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आखिरी चरण के ट्रायल में ये स्वदेशी वैक्सीन, जानिए कैसे एक किसान का बेटा कोरोना को हराने में जुटा
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कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सिन को हैदराबाद स्थित कंपनी भारत बायोटेक बना रही है। इसके अलावा इसके निर्माण में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के वैज्ञानिक भी शामिल है। डॉ कृष्णा एल्ला भारत बायोटेक के फाउंडर हैं।
कैसा है एक किसान के बेटे का सफर?
आज पूरी दुनिया कोरोना से जूझ रही है। दुनियाभर के तमाम देश कोरोना की वैक्सीन बनाने में जुटे हैं। ऐसे में भारत को भी स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सिन से काफी उम्मीदें हैं। दरअसल, डॉ कृष्णा एल्ला ने अपने शुरुआती दिनों में एक छोटी सी लैब खोली थी। लेकिन कई टीके बनाने में सफल होने के बाद अब यह लैब एक बड़ी कंपनी में तब्दील हो गई है।
तमिलनाडु में हुआ जन्म
एल्ला का जन्म तमिलनाडु के थिरुथानी में हुआ। उनके पिता एक मध्यम वर्गीय किसान थे। एल्ला ने बायोटेक्नोलॉजी यानी जैव प्रौद्योगिकी से पढ़ाई की। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि पहले उन्होंने कृषि की पढ़ाई। वे खेती करना चाहते थे। लेकिन आर्थिक समस्याओं के चलते एक केमिकल कंपनी में काम करने लगे। इसके बाद उन्हें स्कॉलरशिप मिली, इससे वे अमेरिका में पढ़ने के लिए चले गए।
अमेरिका से उन्होंने मास्टर्स और पीएचडी की। वे यूएस में ही काम करना चाहते थे। लेकिन उनकी मां चाहती थीं कि वे भारत आएं। डॉ एल्ला ने अपनी मां की बात मान ली और भारत लौट आए।
इसके बाद वे हेपेटाइटिस की वैक्सीन बनाने में जुट गए। इसके बाद उन्होंने हैदराबाद में भारत बायोटेक नाम से लैब खोली। इस लैब में एक एक बाद एक कर कई वैक्सीन बनाई गईं। डॉ कृष्णा को अभी तक 100 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
क्या है कोवैक्सिन?
इस वैक्सीन को बनाने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने नोवल कोरोनावायरस के स्ट्रेन को आइसोलेट किया। इसी की मदद से हैदराबाद की भारत बायोटेक ने इनएक्टिवेटेड वैक्सीन बनाई। वैक्सीन किसी व्यक्ति के शरीर में भेजा जाता है। यह वायरस जीवित नहीं होता, जिससे व्यक्ति संक्रमित नहीं होता और न ही शरीर में पनप सकता है।
शरीर के इम्यून सिस्टम के सामने जब यह डेड वायरस के तौर पर आता है, तो शरीर में एंटीबॉडी रिस्पॉन्स डेवलप होता है। जो कोरोना से लोगों को बचाता है।