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सत्ता की चाहत में इस महारानी ने अपने ही बेटों को मरवा डाला, प्रेमी को बना दिया था प्रधानमंत्री
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दिद्दा कश्मीर की रानी थीं। वे लोहार वंश की राजकुमारी और उत्पल वंश की शासिका थीं। इनका जन्म 958 ई. में हुआ था। जबकि मृत्यु 1003 ई. में।
(यह कवर चित्र आशीष कौल की पुस्तक के पब्लिसिटी पोस्टर से लिया गया है।)
अब आपको बता दें कि कंगना आशीष कौल की पुस्तक- 'दिद्दा: द वॉरियर क्वीन ऑफ कश्मीर' पर यह फिल्म बना रही हैं। दिद्दा के बारे में कहा जाता है कि वो अपंग पैदा हुई थीं, इसलिए मां-बाप ने त्याग दिया था। तब वे अपनी नौकरानी का दूध पीकर बढ़ी हुईं।
दिद्दा के पिता राजा सिंहराज थे। सिंहराज लोहार वंश के राजा थे। दिद्दा के दादा भीम शाही काबुल(अफगानिस्तान) से थे। 10वीं शताब्दी में अफगानिस्तान में हिंदू शासन था।
दिद्दा की शादी कश्मीर के शासक क्षेमगुप्ता से हुई। दिद्दा के बारे में कहा जाता है कि वे बेहद खूबसूरत थीं। यही नहीं, वे कूटनीति और राजनीतिक तौर पर भी काफी परिवक्व थीं। क्षेमगुप्ता अकसर दिद्दा से सलाह-मश्वरा करके ही फैसले लेते थे। इसलिए लोग उन्हें दिद्दाक्षेम भी कहने लगे थे। इनके राज्य में दोनों के मिले-जुले सिक्के चलते थे।
958 में क्षेमगुप्ता का बीमारी के चलते निधन हो गया। दरबारी चाहते थे कि दिद्दा पति की चिता पर सति हो जाएं। लेकिन उन्होंने अपने बेटे अभिम्यु का राजतिलक कराया और उसकी संरक्षक बनीं।
(सति प्रथा का एक पुराना चित्र)
बता दें कि महमूद गजनवी ने 1015 और 1023 में जम्मू-कश्मीर पर हमला किया। लेकिन दिद्दा की रणनीति के आगे वो दोनों बार हारा।
(महमूद गजनवी के हमले को दिखाता एक चित्र)
प्राचीन संस्कृत कवि कल्हण ने दिद्दा को कश्मीर के इतिहास की सबसे शक्तिशाली महिला शासन बताया था। कल्हण ने अपनी पुस्तक 'राज तरंगिणी' में दिद्दा से जुड़े कई प्रसंगों का हवाला दिया है।
बता दें कि पति की मृत्यु के बाद सत्ता संभालते हुए दिद्दा ने कई भ्रष्ट मंत्रियां और अपने प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर दिया था।
(कश्मीर में मिले दिद्दा के कुछ भित्ति चित्र)
हालांकि कल्हण ने यह भी उल्लेख किया है कि सत्ता की वासना के चलते उन्होंने अपने ही पुत्रों को मरवा दिया था। वे पुंछ के एक ग्वाले तुंगा से प्यार करती थीं। उसे बाद में प्रधानमंत्री बनाया गया।
प्राचीन संस्कृत कवि कल्हण ने 'राज तरंगिणी' में दिद्दा के बारे में कई बातें लिखी हैं। इसके अनुसार, दिद्दा अत्यंत बहादुर महिला थीं। दिद्दा की मौत के बाद संग्राम सिंह गद्दी पर बैठा था।
राज तरंगिणी पर कई लेखकों ने अपने-अपने रिसर्च किए।