मुंबई हमला: 5 आंखों देखी कहानियां, 11 साल बाद भी वो मंजर याद कर डर जाते हैं ये लोग
मुंबई: 26 नवंबर को मुंबई पर हुए आतंकी हमले को 11 साल पूरे हो रहे हैं। आज पूरा देश मुंबई पर हुए 26/ 11 आतंकी हमले की दसवीं बरसी पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है और उन शहीदों को नमन कर रहा है जिन्होंने आतंकियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी। बता दें कि मुंबई में वर्ष 2008 में 26 नवंबर को हुए आतंकवादी हमले में 26 विदेशी नागरिकों सहित 166 लोगों की मौत हो गई थी। पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियों के साथ सुरक्षा बलों की मुठभेड़ करीब 60 घंटे तक चली थी। देश के इतिहास में 26/11 मुंबई हमला सबसे भयावह आतंकी हमला था जिसने सभी की रूह को कंपा दिया था। लेकिन इन हमलों से बचे हुए लोगों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई आइए देखते है ऐसे ही पांच लोगो कि कहानी
| Published : Nov 25 2019, 02:12 PM IST / Updated: Nov 25 2019, 02:25 PM IST
मुंबई हमला: 5 आंखों देखी कहानियां, 11 साल बाद भी वो मंजर याद कर डर जाते हैं ये लोग
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वीजू चौहान 26 नवंबर की रात कामा एंड एल्बलेस हॉस्पिटल में लेबर पेन के कारण भर्ती थीं तभीं हथियारों से लैस दो आतंकवादी इमारत के गलियारे में घुस गए। इसी बीच वीजू ने अपनी बेटी तेजस्विनी को चुपके से जन्म दिया। वो बताती है, "हमें नहीं लगा था कि जिंदा बचेंगे, नर्स ने बहुत अच्छे से देखभाल की और हमें बचा लिया।"
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वीजू की बेटी को लोग प्यार से "गोली" कह कर बुलाते है। गोली अब 10 साल की हो गई है हर साल उसका जन्मदिन मनाते वक्त उसकी मां को वो लम्हा याद आ जाता है जन्मदिन का केक काटते वक्त वीजू उन परिवारों को याद करती है जिन्हें उस हमले की चपेट में आने से बचाया नही जा सका।
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फाइव स्टार ताज पैलेस होटल के हेड शेफ हेमंत ओबेरॉय उस वक्त होटल में ही थे जब आतंकवादियों ने हमला किया। आतंकवादियों ने धमाके किए, लोगों को बंधक बनाया और 30 लोगों की जान ले ली। ओबेरॉय समेत दूसरे होटल कर्मचारी लोगों को बचाने में जुटे रहे हेमंत ओबेरॉय कहते हैं, "हमने हर मेहमान को बचाने की कोशिश जैसे वो हमारे घर में हों हम रास्तों को अच्छे से जानते थे तो हम उन्हें एक जगह ले जाने में जुटे रहे।"
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फाइव स्टार ताज पैलेस होटल के हेड शेफ हेमंत ओबेरॉय उस वक्त होटल में ही थे जब आतंकवादियों ने हमला किया। आतंकवादियों ने धमाके किए, लोगों को बंधक बनाया और 30 लोगों की जान ले ली। ओबेरॉय समेत दूसरे होटल कर्मचारी लोगों को बचाने में जुटे रहे। हेमंत ओबेरॉय कहते हैं, "हमने हर मेहमान को बचाने की कोशिश जैसे वो हमारे घर में हों हम रास्तों को अच्छे से जानते थे तो हम उन्हें एक जगह ले जाने में जुटे रहे।"
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निर्मला पोन्नुदुरई की शादी होने वाली थीं जब दो हमलावरों ने मुंबई के मुख्य स्टेशन पर अंधाधुंध गोलीबारी कर 52 लोगों की जान ले ली। पोन्नुदुरई कहती हैं, "ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो लगा जैसे पटाखों की आवाज हो मैंने महसूस किया कि बहुत गर्मी मेरे शरीर में आ गई है और मेरे पूरे चेहरे पर खून फैल गया है वहां बहुत धुआं और अफरातफरी थी।"
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निर्मला के सिर और दिमाग में छर्रे घुस गए थे एक भले इंसान ने उन्हें हाथ वाले ठेले में रख कर अस्पताल पहुंचाया वो बताती हैं, "मैं चाहती थी कि शादी तय समय पर ही हो इसलिए चेन्नई चली गई 30 नवंबर को मैंने शादी की, दिमाग में छर्रे को निकालने के लिए उसके बाद ऑपरेशन हुआ उसके बाद छह महीने तक मेरा चेहरा लकवे का शिकार रहा।"
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सौरभ मिश्रा अपने दोस्त के साथ लियोपोल्ड कैफे में बीयर का मजा ले रहे थे तभी दो बंदूकधारियों ने ग्रेनेड फेंका और फायरिंग शुरू कर दी। विदेशियों समेत 10 लोग मारे गए सौरभ याद करते हैं, "मैं टा टा टा आवाज सुन सकता था और तभी मुझे अहसास हुआ कि मुझे गोली लगी है। लोग टेबल के नीचे घुस गए लेकिन मै बाहर सड़क पर आ गया।"
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सौरभ टैक्सी में और अस्पताल जाते वक्त यही सोच रहे थे कि वो नहीं बचेंगे। गोली ने उनके फेफड़ों को छुआ था लेकिन उसे नुकसान नहीं पहुंचाया था। ऑपरेशन कर उसे तुरंत निकाल दिया गया। अस्पताल में हर तरफ शव थे और उनका नाम भी मरने वालों की सूची में डाल दिया गया। एक टीवी चैनल का पत्रकार तो उनके मां बाप का इंटरव्यू करने भी पहुंच गया था।
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दिव्या सालसकर पुलिस अधिकारी विजय सालसकर की बेटी दिव्या उस वक्त 21 साल की थीं जब आतकंवादियों का पीछा करते उनके पिता की गोलीबारी में मौत हो गई। वो बताती हैं, "शुरुआत में तो मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो अब मेरे आसपास नहीं हैं पहले मैं दुनिया से नाराज थी लेकिन धीरे धीरे बीते 10 सालों में आगे बढ़ गई हूं।"
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जख्मों के निशान बीते सालों में हमले की जगहों से सब धो पोंछ कर साफ कर दिया गया है, हमला करने वाले भी मारे जा चुके हैं लेकिन जिन लोगों ने उसकी पीड़ा सही वो अब भी किसी ना किसी रूप में उनके साथ है और शायद कभी खत्म नहीं होंगी।