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मदर्स डेः सपने पूरे करने के लिए छोड़ा घर, जुड़वा बच्चों की मां मैरीकॉम, यूं ही नहीं बनी रोल मॉडल

नई दिल्‍ली. वैसे तो मां- बेटे के लिए सभी दिन मदर्स-डे से कम नहीं होता है। लेकिन मां की ममता और संघर्ष को सम्मान देने के लिए आज दुनिया भर में मदर्स डे मनाया जाता है। इसी क्रम में आज हम बात करेंगे दुनिया की एक ऐसी शख्सियत की जो सिर्फ खेल जगत के लिए ही प्रेरणा नहीं है, बल्कि दुनिया की हर एक महिला, हर एक पत्‍नी और हर एक मां के लिए भी प्रेरणा है। छह बार की विश्‍व चैंपियन एमसी मैरीकॉम तमाम बंधनों को तोड़ते हुए जिस तरह से आगे बढ़ीं और दुनिया को अपने पंच का दम दिखाया, वो हर उस व्‍यक्ति को करारा जवाब था, जिसने उनके कदमों को रोका, उनके हाथों को बांधा, सिर्फ उनके ही नहीं, उन जैसी तमाम लड़कियों को कई तरह से दबाव बनाकर रोक दिया गया। आइए जानते हैं उनके बारे में...

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Asianet News Hindi
Published : May 10 2020, 04:10 PM IST
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खेल जगत के लिए वो इसीलिए प्रेरणा बनीं, क्‍योंकि तमाम मुश्किलों के बावजूद उनके प्रदर्शन का स्‍तर नहीं गिरा और दोहरी शक्ति से वह लड़ती गईं और 37 की उम्र में भी उनका सफर जारी है। मैरी की कहानी हर मां को ये बताती है कि मां बनने के बाद औरत का शरीर कमजोर नहीं, बल्कि और मजबूत होता है और उसे हमेशा अपने मन की करते रहना चाहिए। ओलिंपिक मेडलिस्‍ट मैरीकॉम दुनिया की हर पत्‍नी के लिए भी प्रेरणा हैं। अपने खेल के कारण उन्‍होंने अपनी जिम्‍मेदारियों से कभी मुंह नहीं मोड़ा। 
 

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खेतों के काम में पिता की करती थीं मदद
मैरी गरीब किसान परिवार से संबंध रखती थीं। उनके पिता तोंपा कॉम और मां अखम कॉम दोनों खेतों में मजदूरी किया करते थे। मैरी भी खेतों के कामों में पिता की मदद करके स्‍कूल जाया करती थी। मैरी ने क्‍लास 8 तक दो अलग अलग स्‍कूलों में पढ़ाई की और इस दौरान उन्‍होंने जेवलिन, 400 मीटर रनिंग जैसे खेल खेले। 
 

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डिंको सिंह से हुईं प्रभावित
आठवीं क्‍लास से पहले तक मैरी ने बॉक्सिंग के बारे में कभी सोचा भी नहीं था, मगर 1998 में जब डिंको सिंह एशियन गेम्‍स में गोल्‍ड मेडल जीतकर बैंकॉक से अपने घर मणिपुर लौटे, तो उनसे कई युवा प्रभावित हुए, जिनमें से एक मैरीकॉम भी थीं और उन्‍होंने वहीं से बॉक्सिंग में हाथ आजमाने का फैसला किया। 

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आठवीं क्‍लास पास करने के बाद मैरी इम्‍फाल के एक स्‍कूल में नौंवी और दसवीं की पढ़ाई के लिए आ गई। मगर वो मैट्रिक की परीक्षा पास नहीं कर पाई और वह वापस से परीक्षा भी नहीं देना चाहती थी। वर्ष 2000 में बॉक्सिंग में आने के बाद उन्‍होंने बॉक्सिंग की ट्रेनिंग शुरू की और 15 साल की उम्र में स्‍पोर्ट्स एकेडमी जाने के लिए अपना घर छोड़ दिया। 
 

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अखबार से पिता को पता चली मैरी की सच्‍चाई
मैरीकॉम के पिता उनकी बॉक्सिंग से अनजान थे। दरअसल उनके पिता को डर था कि कहीं बॉक्सिंग के कारण उनकी बेटी का चेहरा खराब न हो, नहीं तो शादी में परेशानी आएगी। उन्‍हें मैरी की सच्‍चाई अखबार में छपी फोटो से पता चली। 
 

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वर्ष 2000 में मैरी ने स्‍टेट बॉक्सिंग चैंपियनशिप का खिताब जीता था, जिस वजह से उनकी फोटो अखबार में छपी थी। इसके तीन साल बाद मैरी को अपनी पिता का साथ मिला और यहां से उनका असली सफर शुरू हो गया। 
 

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पहले ही टूर्नामेंट में सिल्‍वर
मैरी ने 2001 में वर्ल्‍ड चैंपियनशिप से डेब्‍यू किया और अपने पहले ही टूर्नामेंट में उन्‍होंने सिल्‍वर मेडल जीत लिया। इसके बाद 2002 वर्ल्‍ड चैंपियनशिप में गोल्‍ड जीता। इसके बाद इस दिग्‍गज खिलाड़ी का नाम दुनिया के हर कोने में छाने लगा। 

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मां बनने के बाद की वापसी
मैरी का करियर जब पीक पर था तो उन्‍होंने उसी दौरान 2005 में फुटबॉलर करुंग ओंखोलर से शादी की और इसके बाद उन्‍होंने बॉक्सिंग से ब्रेक ले लिया था। 2007 में मैरी ने जुड़वां बच्‍चों को जन्‍म दिया। इसके अगले साल वो फिर से पूरी तैयारी के साथ रिंग में उतर गई। 

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वो रिंग में सिर्फ उतरी ही नहीं, बल्कि 2008 में वर्ल्‍ड चैंपियनशिप का खिताब जीता और एशियन महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप में सिल्‍वर मेडल भी जीता। मैरी ने 2013 में तीसरे बेटे को जन्‍म दिया। मैरी का ये सफर आज भी जारी है और उनका मानना है कि अभी भी उनके पंच में युवा मैरी जैसा ही दम है। 

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मैरीकॉम की उपलब्धियां
1 मार्च 1983 केा मणिपुर में जन्‍मीं मैरीकॉम ने अपने पहले ही इंटरनेशनल टूर्नामेंट में मेडल जीत लिया था। वह छह बार विश्‍व चैंपियन बनने वाली दुनिया की एकमात्र महिला मुक्‍केबाज है। साथ ही अपने शुरुआती सात वर्ल्‍ड चैंपियनशिप में मेडल जीतने वाली भी दुनिया की एकमात्र महिला मुक्‍केबाज है। 
 

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2012 में मैरीकॉम ने लंदन ओलिंपिक में 51 किग्रा में ब्रॉन्‍ज मेडल हासिल किया था। 2014 में एशियन गेम्‍स और 2018 कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में गोल्‍ड मेडल जीतने वाली वह भारत की पहली महिला मुक्‍केबाज हैं। 

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