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26/11 की यंगेस्ट सरवाईवर की कहानीः पिता का बिजनेस बर्बाद हुआ, स्कूलों ने दाखिला नहीं दिया
मुंबई. माया नगरी में हुई 26/11 आतंकी हमले को 11 साल हो चुके हैं। साल 2008 में हुए उस आतंकी हमले में 166 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए थे। इस आंतकी हमले में नौ साल की बच्ची भी घायल हुई थी जो आज 19 साल की हैं। इस हमले के बाद से उसे 'कसाब की बेटी' कहकर बुला गया।
| Published : Nov 25 2019, 04:35 PM IST / Updated: Nov 25 2019, 05:03 PM IST
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लड़की का नाम देविका रोटावन। हमले में देविका के पैर में गोली लगी थी, उन्हें कई महीने अस्पताल में गुजारने पड़े थे। हमले के बाद से देविका और उसकी फैमिली की जिंदगी पूरी तरह तबाह हो गई। 26 नवंबर, 2008 को शिवाजी टर्मिनल पर देविका अपने पिता और भाई जयेश के साथ बड़े भाई भारत का इंतजार कर रही थी, तभी हमला हो गया और घेराबंदी के दौरान आतंकी अजमल कसाब ने देविका को गोली मारी थी। रातों-रात देविका को दुनिया जानने लगी। उन्हें कोर्ट में कसाब की पहचान के लिए बुलाया गया था। कसाब उस हमले में अकेला जिंदा बचा आतंकी था।
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मुंबई हमले के 11वें साल की बरसी पर देविका ने अपने बुरे दिनों की कहनी बयां की। उन्होंने बताया कि, हमले के वक्त जब धमाका और शोर-शराबा हुआ तो उन्हें लगा कि हज यात्रियों के लिए पटाखे छुड़ाए जा रहे हैं लेकिन फिर उन्होंने खून के छींटे देखे और चीखें सुनी तो वह सन्न रह गईं। उनके लिए आज भी वो दिन एक डरावने सपने जैसा है।
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बांद्रा में एक कमरे में गुजारा करने वाले देविका के परिवार में पिता और दो भाई हैं। पिता का पहले ड्राई फ्रूट्स का बिजनेस था, उनकी अपनी दुकान थी लेकिन हमले के बाद उन्हें ये बंद करना पड़ा क्योंकि कोई भी उनके साथ बिजनेस नहीं करना चाहता था लोग उनसे सामान नहीं खरीदते थे। एक रिश्तेदार के पास वह अब जनरल स्टोर में काम करते हैं। देविका का भाई बेरोजगार है उसे कहीं काम नहीं मिला।
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स्कूल में कहते थे "कसाब की बेटी"- देविका अस्पताल से डिस्चार्ज हो गईं तो स्कूल गई उन्हें वहां वो सब देखना पड़ा जिसकी उन्हें कभी उम्मीद नहीं थी। स्कूल में अब कोई उनका दोस्त नहीं बचा था, सभी सहपाठी उनसे दूर भागने लगे। देविका का कहना है कि उन्हें सब 'कसाब की बेटी' कहते थे। वह रोते हुए अपने घर जाती थीं क्योंकि लड़कियां उन्हें परेशान करती थीं। जिसके बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और दूसरे स्कूल में दाखिला लिया। लेकिन यहां भी मुश्किलें कम नहीं हुईं। देविका ने एक आतंकी की पहचान की थी, इस स्कूल में भी सब उनसे डरने लगे। एक अन्य स्कूल ने उन्हें ये कहकर दाखिला देने से मना कर दिया कि उनकी अंग्रेजी अच्छी नहीं है।
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रिश्तेदार और पड़ोसियों ने भी दूरी बना ली- आतंकियों के डर से देविका के पड़ोसी और रिश्तेदारों ने भी उनसे दूरी बनाना शुरू कर दिया। देविका के पिता नटवरलाल का कहना है कि ट्रायल चलने तक उन्हें धमकियां दी जाती रहीं। देविका का कहना है कि उन सबसे वह डर गई थीं, लेकिन वह कभी टूटी नहीं। देविका ने मीडिया और सरकार पर भी मदद न करने के सवाल उठाए।
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पिता नहीं चाहते थे कि कोर्ट जाऊं- देविका का कहना है कि वह हमले के 2 महीने बाद तक जेजे अस्पताल में रहीं। उनके पिता नटवरलाल नहीं चाहते थे कि वह गवाही दे लेकिन बाद में उन्होंने अपना मन बदल लिया। कई बार देविका का ऑपरेशन भी हुआ। देविका का कहना है कि उनके पिता नहीं चाहते थे कि वह कोर्ट जाएं। देविका ने बताया कि, "कोर्ट में उज्जवल निकम सर मेरी तरफ देख रहे थे क्योंकि मैं उस राक्षस के सामने खड़ी थी जो मेरी जान लेना चाहता था। जब कोर्ट में मुझसे पूछा गया कि तुम्हें किसने गोली मारी? मैंने अपना हाथ खड़ा किया और कसाब की ओर इशारा किया, उसके चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था तो मैं भी नहीं डरी।
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बनूंगी आईपीएस अफसर- देविका का कहना है कि आज भी जब वह उस जगह पर जाती हैं, जहां उन्हें गोली लगी थी तो उन्हें लगता है कि वह आज भी वहीं पर खड़ी हैं और पूरी दुनिया तेज मोड में आगे बढ़ रही है। देविका ने खुद से वादा किया है कि मुझे अपने पिता, भाई और देश को एक अच्छा भविष्य देना है। मुझे एक आईपीएस अफसर बनना है। मुझे आतंकवाद से लड़ना है और उन सबको न्याय दिलाना है जो मेरे और मेरे पिता की तरह संघर्ष कर रहे हैं।"