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क्या है ECMO तकनीक? जिसकी मदद से कोरोना मरीजों के फेफड़ो तक पहुंचाई जाती है ऑक्सीजन, जानें इससे जुड़ी डिटेल्स
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क्या है ECMO तकनीक
एक्स्ट्री-कॉरपोरियल मैम्ब्रेन ऑक्सीजेनेयसन यानि कि ECMO डिवाइस लाइफ सपोर्ट सिस्टम कहलाता है। जिसमें एक आर्टिफिशियल हार्ट और फेफड़ों की जोड़ी शरीर के बाहर से काम करती है। यह शरीर को उस वक्त ऑक्सीजन सप्लाई करता है, जब मरीज के फेफड़े या दिल काम नहीं कर पाते हैं। जब मरीज को सांस लेने में परेशानी हो रही हो, तब ईसीएमओ डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है।
1960 में हुआ था इसका अविष्कार
ECMO मशीन आज का अविष्कार नहीं है। इसका इस्तेमाल 1960 के दशक से किया जा रहा है। खासकर उन नवजात बच्चों के लिए इसका उपयोग होता था, जिन्हें सांस लेने में तकलीफ हो। लगभग पांच साल पहले इसका उपयोग युवा और बुजुर्ग मरीजों के इलाज के लिए भी किया जाना लगा है।
कैसे काम करती है ECMO मशीन
ECMO मशीन की ट्यूब को मरीजों की बड़ी नस जैसे- गर्दन, छाती या कमर में डाली जाती है। ये ट्यूब मरीज के खून को आर्टिफिशियल ऑक्सीजनेटर (या आर्टिफिशियल फेफड़े) तक ले जाने में मदद करती है। इस मशीन के जरिए ब्लड से कार्बन डाइऑक्साइड को हटा दिया जाता है और प्यूर ऑक्सीजन को ब्लड में जोड़ा जाता है जिसे मरीज के शरीर में वापस पंप किया जाता है।
कब होता है ECMO का इस्तेमाल
बात दें कि ईसीएमओ तकनीक डॉक्टरों के सामने आखिरी ऑप्शन्स में से एक है। जब दूसरे संभावित विकल्प जैसे वैंटिलेटर या अन्य साधनों से मरीज की स्थिति ठीक नहीं होती है, तब इसका इस्तेमाल किया जाता है।
इन चीजों में होता है ECMO का इस्तेमाल
कोरोनावायरस रोगियों के लिए उपयोग किए जाने के अलावा, ईसीएमओ तकनीक का उपयोग हार्ट या फेफड़े के ट्रांसप्लांट के दौरान रोगियों के लिए भी किया जाता है। साथ ही, निमोनिया से ग्रसित मरीज और जिन मरीजों ने जहर खाया है उनके इलाज के लिए भी होता है।
ECMO तकनीक में कितना खर्च आता है
ईसीएमओ एक काफी महंगी तकनीक है, जिसका इस्तेमाल फिलहाल केवल महंगे निजी अस्पतालों में किया जा रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, ईसीएमओ प्रक्रिया में शुरुआत के 2 दिनों में प्रति दिन 1.75 लाख रुपये से 3 लाख रुपये के बीच खर्च आता है। उसके बाद, प्रति दिन 80 हजार से 1 लाख रुपये के बीच इसका चार्ज होता है।
क्या रिस्की है ईसीएमओ तकनीक
ईसीएमओ तकनीक से ब्लीडिंग की संभावना सबसे ज्यादा होती है। चूंकि ईसीएमओ मशीन पर डालने से पहले मरीजों को खून पतला करने वाली दवा दी जाती है, इसलिए उनके शरीर के कई हिस्सों से ब्लीडिंग का खतरा होता है। इसके अलावा, ईसीएमओ तकनीक से कई मरीजों में किडनी फेल होने की समस्या भी हो सकती है। इसके साथ ही शरीर में संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है।
भारत में बढ़ी ECMO की डिमांड
जब कोई COVID-19 रोगी के फेफड़ों में संक्रमण बहुत ज्यादा बढ़ा जाता है, तो ECMO तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में कोरोना की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा दिक्कत फेफड़ों और सांस लेने में आ रही है, इसलिए इसकी डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ गई है।
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