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लॉकडाउन में 10वीं पास सास ने बहू के संग मिलकर बनाया गजब का मोबाइल एप, देता है घर बैठे रोजगार

धनबाद, झारखंड. क्रियेटिविटी के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती। अब इन सास और बहू से ही मिलिए! सास मनोरमा सिंह की उम्र है 70 साल, जबकि बहू स्वाति कुमारी 32 साल की हैं। दोनों ने कोरोना काल का सदुपयोग किया और इस मौजूदा संकट में पढ़े-लिखे युवाओं को रोजागार दिलाने एक जबर्दस्त एप बना दिया। इसका नाम Guru-Chela रखा गया है। इस एप के जरिये छात्र-छात्राएं अपने लिए ट्यूशन ढूंढ सकते हैं। यानी शिक्षक भी अपने के लिए छात्र-छात्राएं। यानी यह एप ऑनलाइन या ऑफलाइन क्लासेस के लिए शिक्षक ढूढ़ने का बढ़िया जरिया है। इसके लिए एप पर पंजीयन कराना होगा। इससे कोरोना काल में परेशान प्राइवेट शिक्षकों को ट्यूशन मिल रहे हैं। यानी वे 8 से लेकर 20 हजार रुपए महीने तक कमा रहे हैं। इस एप के जरिये अब तक 40 से ज्यादा शिक्षकों को ट्यूशन मिल चुके हैं यानी उन्हें रोजगार मिला। वहीं, छात्र-छात्राओं को भी मार्गदर्शन मिल रहा है। सास-बहू धनबाद की धैया में रहती हैं। 

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Asianet News Hindi
Published : Aug 22 2020, 02:09 PM IST
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सास-बहू ने यह एप सिर्फ 2 महीने में तैयार कर दिया। सास-बहू ने बताया कि एप के जरिये इस साल 250 लोगों को रोजगार दिलाने का लक्ष्य रखा गया है। सबसे बड़ी बात सास महज 10वीं पास हैं। बहू ने बीएड किया हुआ है। दोनों ने फोन के जरिये शिक्षकों और छात्र-छात्राओं को जोड़ना शुरू किया था। इस बीच दिल्ली विवि से कम्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे मनोरमा के नाती वत्सल ने उन्हें एप बनाने का सुझाव दिया। यह एप प्ले स्टोर पर उपलब्ध है। आगे पढ़िए...11वीं पास किसान चलाता है देसी जुगाड़ वाला वर्कशॉप, मशीनें बेचकर कमाता है 2 करोड़ सालाना

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जोधपुर, राजस्थान. 11वीं पास इस इस किसान ने अपना खुद का एक वर्कशॉप बनाया हुआ है। इसमें देसी तकनीक से खेती-किसानी से जुड़ीं मशीनें तैयार करते हैं। ये मशीनें किसानों के लिए इतनी लाभदायक साबित हो रही हैं कि इनकी डिमांड देश के अलग-अलग राज्यों के अलावा दूसरे देशों से भी आने लगी है। यह हैं जोधपुर जिले के मथानिया में वर्कशॉप चलाने वाले अरविंद सांखला। बताते हैं कि ये इनका सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का है। अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े अरविंद बताते हैं कि 1991 में उन्होंने 11वीं पास की थी। वे आगे पढ़ना चाहते थे, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि मां-बाप उन्हें पढ़ा सकें। लिहाजा पढ़ाई छोड़कर खेतों में काम करने लगे। 1993 में एक घटना हुई, जिसने अरविंद साखला की किस्मत बदल दी। उनके खेत के कुएं की मोटर खराब हो गई। इसके बाद उन्होंने बोरिंग कराई। लेकिन आमतौर पर जब मोटर खराब होती है, तो उसे रस्सी से ऊपर खींचना और वापस अंदर रखना पड़ता है। इसमें समय और मेहनत दोनों काफी लगती है। इससे फसल को समय पर पानी नहीं मिलने से भी नुकसान होता है। यही देखकर उन्होंने देसी जुगाड़ से एक मशीन बनाई। यह मशीन मोटर को ऊपर लाने और नीचे ले जाने में कुछ मिनट का समय लेती है। साखला की यह मशीन लोगों को पसंद आई और इसकी खूब बिक्री हुई।  आगे जानिए और क्या-क्या किए आविष्कार...

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यह है अरविंद सांखला के देसी इंजीनियरिंग से निर्मित लोरिंग मशीन। यह मशीन बोरिंग से मोटर को खींचने और सुधरने के बाद वापस अंदर रखने का काम सरल करती है। इस मशीन की डिमांड काफी है।
 

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इस तरह सामने आई गाजर धोने की मशीन

पहले अरविंद अपने खेतों में मिर्च की फसल उगाते थे। मथानिया मिर्च उत्पादन में पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है। लेकिन सांखला ने देखा कि मिर्च की फसल को रोग लगने लगा है। जलस्तर भी नीचे जा रहा था। लिहाजा उन्होंने मिर्च के बजाय गाजर की फसल लेना शुरू कर दी। देखते-देखते यहां से करीब 25 ट्रक गाजर जाने लगी। अब समस्या गाजर की मिट्टी साफ करके धोने की थी। हाथ से ऐसा करने पर काफी समय और मेहनत लगती थी। इस तरह सामने आई ड्रम और इंजन के जुगाड़ से बनी गाजर धोने की यह मशीन।

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जब लोरिंग और गाजर धोने वाली मशीन की डिमांड बढ़ी, तो सांखला ने विजयलक्ष्मी इंजीनियरिंग वर्क्स के नाम से कृषि यंत्र बनाने की वर्कशॉप खोल ली। इसके बाद उन्होंने लहसुन, पुदीना और मिर्च निकालने-साफ करने की मशीन भी बनाई।

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अरविंद सांखला ने लहसुन निकालने के लिए यह मशीन बनाई। आमतौर पर हाथों से लहसुन निकालना कठिन होता है। इससे हाथों में जलन भी होती है। अब करीब 15000 रुपए की लागत से बनी यह मशीन आसानी से लहसुन निकाल देती है। 

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यह यह है मिर्च साफ करने की मशीन। इस मशीन से 250 किलो मिर्च सिर्फ एक घंटे में साफ हो जाती है। यह मशीन 4000 से 75000 रुपए तक में बिकती है।

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अरविंद साखला ने यह साबित किया कि कुछ करने के लिए क्रियेटिव होना जरूरी है। आज अरविंद देसी तकनीक से कृषि यंत्र तैयार करने वाले सबसे सफल बिना डिग्री वाले इंजीनियर हैं।

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