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4 दिन से भूखे प्यासे मजदूरों का दर्द, बोले अब मर भी जाएं तो गम नहीं..अपने गांव की मिट्‌टी तो मिलेगी

भोपाल/जयपुर. कोरोना वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है। इससे बचने के लिए मोदी सरकार ने लॉकडाउन तो कर दिया है। लेकिन इसका सबसे ज्यादा बुरा असर उन लाखों गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ रहा है। जो दिनभर मेहनत करके अपने परिवार का पेट भरते थे। लॉकडाउन होने के चलते उनके सारे काम ठप हो गए हैं। इन लोगों को पास ना तो रहने के लिए छत बचा है और ना ही खाने के लिए दो वक्त का खाना। ऐसे हालातों में यह मजदूर हाजरों किलोमीटर दूर अपने घरों को जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं। वहीं कुछ तो अपने घर पहुंच गए हैं तो कुछ अभी बीच रास्ते में हैं। वहीं गुजरात से अपने साथियों के साथ पैदल चले आ एमपी के  70 वर्षीय बुजुर्ग सुनील मिश्रा का कहना है कि अगर वहां रहते तो भूखे ही मर जाते। अब हम अपनी जन्मभूमि पहुंने वाले हैं। अगर अब हम मर भी जाते हैं तो कोई गम नहीं। कम से कम हमको मरने के लिए अपनी मिट्टी तो नसीब होगी।

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Asianet News Hindi
Published : Mar 28 2020, 04:13 PM IST| Updated : Mar 28 2020, 04:49 PM IST
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दरअसल, बुजुर्ग सुनील मिश्रा मूल रूप से बुराहनपुर के रहने वाले हैं। उहोंने कहा-हम सूरत में रहकर कई सालों से यहां की फैक्ट्रियों में काम करते थे। लेकिन लॉकडाउन के चलते सब बंद हो गया। उन्होंने कहा-मैंने दो दिन पहले दो रोटी खाईं थीं। जब से अभी तक और कुछ खाने को नहीं मिला। हम लोग रात में भी नहीं सोए बस चले जा रहे हैं। कब हम अपने गांव पहुंचेंगे।
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वहीं दूसरे मजदूर ने बताया कि हमको सेठ ने घर जाने के लिए कुछ रुपए दिए थे। कहा था, अपने-अपने घर चले जाओं यहां अब पता नहीं कब तक काम बंद रहे। तुम यहां भूखे मर जाओगे। इसलिए हम लोग अपने घर की और आ गए।
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वहीं इंदोर की एक दाल मिल में काम करने वाले मजदूर मनोज ने बताया। वह एमपी के भिलाईखेड़ा के रहने वाले हैं। उसने बताया कि जो पैसे बचे थे वह भी कुछ दिनों में खत्म हो गए। सोचा इंदौर में भूख-प्यास से मरने से अच्छा तो अपने गांव में ही चलकर मरते हैं।
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धार में भी यही नजारा देखने को मिला... गुजरात में काम करने गए मजदूर अपने घर वापस आते हुए। बड़ो के साथ बच्चों को भी पैदल चलना पड़ा।
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यह तस्वीर राजस्थान की है, जहां सैंकड़ों मजदूर मध्य प्रदेश के लिए पैदल निकल चुके हैं। उनके पैरो में छाले पड़ गए। पुलिस के समझाने के बाद भी उन्होंने घर जाने की जिद नहीं छोड़ी।
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इसमें से कुछ ने बताया वे सूरत में हीरा कारखानों में काम करते हैं। सेठ ने हमको फोन कर कहा कल से तुम काम पर नहीं आना। तो हम अगले ही दिन अपने घर जाने के लिए पैदल निकल पड़े।
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तस्वीर में दिखाई देने वाले यह मजदूर दो से तीन दिन तक पैदल चलने के बाद अपने गांव पहुंचे।
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खंडवा में भी खुले में भूखे प्यासे पड़े रहे मजदूर।

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