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ओमिक्रॉन के बीच एक और वायरस का अटैक, जानवरों को नहीं इंसानों को संक्रमित कर रहा 'Monkey Fever', जानें लक्षण
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क्या है मंकी फीवर
मंकी फीवर को मेडिकल भाषा में क्यासानूर वन रोग (Kyasanur Forest disease) कहा जाता है, क्योंकि इसे सबसे पहले क्यासानूर के जंगलों में पाया गया था। यह एक वायरल रक्तस्रावी बुखार है, जो एक वायरस के कारण होता है जो कि फ्लैविविरिडे परिवार से संबंधित है। कीड़े या टिक इस वायरस को फैलाते है और मनुष्य इन कीड़ों के काटने से संक्रमित हो जाते हैं।
बंदरों और इंसानों को होता है संक्रमण
मंकी फीवर एक वेक्टर जनित बीमारी है जो मुख्य रूप से बंदरों और मनुष्यों को प्रभावित करती है। संक्रमण उन लोगों में फैलता है जो संक्रमित मृत बंदरों को संभालते हैं। यह तेज बुखार, मतली, उल्टी, दस्त और तंत्रिका संबंधी और रक्तस्रावी लक्षणों की अचानक शुरुआत के साथ एक जूनोटिक बुखार है।
कब हुई इसकी शुरुआत
जानकारों की मानें तो सबसे पहले क्यासानूर फॉरेज डिसीज वायरस की पहचान 1957 में हुई थी, जब इसे कर्नाटक के क्यासानूर जंगल में एक बीमार बंदर के अंदर पाया गया था। इसके बाद 400-500 इंसानों में इस बीमारी के मामले हर साल दर्ज किए गए थे।
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कहां पाया गया मरीज
मंकी फीवर एक tick-borne viral haemorrhagic fever है, जो देश के दक्षिणी भाग में पाया जाता है। बताया जा रहा है कि केरल के वायनाड जिले में थिरुनेल्ली ग्राम पंचायत में पनावली आदिवासी बस्ती के एक 24 वर्षीय व्यक्ति को क्यासानूर वन रोग (केएफडी) या बंदर बुखार के रूप में पहचाना गया है। फिलहाल उसकी स्वास्थ्य स्थिति स्थिर है और अभी तक कोई अन्य मामला सामने नहीं आया है।
मंकी फीवर के लक्षण
मंकी फीवर में आमतौर पर एक गंभीर तेज सिरदर्द के साथ ठंड लगना शुरुआती लक्षण है, जिसके बाद लक्षणों की शुरुआत के 4 दिनों के बाद नाक, गले, मसूड़ों और यहां तक कि आंत से खून बहना होता है। यह बुखार आम तौर पर 3-8 दिन तक होता है। इसके अन्य लक्षणों में मतली, उल्टी, मांसपेशियों में जकड़न और खून बहने की समस्या भी शामिल है। इस बीमारी से मृत्यु दर 3 से 5 फीसदी के बीच है।
मंकी फीवर का उपचार
अभी तक मंकी फीवर का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। हालांकि, कोई भी लक्षम दिखने पर तत्काल चिकित्सा सहायता लेने की सिफारिश की जाती है।
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