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बीटिंग रिट्रीट की कहानी: युद्ध के दौरान सूर्यास्त होने पर जब सैनिक हथियार रखकर कैंप में लौटते थे
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1971 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध को 50 साल पूरे हो गए हैं। इस बार की बीटिंग रिट्रीट में इसी विजयी धुन को जगह मिली। इस बार 15 सैन्य बैंड और रेजिमेंटल सेंटरों और बटालियनों के इतनी ही संख्या में ड्रम बैंड को जगह दी गई है।
बता दें कि बीटिंग रिट्रीट की समापन सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा की धुन से होता है। कोरोना के चलते इस बार दर्शक संख्या को सीमित रखा गया है। बीटिंग रिट्रीट पर राष्ट्रपति भवन, विजय चौक, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक आदि पर रोशनी देखने लायक होती है।
'बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी' की परंपरा 1950 से चली आ रही है। यह युद्ध के दौरान सेना की बैरक में वापसी को दर्शाता है। 1950 के दशक में भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने इस सेरेमनी को सेनाओं के बैंड्स के साथ शुरु कराया था। समारोह में राष्ट्रपति चीफ गेस्ट होते हैं।
बीटिंग रिट्रीट में बैंड की धुनों के बाद बिगुल बजाया जाता है। बिगुल अकसर युद्ध की शुरुआत और सूर्यास्त के दौरान रोकने पर होता था।
बिगुल वादन के बाद बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाकर अपना बैंड वापस लेते हैं। इसका मतलब होता है कि गणतंत्र दिवस समारोह पूरा हो गया है।
राष्ट्रपति से बैंड लेने के बाद तीनों सेनाओं के बैंड मार्च करते हुए सारे जहां से अच्छा की धुन बजाते हुए रवाना होते हैं। इस दौरान परेड देखने लायक होती है।