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'जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मरद गया नसबंदी में'
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26 अगस्त, 1927 को हरियाणा में जन्मे बंसीलाल को 'आधुनिक हरियाणा' का जनक माना जाता है। लेकिन आपातकाल के दौरान लगा एक दाग वे जिंदगीभर अपने माथे से नहीं धो पाए। आपातकाल के दौरान बंसीलाल को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी का करीबी विश्वासपात्र माना जाता था।
चौधरी बंसी लाल दिसंबर 1975 से मार्च 1977 तक रक्षामंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने पुरुषों की नसबंदी कराने के क्रूर अभियान में पूरी भागीदारी की थी। बंसीलाल की मृत्यु 28 मार्च, 2006 में हुई थी।
नसबंदी और बंसीलाल से जुड़ा एक किस्सा काफी चर्चित रहा है। आपातकाल खत्म होने के बाद बंसीसाल हरियाणा के दौरे पर निकले थे। वहां एक पंचायत के दौरान वे लोगों से बातचीत कर रहे थे। तभी एक युवक खड़ा हुआ। उसने सबके सामने अपनी धोती खोल दी। उसने बताया कि वो कुंवारा था, फिर भी जबर्दस्ती पकड़कर उसे शिविर में ले जाया गया और नसबंदी कर दी गई। नसबंदी के दौरान बंसीलाल और संजय गांधी को लोग एक विलेन के तौर पर देखने लगे थे। (एक पुरानी तस्वीर)
आपातकाल 1975-77 के बीच करीब 21 महीने लागू रहा था। इस अवधि को समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था। इसके बाद के आम चुनाव में विपक्ष ने एक नारा दिया था-'द्वार खड़ी औरत चिल्लाए..मेरा मरद गया नसबंदी में!'
आपातकाल के दौरान पुरुषों की नसबंदी कराने का क्रूर आइडिया संजय गांधी का था। तब उनके हर कदम पर मेनका गांधी भी साथ थीं। आपातकाल में चुनाव स्थगित कर दिए गए थे। इंदिरा गांधी के सभी राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया था। प्रेस की आजादी पर पाबंदी लगा दी गई थी। इसे लेकर देशभर में जनआक्रोश फैल गया था।
इसलिए लगाया था आपातकाल: आपातकाल के बीज 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में पड़ गए थे। इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट से राजनारायण को हराया था। जयप्रकाश नारायण के सबसे ताकतवर साथी राजनारायण ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई थी। इससे इंदिरा गांधी ने अपने खिलाफ माना और आपातकाल की घोषणा कर दी। (एक पुरानी तस्वीर)
आपातकाल से पहले इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग कराया था। तब मोहम्मद अली जिन्ना के सचिव रहे मुइन उल हक चौधरी ने इंदिरा गांधी के रबर स्टाम्प कहे जाने वाले तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के साथ मिलकर असम में 20 लाख से अधिक बांग्लाभाषी मुसलमानों को बसाया था। इसका विरोध आज तक देखा जाता है। (एक पुरानी तस्वीर में बंसीलाल)
आपातकाल को लेकर देशभर में जनआक्रोश फैल गया था। 1977 को हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी को बुरी तरह शिकस्त खानी पड़ी थी। यह और बात है कि इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक विरोधियों को दमन करने उन्हें जेलों में ठुंसवा दिया था। आंदोलनों को कुचलने पूरी सरकारी मशीनरी लगा दी थी। (एक पुरानी तस्वीर में बंसीलाल)
आपातकाल के दौरान देशभर में जनअंदोलनों का दौर-सा चल पड़ा था। जेपी नारायण के ताकतवर साथी राजनारायण को इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़ा होने की प्रेरणा अपने प्रिय नेता डॉ. राममनोहर लोहिया से मिली थी। (1975 का मामला: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद बाहर निकलते हुए राजनारायण और शांति भूषण)
राज्यपाल बीएन चक्रवर्ती से 21 मई 1968 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करते हुए चौधरी बंसी लाल।
चौधरी बंसीलाल ने हरियाणा के विकास में बड़ा योगदान दिया, लेकिन आपातकाल की गलतियां उनके जीवन पर भारी पड़ीं।