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गुस्से में दौड़ते 300 सांडों को काबू करने उतरे 500 लोग, 2000 साल पुराने खतरनाक खेल 'जल्लीकट्टू' की कहानी

चेन्नई(Chennai). तमिलनाडु के पुदुक्कोट्टई जिले में रविवार(8 जनवरी) को सांडों को काबू में करने वाला खेल जल्लीकट्टू(Jallikattu') का साल का पहला आयोजन धूमधाम से शुरू हुआ, जिसमें युवाओं की सक्रिय भागीदारी देखी गई। पुदुक्कोट्टई के थाचनकुरिची गांव में सुबह से ही खेल के मैदान में एक के बाद एक 300 से अधिक सांड छोड़े गए। सांडों पर हावी होने के लिए  सांडों को काबू में करने वाले 500 से अधिक महारथियों (tamers) सांडों के बीच होड़ मच गई। दिल दहलाने वाला मौत का यह खेल तमिलनाडु में एक प्राचीन परंपरा है। यह 2000 साल से खेला जा रहा है। इस खेल में भीड़ बेकाबू और गुस्सैल सांडों को पकड़कर उन्हें गिराने की कोशिश करते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद इस खेल पर पाबंदी नहीं लग पाई है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोकने की कोशिश की, तो सरकार ने जनता के आगे झुककर इसे फिर से चालू करा दिया। 2021 में राहुल गांधी जल्लीकट्टू देखने तमिलनाडु पहुंचे थे। पढ़िए पूरी डिटेल्स... 

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Amitabh Budholiya
Published : Jan 09 2023, 09:51 AM IST| Updated : Jan 09 2023, 09:52 AM IST
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35 से अधिक लोग घायल, जानिए पूरी डिटेल्स:पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री शिव वी मेयनाथन और कानून मंत्री एस रघुपति ने जल्लीकट्टू कार्यक्रम का उद्घाटन किया। सांडों के मालिकों और वश में करने वालों को जीतने के लिए एक नई मोटरसाइकिल, प्रेशर कुकर और चारपाई सहित पुरस्कार पेश किए गए हैं। अधिकारियों ने कार्यक्रम की अनुमति देने से पहले सुरक्षा पहलुओं सहित व्यवस्थाओं का जायजा लिया। 

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जल्लीकट्टू के दौरान दर्शकों, प्रतिभागियों और कुछ पुलिस कर्मियों सहित 35 से अधिक लोग घायल हो गए। उनमें से कुछ अस्पताल में भर्ती कराने पड़े। जल्लीकट्टू के औपचारिक समापन के बाद अराजकता फैल गई। बड़ी संख्या में लोग खुले मैदान में इकट्ठा हुए, जिससे हंगामा हुआ। हालांकि अधिकारियों ने पहले ही घोषित कर दिया था कि खेल खत्म हो गया है और पुलिस को व्यवस्था बहाल करने के लिए सांडों को काबू में करने वाले उम्मीदवारों पर लाठीचार्ज करना पड़ा। तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में जल्लीकट्टू आयोजनों के लिए विस्तृत गाइडलाइन जारी की थी। इस बीच पुडुकोट्टई जिले के अरंथंगी में एक घोड़ा गाड़ी दौड़ आयोजित की गई।
 

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जल्लीकट्टू को तमिलाडु के गौरव और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। इस खेल में हजारों सांडों को मैदान में लड़ाई के लिए उतारा जाता है। भीड़ उनसे भिड़ती है। सांडों को पकड़कर रखने का यह खेल बेहद खतरनाक होता है।

(यह तस्वीर मदुरै की है, जहां जल्लीकट्टू के मास्टर ट्रेनर मुदक्कथन मणि और पुलिस' विनोथ ने मदुरै के पास वीरपंडी गांव में 29 दिसंबर, 2022 को सांडों को काबू करने की ट्रेनिंग दी थी)

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वर्ष, 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जानवरों की सुरक्षा के लिए काम करने वाली संस्था पेटा की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जल्लीकट्टू के खेल पर रोक लगा दी थी। इसके विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए थे। तब सरकार ने एक अध्यादेश लाकर इसके आयोजन को स्वीकृति दे दी थी। (मदुरै: जल्लीकट्टू पेरावई के अध्यक्ष पी राजशेखरन ने पिछले दिनों सांडों को काबू में करने के खेल के लिए सांडों को प्रशिक्षण देने के बारे में बताया था)

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 वैसे तो इस खेल जल्लीकट्टू में 21 साल से कम उम्र के लोगों को शामिल होने की अनुमति नहीं है। फिर भी लोग शामिल हो जाते हैं। (पिछले दिनों मदुरै में जल्लीकट्टू के मास्टर ट्रेनर मुदक्कथन मणि ने वीरपंडी गांव में सांडों को वश में करने की ट्रेनिंग दी थी)

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तमिल भाषाविदों की मानें, तो 'जल्ली' शब्द 'सल्ली' से बना है। इसके मायने होते हैं 'सिक्का' और कट्टू का अर्थ 'बांधा हुआ' होता है। 'जल्लीकट्टू' में सांडों के सींग पर कपड़ा बांधा जाता है। जो खिलाड़ी लंबे समय तक सींग पकड़े रखता है और कपड़े को निकाल लेता है, वो विजेता होता है। (यह हैं मदुरै की ट्रांसजेंडर जी कीर्तना जो सांडों को काबू में करने के खेल जल्लीकट्टू के लिए सांडों को तैयार करती हैं)

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About the Author

AB
Amitabh Budholiya
बीएससी (बायोलॉजी), पोस्ट ग्रेजुएशन हिंदी साहित्य, बीजेएमसी (जर्नलिज्म)। करीब 25 साल का लेखन और पत्रकारिता में अनुभव। एशियानेट हिंदी में जून, 2019 से कार्यरत। दैनिक भास्कर और उसके पहले दैनिक जागरण और अन्य अखबारों में सेवाएं। 5 किताबें प्रकाशित की हैं

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