जो पनीर खाते हैं, उसकी कीमत 300 से 600 रुपए किलो होती है। लेकिन भारत में एक ऐसी जगह भी है जहां कभी 5 रुपये किलो में भी पनीर मिलता था। जी हां, हम बात करे रहे हैं उत्तराखंड (uttarakhand) में मसूरी के पास स्थित रौतू की बेली गांव की, जहां इतनी ज्यादा मात्रा में पनीर बनाया जाता है, कि इस गांव का नाम ही पनीर वाला गांव (paneer village) रख दिया गया है। 1980 में जब कुंवरसिंह पंवार ने पनीर बेचने का काम शुरू किया था। तब पनीर चार से पांच रुपए किलो बिकता था। इस पनीर की डिमांड इतनी है कि दूर-दूर से लोग इसे लेने आते हैं।
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ये कोई आम पनीर नहीं बल्कि पनीर के गांव यानी की पनीर विलेज का स्पेशल पनीर है। स्वाद और सेहत में कमाल ये पनीर उत्तराखंड के लोगों में काफी फेमस है।
ये पनीर किसी फैक्ट्री या बड़ी डेरी में नहीं बनाया जाता, बल्कि मसूरी के पास स्थित टिहरी जिले के रौतू में बेली गांव में घर-घर में बनाया जाता है। पनीर बेचना यहां के लोगों का मुख्य काम है।
एक वक्त था जब गांव के लोगों की आमदनी का जरिया सिर्फ खेती और पशुपालन था। यहां के लोग मसूरी और देहरादून जाकर दूध बेचा करते थे, जिसमें बहुत मेहनत लगती थी और कमाई भी इतनी नहीं होती थी। इसी दौरान गांव के लोगों ने मसूरी में कुछ लोगों को पनीर बेचते देखा, तब उन्होंने सोचा कि क्यों न उन्हें भी दूध की जगह पनीर बेचना चाहिए।
1980 में सबसे पहले पनीर बनाकर बेचने का काम कुंवरसिंह पंवार ने शुरू किया था। तब पनीर चार से पांच रुपए किलो बिकता था। लेकिन आज इस पनीर की कीमत 220 से 240 रुपये किलो हो गई है, फिर भी बाजार के अपेक्षा यहां का पनीर ज्यादा ताजा और सस्ता होता है।
छोटी सी आबादी वाले इस गांव के लोगों के हाथों का बना पनीर मसूरी ही नहीं बल्कि देहरादून और दिल्ली तक के लोगों को बहुत पसंद आता है। शुरुआत में पनीर उत्पादन का काम गांव के 35 से 40 परिवार ही करते थे, लेकिन अब गांव के सभी परिवार इस बनाने का काम करते है और रोजाना 2 से 4 किलो तक पनीर बना लेते हैं।
बता दें कि 250 परिवार वाले इस गांव की आबादी लगभग 1500 लोगों की है। लेकिन इस छोटे से गांव को आज पूरे देश में पनीर विलेज के नाम से जाना जाता है।
यहां रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि, दूध बेचने की बजाय पनीर बेचने में ज्यादा फायदा है। पहले हम लोग पलायन की समस्या से परेशान थे, लेकिन अब तो गांव के युवा भी रोजगार के लिए शहर न जाकर पनीर के व्यवसाय में ही लग जाते हैं, जो गांव के लिए अच्छा संकेत है।