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तिहाड़ जेल पहुंचा जल्लाद, निर्भया के दोषियों का डमी बनाकर दी मौत, रस्सी, तख्ते और लिवर का भी ट्रायल
| Published : Jan 21 2020, 11:53 AM IST / Updated: Jan 31 2020, 05:14 PM IST
तिहाड़ जेल पहुंचा जल्लाद, निर्भया के दोषियों का डमी बनाकर दी मौत, रस्सी, तख्ते और लिवर का भी ट्रायल
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ऐसे में बताते हैं 16-17 दिसंबर 2012 की उस रात की कहानी, जब निर्भया से गैंगरेप हुआ। इसके बाद 13 दिनों तक जिंदगी के लिए जंग लड़ती रही। इस दौरान निर्भया की क्या हालता थी, उनकी मां ने वह दर्द एक इंटरव्यू में बयां किया।
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दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका बस स्टॉप पर 16-17 दिसंबर 2012 की रात पैरामेडिकल की छात्रा अपने दोस्त को साथ एक प्राइवेट बस में चढ़ी। उस वक्त पहले से ही ड्राइवर सहित 6 लोग बस में सवार थे। किसी बात पर छात्रा के दोस्त और बस के स्टाफ से विवाद हुआ, जिसके बाद चलती बस में छात्रा से गैंगरेप किया गया। लोहे की रॉड से क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं। छात्रा के दोस्त को भी बेरहमी से पीटा गया। बलात्कारियों ने दोनों को महिपालपुर में सड़क किनारे फेंक दिया गया। पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में चला, सुधार न होने पर सिंगापुर भेजा गया। घटना के 13वें दिन 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छात्रा की मौत हो गई।
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निर्भया की मां ने एक इंटरव्यू में बताया था कि निर्भया से गैंगरेप के बाद उसके साथ 13 दिन में जो दर्द हुआ, उसे मैंने सिर्फ देखा, लेकिन मेरी बेटी ने जो सजा, उसे मैं भुलाए नहीं भूल सकती हूं।
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निर्भया की मां ने बताया था कि जिस लड़की पर हमने कभी हाथ नहीं उठाया, उसे ऐसे दर्द से गुजरना पड़ा। इतना कहते ही निर्भया की मां की आंखों से आंसू टपकने लगते हैं।
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मां ने बताया, वह अस्पताल में थी। 3 दिन बाद उसे होश आया तो उसने मेरी तरफ देखा और बोली मां आज तू नहाई नहीं क्या? तेरी बिंदी कहां है? जा बिंदी लगाकर आ। हादसे से चंद दिनों पहले ही मेरे लिए चूड़ी और नेल पॉलिश लेकर आई थी, आज भी वो चूड़ी और नेल पॉलिश ऐसे ही रखे हैं।
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मां ने बताया था कि दर्द की वजह से मेरी बेटी सो नहीं पाती थी। दर्द को कंट्रोल करते हुए कहती थी, मम्मी पापा, मैं ठीक हो जाऊंगी। आप दोनों परेशान न हो। लेकिन उसे ऐसा सदमा और दर्द था कि वह सो नहीं पाती थी।
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मां ने बताया कि बेटी इतना ज्यादा डरी थी कि कहती थी कि मां आंख बंद करते ही लगता है कि कोई आसपास खड़ा है। डर से आंख ही बंद नहीं करती थी। उसके पास दो नर्स हमेशा उसके पास रहते थे।
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मां ने बताया था कि मौत से पहले निर्भया उंगलियों पर दिन गिना करती थी। वह मुझसे बोलती थी, मां आज कौन सा दिन है। बहुत दिन हो गए हैं। मुझे घर जाना है। जब नर्स कहती कि अभी तबीयत ठीक नहीं है, तब वह मायूस हो जाती थी।
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जिस दिन निर्भया का निधन हुआ, उस दिन शायद उसे पता चल गया था। उसने अपने पापा को बुलाया और बोली, आई एम सॉरी पापा। मैंने आप दोनों को बहुत तकलीफ दी है। फिर मेरा हाथ पकड़ा और अपने गले लगा लिया। उस वक्त हम सिंगापुर के अस्पताल में थे।
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निधन वाले दिन बेटी ने हम दोनों से कहा कि आप लोग जल्दी से जाकर खाना खा कर आओ। थोड़ी देर में किसी ने पुकारा और कहा कि आपकी बेटी बुला रही है। वहां गए तो देखा उसकी आंखों बंद हो रही थीं। वह हमें देख नहीं पाई। फिर उसने कभी आंखें नहीं खोलीं।