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दर्दनाक है इन वर्दी वाली महिलाओं की कहानी, बच्चों को गोद ले भूखी-प्यासी डटीं, देखिए बेबसी की तस्वीरें
रांची (झारखंड). अक्सर देखा है कि जब कोई अपनी मांगों को लेकर धरना या हड़ताल करता हो तो उनको हटाने के लिए पुलिस वहां पहुंच जाती है। लेकिन झारखंड में सहायक पुलिसकर्मी (assistant policemen) सरकार (jharkhand government) के खिलाफ अपनी सेवा को नियमित करने और विभिन्न मांगों को लेकर राजधानी रांची में धरना-प्रर्दशन (trike) कर रहे हैं। इस आंदोलन में शामिल होने वाली पुलिसकर्मी महिलाएं भी हैं, जिसमें कोई बच्चों को गोद में लेकर तो कई गर्भवती (pregnant woman) होने के बावजूद भी 100 किलोमीटर पैदल सफर तय करके यहां पहुंची हैं। सभी की सरकार से एक ही मांग है कि उनको समान काम का समान वेतन मिलना चाहिए।

सहायक पुलिसकर्मियों का कहना है कि मुख्यमंत्री जी से निवेदन है कि महंगाई के इस दौर में 10 हजार रुपये प्रति माह के वेतन से परिवार का गुजारा नहीं हो रहा। इसलिए हम लोग मजबूर होकर यह आंदोलन कर रहे हैं। दिन रात ड्यूटी करने के बाद भी हमको कोई सुविधा नहीं मिलती है। जबकि परमानेंट पुलिस को हम से कहीं ज्यादा पैसा मिलता है और काम हम उनके ही बराबर करते हैं। अपनी बेबसी की कहानी सुनाते हुई सात महीने की गर्भवती महिला सहयक पुलिसकर्मी मनीता देवी रोने लगी। कहने लगी कि डॉक्टर ने आराम करने को कहा है, लेकिन क्या करूं अगर आराम करूंगी तो आने वाले बच्चे को क्या भविष्य दूंगी।
बता दें कि राज्य के 12 नक्सल प्रभावित जिलों के 2500 पुलिसकर्मी अपनी नौकरी को परमानेंट करने की मांग को लेकर रांची के मोरहाबादी मैदान में डटे हुए हैं। जहां वह 24 घंटे पैदल सफर तय करके यहां पहुंचीं हैं। सात महीने की बच्ची लेकर धरना दे रही मनीता देवी का कहना है कि साल 2017 में हमको अनुबंद करके भरोसा दिलाया था कि उनको अच्छा काम करने पर पुलिस में सीधी नियुक्ति कर दी जाएगी। लेकिन अब तीन होने जा रहे हैं और अनुबंध भी खत्म होने वाला है, लेकिन सरकार ने हमारी कोई सुध नहीं ले रही।
इस आंदोलन में शामिल होने वाली कई महिलाएं तो दो से तीन दिन 100 किलोमीटर सफर तय कर पहुंची हैं। उनके पैरों में छाले पड़ गए, तो किसी की तबीयत खराब हो गई। इसके बावजूद भी वह अपनी मांगों को लेकर धरना दे रही हैं।
सहायक महिला पुलिसकर्मियों ने रोते हुए कहा-यह कैसा राज है, जहां नक्सलियों के लिए घर मिलता है और हम वर्दी वाले बेघर हैं। पता नहीं हम कैसे अपने बच्चों को पालेंगे। बच्चे बिस्किट दिलाने की जिद करते हैं, लेकिन हम कहां से दिलादें, क्योंकि हमारे पास इतने पैसे भी नहीं हैं। ऐसा लगता है कि कहीं हम भूखे ही नहीं मर जाएं।
हाथ में बैनर-पोस्ट लेकर अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए युूं निकल पड़ीं महिला सहायक पुलिसकर्मी।
बता दें कि यह महिलाएं राज्य के 12 नक्सल प्रभावित जिलों से अपनी मांगों के लेकर राजधानी पहुंची हैं। जहां वह राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल के लिए खिलाफ धरना दे रहे हैं।