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भूखों मरने की आई नौबत तो 15000 का बैल 5000 में बेचा, फिर एक बैल के साथ बैलगाड़ी में खुद जुत गया युवक
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राहुल ने बताया कि उसकी भाभी ने भी कुछ दूर तक बैलगाड़ी खींची। भाई भी बीच-बीच में मदद को गाड़ी खींचता है। आगे पढ़िये इसकी कहानी का शेष भाग
बैलगाड़ी पर बैठे परिजनों के चेहरे पर मायूसी साफ महसूस की जा सकती थी। वे बारी-बारी से बैलगाड़ी खींच रहे थे। आगे पढ़िये रिक्शे पर निकला परिवार..
देवघर, झारखंड. यह हैं मैकेनिक गणेश मंडल। मूलत: पश्चिम बंगाल के रहने वाले गणेश दिल्ली में काम करते थे। काम-धंधा बंद हुआ, तो भूखों मरने की नौबत आ गई। लिहाजा, उन्होंने 5000 रुपए में पुराना रिक्शा खरीदा और अपने घर को निकल पड़े। रिक्शे पर उनकी पत्नी और साढ़े तीन साल की बच्ची बैठी थी। करीब 1350 किमी रिक्शा खींचकर वे देवघर पहुंचे, तो यहां कम्यूनिटी किचन में सबने खाना खाया। इसके बाद आगे निकल गए। रास्ते में एक जगह रिक्शा पंचर हो गया। पंचर सुधारने वाले ने उनसे 140 रुपए वसूल लिए। इतनी परेशानी के बावजूद गणेश के चेहरे पर संतोष था कि अब वे घर के नजदीक हैं। उन्होंने कहा कि अब वे दिल्ली नहीं लौटेंगे। आगे पढ़िये 6 दिन पैदल चली गर्भवती...
डूंगरपुर, राजस्थान. घर जाने के लिए न तो पैसा था और न ही साधन। लिहाजा, यह फैमिली पैदल ही अपने घर को निकल पड़ी। महिला को मालूम था कि वो 9 महीने की गर्भवती है, लेकिन वो बेबस थी। उसके साथ 2 साल की लड़की और 1 साल का लड़का भी था। डूंगपुर में यानी 200 किमी का सफर करने के बाद एक चौकी पर पुलिसवालों को इन पर दया आई। यहां उन्हें खाना खिलाया गया और फिर एम्बुलेंस की व्यवस्था करके उन्हें घर पहुंचा गया। यह दम्पती 6 दिन पहले अहमदाबाद से मप्र के रतलाम जिले के सैलाना के गांव कूपडा गांव के लिए निकले थे। डूंगरपुर के टामटिया पहुंचने पर इन्हें चौकी से मदद मिली। आगे देखिए लॉकडाउन में फंसे लोगों की पीड़ा दिखातीं तस्वीरें
यह तस्वीर लखनऊ की है। अपने बीमार पति को साइकिल पर हॉस्पिटल ले जाती बेबस पत्नी।
यह तस्वीर लखनऊ की है। अपने बीमार पति को लेकर घर जाती महिला।
यह तस्वीर रांची की है। एक बीमार महिला पैदल ही जा रही थी। उसे देखकर पुलिसवालों ने रिक्शे का इंतजाम कराया।