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MP की एक ऐसी महिला सरपंच जिसकी PM Modi भी करते तारीफ, गांव की खातिर विदेश में छोड़ी लाखों की नौकरी...फोटोज
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दरअसल, हम जिस होनहार महिला सरपंच की बात कर रहे हैं उनका नाम है, भक्ति शर्मा, जिन्होंने भोपाल से 20 किलोमीटर दूर स्थित बरखेड़ी अब्दुल्ला ग्राम पंचायत की साल 2015 में सरपंच का चुनाव जीता था। 25 साल की उम्र से सरपंच बन भक्ति ने अपने गांव को विकास के हर मामले में अव्वल बना दिया है। भक्ति ने इन पांच सालों में गांव का नक्शा बदल दिया। वहां आज हर वो एक सुविधा है जो एक मॉडल गांव में होनी चाहिए।
बता दें कि भक्ति ने राजनीति शास्त्र में मास्टर की डिग्री प्राप्त करने के बाद 2012 में अमेरिका चली गईं। क्योंकि उनके परिवार के कई लोग यहीं रहते हैं। यहां उन्होंने आगे की पढ़ाई के बाद अमेरिका के टैक्सस शहर में एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी भी की। लेकिन यहां भी उनका मन नहीं लगा और अपने गांव के लिए कुछ अलग करना चाहती थीं। वह युवा वर्गों के भीतर अपने देश व समाज की खातिर कुछ कर गुजरने की चाहत रखती थीं। जिसके चलते वह अमेरिका से लौटकर अपने गांव आ गईं।
स्वदेश लौटने के बाद भक्ति अपने पिता के साथ मिलकर एक स्वंय सेवी संस्था बनाने के बारे में सोचा, जिसके माध्यम से उच्च मध्यम वर्गीय परिवारों की उन महिलाओं को सहायता प्रदान की जाती, जो घरेलू हिंसा की शिकार थीं। लेकिन इसी बीच गांव में सरपंच के चुनाव की घोषणा हो गई। चुनाव में दिलचस्पी दिखाते हुए भक्ति ने अपने पिता से चुनाव लड़ने की इजाजत मांगी। घर वालों से लेकर गांव वालों तक सब ने भक्ति के फैसले का समर्थन किया।
भक्ति ने अपने गांव का विकास इस तरह किया कि राष्ट्रीय फलक पर उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली वह धीरे-धीरे हिंदुस्तान में यंग जेनरेशन के लिए एक आइकॉन बन गईं। साथ ही देश की 100 लोकप्रिय महिलाओं की सूची में भक्ति शर्मा का नाम भी दर्ज हो गया। भक्ति पंचायत के लोगों के साथ हमेशा इंटरएक्शन करती हैं, उनकी समस्याओं को सुनती हैं। हमेशा लोगों को अहसास करवाती हैं कि हम आपके के बीच की ही हैं। भक्ति को ट्रैक्टर चलाना, गाड़ी ड्राइव करना और पिस्टल रखना पसंद है।
भक्ति ने सरपंच बनते ही सबसे पहले अपनी पंचायत को पहले ओडीएफ बनाया। साथ ही पंचायत के हर व्यक्ति के बैंक खाते खुलवाए। गरीबों के राशनकार्ड बनवाए औऱ किसानों के मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवाया। हर मजदूर को मनरेगा के तहत रोजगार और पक्के मकान बनवाए। हर घर में टॉयलेट से लेकर पानी पहुंचाया। गरीब के इलाज के लिए हर सरकारी योजाना का लाभ दिलवाया। इतना ही नहीं उनका ऐसा पहला गांव है जहां गांव में हर बेटी के जन्म पर दस पौधे लगाना और उनकी मां को अपनी दो महीने की तनख्वाह देना शुरू किया था। उन्होंने सरपंच की तनख्वाह को लोगों को सरपंच मानदेय के नाम शुरू की।
देश और दुनिया से अनुभव बटोर कर एक गांव को संवारने की भक्ति की ‘भक्ति’ की जितनी तारीफ की जाए वह कम है। भक्ति की सफलता से नई पीढ़ी के युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए। भक्ति शर्मा ने अपने गांव की दशा और दिखा को बदल कर यह साबित कर दिया कि ‘भक्ति’ में सबसे बड़ी ताकत होती है।