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नहीं रहे 400 मर्डर और 650 अपहरण करने वाले डाकू मोहर सिंह, लाइफ पर बनी चुकी है फिल्म..दिलचस्प है इनकी कहानी

भोपाल, मध्य प्रदेश. 400 हत्याएं और 650 से ज्यादा अपहरण के आरोपी रहे चंबल के कुख्यात बागी मोहर सिंह का मंगलवार सुबह 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। मोहर सिंह लंबे समय से बीमार थे। सरेंडर के बाद मोहर सिंह पूरी तरह से सामाजिक कार्यों में जुट गए थे। गरीब लड़कियों की शादी कराने में वे सबसे आगे रहे। सरकारी दस्तावेजों में उन पर तब 2 लाख रुपए का इनाम था। वहीं, उनके गैंग पर 12 लाख रुपए का। मोहर सिंह गांधीजी के विचारों से प्रभावित होकर चंबल से बाहर निकले थे। उन्होंने मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी के कहने पर हथियार डाल दिए थे। उनका आत्मसमर्पण कराने में गांधीवादी विचारक जयप्रकाश नारायण और पूर्व दस्यु तहसीलदार सिंह और लुक्का उर्फ लोकमन दीक्षित की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती थी। मोहर सिंह जमीनी विवाद के बाद 1958 में चंबल में कूद गए थे। 1972 में उन्होंने सरेंडर किया। मोहर सिंह और उनके भाई माधौसिंह ने 1982 में आई फिल्म 'चंबल के डाकू' में एक्टिंग भी की थी। पढ़िए मोहर सिंह की कहानी...

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Asianet News Hindi
Published : May 05 2020, 03:14 PM IST| Updated : May 05 2020, 03:59 PM IST
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पूर्व दस्यु सम्राट मोहर सिंह ने मंगलवार सुबह करीब 9 बजे भिंड जिले के मेहगांव कस्बा स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली। मोहर सिंह भिंड जिले की मेहगांव नगर पंचायत के अध्यक्ष भी रह चुके थे। उन्हें शुगर की बीमारी थी।
 

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सरेंडर के बाद मोहर सिंह सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे थे। उन्होंने अपने क्षेत्र की गरीब कन्याओं की शादी का बीड़ा उठा रखा था। वे खुद को डकैत कहलवाना पसंद नहीं करते थे। उन्हें लोग मोहर दद्दा के नाम से बुलाते थे।

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मोहर सिंह और उनके भाई माधौसिंह ने 1982 में रिलीज हुई फिल्म 'चंबल के डाकू' में अभिनय किया था। यह दस्यु समस्या पर बनी ऐसी पहली मानी जाती है, जिसमें किन्हीं असली बागियों(मोहर सिंह-माधौसिंह) ने काम किया था। इस फिल्म के हीरो जावेद खान थे। जावेद खान इन दिनों भोपाल में एक्टिंग अकादमी चलाते है। वहीं, इसे डायरेक्ट किया था एस. अजहर ने।

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बता दें कि मोहर सिंह ने ज्यादातर पुलिसवालों और मुखबिरों को गोलियों से भूना। मोहर सिंह ने एक बार इंटरव्यू में कहा था कि जब वे चंबल के बीहड़ों में कूदे, तब वे नाबालिग थे। लिहाजा किसी भी गैंग ने उन्हें शामिल नहीं किया। लोग उन्हें नौसिखिया कहते थे। इसे उन्होंने एक चुनौती माना और फिर 150 आदमियों की खुद की गैंग खड़ी कर दी।

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मोहर सिंह के गैंग पर उस समय सबसे अधिक 12 लाख रुपए का इनाम था। पुलिस उन्हें लगातार ढूंढ रही थी, लेकिन वे बचते रहे। इस बारे में उनका कहना था कि उनके गैंग ने कभी भी किसी मां-बहन या बेटी के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया। उन्हीं की दुआओं से वे जिंदा बच गए। वर्ना पुलिस कब का एनकाउंटर कर देती।

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