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कभी अटल सरकार में रेल मंत्री थीं ममता बनर्जी, जानिए कैसे भाजपा के लिए बन गईं सबसे बड़ी चुनौती

कोलकाता. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी चीफ ममता बनर्जी 05 जनवरी को अपना 66वां जन्मदिन मना रही हैं। ममता बनर्जी का जन्म कोलकाता के एक बेहद सामान्य परिवार में हुआ। ममता बंगाल से सबसे युवा सांसद रहीं। खास बात ये है कि आज ममता भाजपा के नेतृत्व वाली जिस एनडीए सरकार पर पल निशाना साधती रहती हैं, वे कभी इसी का हिस्सा हुआ करती थीं। वे 1999 में अटल बिहारी सरकार में रेल मंत्री भी रहीं। आईए जानते हैं ममता के जीवन की कुछ बेहद दिलचस्प बातें... 

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Asianet News Hindi
Published : Jan 05 2021, 02:23 PM IST
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ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं। मौजूदा वक्त में वे विपक्ष का बड़ा चेहरा हैं। ममता को उनके फैसले और आक्रामक रवैये के लिए जाना जाता है। एक समय था जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। उन्हें राजीव गांधी का खास माना जाता था। 

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1970 में की राजनीति की शुरुआत
ममता बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर 10 साल पूरे कर चुकी हैं। ममता बनर्जी ने 1970 से दशक में कांग्रेस से राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। वे 1975 में महिला कांग्रेस की जनरल सेक्रेटरी बनी। 1978 में वे कलकत्ता दक्षिण की जिला कांग्रेस कमेटी की सेक्रेटरी बनीं। 1984 में वे पहली बार दक्षिण कोलकाता से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतीं। 1991 में वे इस सीट से फिर जीत कर लोकसभा पहुंचीं। उन्हें यूपीए सरकार में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री बनाया गया। ममता 1996 में फिर सांसद बनीं। 

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जब कांग्रेस से तोड़ा नाता
1997 में ममता ने कांग्रेस से नाता तोड़ने का ऐलान किया। वहीं, सोनिया गांधी ने ममता को कांग्रेस में शामिल रखने के लिए हर संभव प्रयास किए। हालांकि, ममता ने कहा,   वे राजीव गांधी के लिए कुछ भी कर सकती हैं लेकिन कांग्रेस में नहीं रहेंगी। क्योंकि उनके खिलाफ एक विरोधी धड़ा काम कर रहा है। इसके बाद ममता ने तृणमूल कांग्रेस बनाई। 

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एनडीए में शामिल हुईं ममता
1999 में ममता बनर्जी एनडीए में शामिल हुईं। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की करीबी माना जाता था। उन्हें अटल बिहारी सरकार में रेल मंत्री की जिम्मेदारी मिली। हालांकि, बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद राज्य में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया। लेकिन इस चुनाव में उन्हें वाम दलों के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा। 

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इसके बाद 2004 में उन्होंने कोयला मंत्री बन एनडीए में फिर वापसी की। हालांकि, लोकसभा चुनाव में एनडीए को हार का सामना करना पड़ा। उधर, ममता ने भी एनडीए से अपनी राह अलग कर ली। हालांकि, वे 2004 में यूपीए सरकार में शामिल नहीं हुईं। ममता 2009 में लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिलाया। इसके बाद वे भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलने लगीं। 

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मिली बंगाल की सत्ता
1998 में पार्टी बनाने के 13 साल बाद उन्हें बंगाल का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। उन्होंने .यहां वामदलों के 3 दशकों के शासन को उखाड़ फेंका।  ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की 184 सीटों पर जीत मिली। इसके बाद वे 2016 में एक बार फिर चुनाव जीतीं। तब से वे सीएम पद पर काबिज हैं। 

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2014 में मोदी की प्रचंड लहर का किया सामना
ममता बनर्जी ने राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी छवि बना ली है। इसी का नतीजा हुआ कि वे 2014 के लोकसभा चुनाव में एक प्रमुख राजनीतिक दल की मुखिया के तौर पर उभरीं। वे 2014 में प्रचंड मोदी लहर के बावजूद बंगाल में भाजपा को रोकने में कामयाब हुईं। यहां उन्होंने 44 लोकसभा में से 42 सीटों पर जीत हासिल की। 

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2019: भाजपा ममता का किला भेदने में कामयाब
2019 लोकसभा चुनाव में भी टीएमसी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि, इस बार भाजपा ममता बनर्जी के किले को भेदने में कामयाब रही। भाजपा ने 44 सीटों में से 18 पर जीत हासिल की। वहीं, टीएमसी 22 सीटें जीतीं। 

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कभी एनडीए में रहीं ममता, आज मोदी सरकार के हर फैसले के खिलाफ
खास बात ये है कि आज ममता बनर्जी विपक्ष की मुख्य आवाज बन गई हैं। वे केंद्र की एनडीए सरकार के तमाम फैसलों का विरोध करती हैं। ये वही ममता हैं, जो एनडीए की सहयोगी रही हैं। ममता ने सीएए, एनआरसी, जीएसटी, नोटबंदी और किसान आंदोलन जैसे मुद्दों पर मोदी सरकार का खुलकर विरोध किया। 2021 में बंगाल में मुख्य मुकाबला भाजपा और टीएमसी के बीच ही नजर आ रहा है। 

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