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गोद में 9 माह के बेटे को लेकर एक हजार KM पैदल चली यह मां, मासूम को दूध पिलाने के भी नहीं थे पैसे
इंदौर, लॉकडाउन को लागू हुए करीब डेढ़ महीने का समय बीत चुका है। लेकिन, आज भी कई मजदूर सैकड़ों किलीमटर पैदल चलकर अपने घर पहुंच रहे हैं। हालांकि, अपने-अपने प्रदेश के मजदूरों को वापस लाने के लिए राज्य सरकारें स्पेशल ट्रनों के जरिए उनको ला रही हैं। ऐसी ही एक मार्मिक तस्वीर इंदौर से सामने आई है। जहां एक महिला गुजरात से पैदल चलकर अपने घर प्रयागराज जा रही थी। उसके एक हाथ में ट्रॉली बैग था तो दूसरे हाथ में वह अपने 9 महीने के मासूम बेटे को लिए हुई थी।
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दरअसल, कुछ दिन पहले इंदौर ऑल इंडिया मूमेंट सेवा समिति के सदस्य अजय गुप्ता की नजर इस महिला पर पड़ी तो उन्होंने देखा कि एक महिला तपती दूप में बच्चे को लिए पैदल चली जा रही है। जब उन्होंने उसको रोककर पूछा तो उसने अपनी दर्दभरी कहानी बयां कर दी। महिला ने कहा कि वह सूरत से 1 हजार किलोमीटर चलकर आ रही है। वहां वह एक फैक्ट्री में काम करती थी,जब काम बंद हो गया तो खाने के लिए कुछ नहीं बचा तो ऐसे में उसने अपने घर प्रयागराज जाने की ठान ली। उसके पास एक पैसा भी नहीं था, जिससे वह अपने बेटे को रास्ते में दूध खरीदकर पिला सके। हालांकि बाद में जब इंदौर पुलिस को पता चला तो उन्होंने महिला को कानपुर तक पहुंचाने की व्यवस्था की।
मानवता की यह तस्वरी रायपुर की है। जहां जेल में सजा काट रहे कैदी की मौत हो जाने के बाद एक पुलिस कांस्टेबल ने उसका अंतिम संस्कार किया। क्योंकि, लाॉकडाउन के चलते मृतक के माता पिता नहीं पहुंच सके थे।
यह तस्वीर गुजरात के सूरत की है, जहां एक 7 माह की गर्भवती महिला को सौराष्ट्र जाना है। वह प्रशासन से कई बार जाने की गुहार लगा चुकी है, यहां तक की उसने ऑनलाइन परमिश की अर्जी डाली, लेकिन कोई अनुमति नहीं मिली। सब रास्ते बंद हो जाने के बाद वह मगलवार को कलेक्टर कार्यालय पहुंच गई और गुहार लगाई।
वहीं मानवता की यह तस्वरी गुजरात से सामने आई है। जहां एक दंपती ने अपनी शादी की 52 वीं सालगिरह पर बचत के सारे पैसे पीएम-सीएम-मेयर फंड में दान किया। कोरोना महामारी के बीच फंड में डोनेशन देने वाले श्रीपाल भाई और उनकी पत्नी सविता बेन हैं।
यह तस्वीर मुंबई की है। जहां लॉकडाउन के बीच एक बस्ती में घर के दरवाजे से झांकती बच्ची। वह कोरोना के कहर के चलते अपने घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है।