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जाबांज बेटे की शहादत पर रो पड़ी मां, लेकिन कहती रही कि उसका लाल बहादुर था, उसे अपने बेटे पर गर्व रहेगा

रांची, झारखंड.  लद्दाख की गलवान घाटी ( India China dispute) में शहीद हुए भारत के 20 जवानों में 2 झारखंड के थे। शुक्रवार को दोनों का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस दौरान हजारों लोग मौजूद थे। बता दें कि कुंदन कुमार ओझा साहिबगंज के रहने वाले थे, जबकि गणेश हांसदा पूर्व सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा ब्लॉक के कषाफलिया गांव के। शहीद कुंदन का अंतिम संस्कार साहिबगंज में गंगा स्थित मुनीलाल घाट पर किया गया। वहीं, शहीद गणेश को उनके गांव में सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। दोनों को उनके छोटे भाइयों ने मुखाग्नि दी। इस दौरान शहीदों के मां- पिता का बुरा हाल था। लेकिन वे बार-बार अपने बेटे के बहादुरी पर गर्व भी करते रहे। पढ़िए दोनों की कहानी..

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Amitabh Budholiya
Published : Jun 19 2020, 05:33 PM IST
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26 वर्षीय कुंदन कुमार के साहिबगंज जिले के डिहारी गांव के रहनेवाले थे। शहीद के पत्नी ने कुछ दिन पहले ही बेटी को जन्म दिया था। तब शहीद ने फोन पर कहा था कि वे बहुत जल्द अपनी बेटी का चेहरा देखने आ रहे हैं। लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका। कुंदन के पिता रविशंकर किसान हैं। जब मंगलवार दोपहर 3 बजे कुंदन के शहीद होने की खबर घर पहुंची, तो उनकी मां भवानी को गहरा सदमा लगा। कुंदन की पत्नी नेहा बेहोश हो गई। कुंदन के भाई मुकेश और कन्हैया को कुछ समझ ही नहीं आया कि ये सब क्या हो गया।  (अपने बेटे को अंतिम विदाई देती मां) आगे पढ़िए बहादुर कुंदन कुमार की कहानी...

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जाबांज की अंतिम यात्रा 12 किमी तक निकली। इस दौरान हजारों लोग भारत माता की जयकारे लगाते रहे। लोगों ने चीन मुर्दाबाद के नारे भी लगाए। बेटे को अंतिम विदाई देते पिता रविशंकर। आगे पढ़ें..अपनी बेटी का चेहरा भी नहीं देख सका जवान..

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कुंदन कुमार जब 2011 में बीए की तैयारी कर रहे थे, तभी उनका चयन 16 बिहार दानापुर रेजिमेंट में हो गया था। इसके बाद 2012 में वे भारतीय सेना में चले गए। कुंदन कुमार की शादी 2017 में हुई थी। उनका एक छोटा बेटा है। करीब 20 दिन पहले उनकी पत्नी ने बेटी का जन्म दिया था। वे उसका चेहरा देखने घर आने वाले थे कि यह हादसा हो गया। फरवरी में ही छुट्टी से लौटे थे..

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कुंदन ने फरवरी में ही छुट्टी के बाद ड्यूटी ज्वाइन की थी। परिजन बताते हैं कि कुंदन शुरू से ही सेना में जाना चाहते थे। कुंदन की पत्नी नेहा बिहार के सुल्तानगंज के नीरहटी गांव की रहने वाली हैं। अपने पति की शहादत की खबर सुनकर उनके आंसू नहीं रुक रहे। मासूम बेटी का चेहरा देखकर वे यही कहती हैं कि उन्होंने आने का वादा किया था। आगे पढ़ें शहीद गणेश हांसदा की कहानी..

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बार्डर पर शहीद हुए गणेश हांसदा की उम्र महज 21 साल थी। उन्होंने 2018 में आर्मी ज्वाइन की थी। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद सितंबर, 2019 में पहली पोस्टिंग लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर हुई थी। आगे पढ़िये..सुबह से ही लोगों की भीड़ जुट गई थी..

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शहीद गणेश हांसदा का पार्थिव शरीर शुक्रवार सुबह हेलिकॉप्टर के जरिए उनके गांव लाया गया। गांव और आसपास के हजारों लोग वहां जुट गए थे। भारत माता के जयकारों के साथ उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई।

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इससे पहले दोनों शहीदों के पार्थिव शरीर गुरुवार शाम रांची पहुंच गए थे। यहां राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा समेत तमाम लोगों ने बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर दोनों शहीदों को श्रद्धांजलि दी। (शहीद गणेश हांसदा को अंतिम सलामी देते आर्मी के जवान..)

About the Author

AB
Amitabh Budholiya
बीएससी (बायोलॉजी), पोस्ट ग्रेजुएशन हिंदी साहित्य, बीजेएमसी (जर्नलिज्म)। करीब 25 साल का लेखन और पत्रकारिता में अनुभव। एशियानेट हिंदी में जून, 2019 से कार्यरत। दैनिक भास्कर और उसके पहले दैनिक जागरण और अन्य अखबारों में सेवाएं। 5 किताबें प्रकाशित की हैं

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