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आज सुबह के अखबारों ने चौंकाया, हेडलाइन में 'ब्लैक डे' लिखकर बताया, कितनी खतरनाक थी दिल्ली हिंसा
नेशनल न्यूज. 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली हिंसक हो गई जब प्रदर्शनकारियों की टुकड़ी ने पुलिस बैरिकेड्स को तोड़ दिया और राष्ट्रीय राजधानी के कुछ हिस्सों में घुस गए। कई स्थानों पर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं और कई लोग घायल हुए। तैनात पुलिस दल ने आंसूगैस के गोले दागे और प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया। पुलिस की कार्रवाई के बावजूद, प्रदर्शनकारियों के एक दल ने लाल किले पर सिख धर्म का प्रतीक ध्वज 'निशान साहिब' फहरा दिया। रिपब्लिक डे पर पूरा दिन ये घटना चर्चा में रही। अगले दिन यानि 27 जनवरी को देश के दैनिक अखबरों ने इस पर बड़ी कवरेज दी है। अखबारों ने फ्रंट पेज पर हैडलाइन में 'ब्लैक डे' लिखकर दिल्ली हिंसा की बर्बरता जाहिर की। हम आपको कुछ चुनिंदा अखबारों की कवरेज दिखा रहे हैं-
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टाइम्स ऑफ इंडिया से लेकर पाकिस्तान के दैनिक अखबार द डाउन में दिल्ली के किसान आंदोलन हिंसा की बड़े स्तर पर कवरेज की गई।
द इंडियन एक्सप्रेस (The Indian Express)
दैनिक अखबार 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने फ्रंट पेज पर किसान ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा पर शीर्षक दिया कि, "प्रदर्शनकारियों ने लाल किले की रेखा को पार किया" समाचार पत्र ने कल की घटनाओं को बड़े पैमाने पर कवर किया, जिसमें किसान हिंसा के लाल किले तक पहुंचने और पुलिस द्वारा इसे कंट्रोल करने की जानकारी दी गई है। फ्रंट पेज पर एक अन्य कहानी में कहा गया है कि किसान नेताओं ने हिंसा की निंदा की है, जबकि एक और स्टोरी में बताया गया कि, कैसे एक पंजाबी अभिनेता दीप सिद्धू और उसके सपोटर्स ने ट्रैक्टर रैली से पहले सिंघू सीमा पर मंच पर लोगों को भड़काया।
हिंदुस्तान टाइम्स (Hinsutan time)
हिंदुस्तान टाइम्स के पहले पेज "डार्क डे फॉर द रिपब्लिक" हैडलाइन के साथ इस खबर को कवर किया गया। लाल किले, आईटीओ और अन्य हिस्सों में प्रदर्शनकारियों के असंतोष की तस्वीरों के साथ थी हिंसा भड़कने की बात कही गई है। फ्रंट पेज की कहानी में लाल किले पर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पों के अलावा आईटीओ में ट्रैक्टरों रैली के बर्बर रूप लेने के बारे में स्टोरी दी गई हैं। फ्रंट पेज पर एक और शीर्षक है: "अराजकता फैलने के बाद किसान संगठन के नेताओं ने दोष प्रदर्शकारियों पर मढ़ दिए "एक और कहानी में पुलिस के साथ मारपीट करने वालों वालों को दंडित करने की बात कही गई है।
डेक्कन क्रॉनिकल (Deccan Chronicle)
अखबार ने फ्रंट पेज पर हैडलाइन दी "किसानों के विरोध प्रदर्शन ने लाल किले को भंग किया" लीड स्टोरी में पुलिस और किसानों प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा रैली तय रूट को छोड़ कैसे प्रदर्शनकारी दूसरे मार्ट से राजधानी में घुस आए। इसमें कहा गया है। '' भारत का 72 वां गणतंत्र दिवस दिल्ली की सड़कों पर भड़की हिंसा के कारण क्षत-विक्षत कर दिया गया था। प्रदर्शनकारी किसानों ने ट्रैक्टर रैली में बैरिकेड तोड़ दिए, पुलिस से भिड़ गए और ऐतिहासिक तूफान ला दिया। यहां तक की इस हिंसा में लाल किले पर सिख ध्वज निशान साहिब फहराया गया। "फ्रंट पेज पर एक चिंता ये जाहिर की गई कि कल की अराजकता और हिंसा के बाद और पुलिस बल कैसे लाया जाए?
द टेलीग्राफ (The Telegraph)
"किसान की हत्या, लाल किला भंग" द टेलीग्राफ अख़बार ने अपने फ्रंट पेज पर ये शीर्षक देकर किसान हिंसा खबर की कवरेज की। एक दूसरी हैडलाइन में लिखा है कि आग उन्होंने शुरू नहीं की! टेलिग्राफ की लीड स्टोरी में मंगलवार को लाल किले में होने वाली अराजकता और हिंसा को विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा ट्रैक्टर रैली के निर्धारित मार्ग को छोड़ गलत रूट से घुसे किसानों की पुलिस से झड़प की कहानियां हैं। एक कहानी में आईटीओ और लाल किला, करनाल बाईपास, अक्षरधाम और नांगलोई में देखी गई हिंसा का विवरण भी है।
टाइम्स ऑफ इंडिया (Times Of India)
टाइम्स ने आज सुबह अखबार के फ्रंट पेज पर दिल्ली में हुई किसान हिंसा की वीभत्स तस्वीरों के साथ कवरेज दी। यहां हैडलाइन दी गई "ट्रैक्टर परेड राष्ट्रीय दंगे में बदल गई"
इसके अलावा छोटे-छोटे कॉलम में तस्वीरों के साथ दिल्ली के आरटीओ, लाल किले में किसानों के हुड़दंग की खबरें दी गई हैं। पुलिस पर लाठी लहराते प्रदर्शनकारियों की एक फोटो के साथ बताया गया कि इस झड़प में 129 पुलिसकर्मी जख्मी हुए हैं। दाएं ओर कॉलम में रिपब्लिक डे परेड की झांकी की खबरें हैं।
द डाउन (The Dawn)
दिल्ली में किसान आंदोलन हिंसा ने पाकिस्तान को मुंह खोलन का मौका दे दिया। पाकिस्तान के दैनिक अखबार ने इस खबर की कवरेज में केंद्र सराकर पर निशाना साधा। अखबार ने हैडलाइन दी "पीएम मोदी को गहरी चुनौती के बाद भारत के किसान प्रोटेस्ट कैंपों में वापस लौट गए"
खबर की मेन स्टोरी थी- भारत के गणतंत्र दिवस पर ऐतिहासिक लाल किले पर धावा बोलने वाले हजारों किसानों बुधवार को वापस कैंप लौट गए। ये सभी दो महीने के राजधानी के बाहर डेरा डाले हुए हैं। मंगलवार को कई किसानों की मौत हुईं और 80 से अधिक पुलिस अधिकारी घायल हो गए। नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग करने वाले विरोध प्रदर्शन एक विद्रोह में बदल गया है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को प्रभावित कर रहा है।