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विभाजन के दौरान उजड़ गया था डॉ. मनमोहन सिंह का घर, पढ़ने के लिए दोस्त से मांगना पड़ा था उधार
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मीडिया रिपोर्ट्स में मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह की किताब 'स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरुशरण' के हवाले से बताया जाता है कि मनमोहन सिंह के पिता चाहते थे कि बेटा डॉक्टर बने। इसी वजह से मनमोहन सिंह ने अप्रैल, 1948 में अमृतसर के खालसा कॉलेज के प्री-मेडिकल कोर्स में दाखिला भी ले लिया था, लेकिन कुछ ही महीनों के बाद पढ़ाई में मन ना लगने की वजह से उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई ही छोड़ दी।
किताब के हवाले से बताया जाता है कि पढ़ाई छोड़ने के बाद मनमोहन सिंह अपने पिता की दुकान पर हाथ बंटाने लगे लेकिन यहां भी उनका मन नहीं लगा। ऐसे में उन्होंने तय किया कि वो फिर से कॉलेज में पढ़ने जाएंगे। इसके बाद उन्होंने सिंतबर, 1948 में हिंदू कॉलेज में दाखिला लिया। मनमोहन सिंह ने बाद में अर्थशास्त्र को अपना विषय बनाया। उनके मुताबिक, उन्हें गरीब और गरीबी दोनों विषय में दिलचस्पी थी, वो जानना चाहते थे कि कोई देश गरीब क्यों है और कोई अमीर क्यों हो जाता है? इसी जिज्ञासा ने अर्थशास्त्र में उनकी दिलचस्पी जगाई।
वो बाद में पढ़ाई के लिए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी गए थे। लेकिन वहां, आर्थिक तंगी की वजह से उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। बताया जाता है कि हर साल उनके रहने और पढ़ने का खर्च करीब 600 पाउंड था, लेकिन उन्हें स्कॉलरशिप में 160 पाउंड मिलते थे। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान मनमोहन सिंह ने अपने एक दोस्त से दो साल तक 25 पाउंड सालाना का कर्ज भी मांगा था, लेकिन दोस्त ने महज 3 पाउंड ही भेजे थे।
रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि मनमोहन के जन्म के कुछ साल बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था। अभी उनका परिवार संभलने की कोशिश ही कर रहा था कि विभाजन ने उनके घर को बसने से पहले ही उजाड़ दिया।
कहा जाता है कि 1991 में जिस वक्त उन्हें देश का वित्त मंत्री बनाए जाने की जानकारी दी गई तो उस समय वह सो रहे थे। एक न्यूज एजेंसी के हवाले से बताया जाता है कि मनमोहन सिंह के लिए ही यह फैसला उनके लिए अप्रत्याशित था। जब प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीसी एलेक्जेंडर का फोन आया उस वक्त मनमोहन सिंह सो रहे थे।
रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि मनमोहन सिंह घर का कोई काम नहीं कर पाते हैं। वो न तो अंडा उबाल सकते हैं और न ही टेलीविजन चालू कर सकते हैं। 1975 के आपातकाल का जिक्र करते हुए उनकी बेटी दमन ने किताब में लिखा है कि इससे मनमोहन सिंह भी शॉक्ड रह गए थे। उनके अनुसार, देश में अशांति का माहौल था, लेकिन किसी को भी इंदिरा गांधी से इस तरह के कदम की अपेक्षा नहीं थी।
मनमोहन सिंह की पहचान भले 'मौनमोहन' की बनी हो, लेकिन अपने दोस्तों के बीच उन्हें मज़ाक करने की आदत भी रही है। इतना ही नहीं, उन्हें लोगों को निकनेम देने में खूब मजा आता रहा है। यहाँ तक कि अपनी पत्नी गुरशरण कौर का निकनेम उन्होंने गुरुदेव रखा हुआ है।
फोटो सोर्स- गूगल।