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बचपन से लिपिस्टक लगाना था पसंद, लड़की बनने के लिए घर से भागा था शख्स; फिर चर्चा में ट्रांसजेंडर जज

नई दिल्ली. देश की तीसरी और असम की पहली ट्रांसजेंडर जज स्वाति बिधान बरुआ एक बार फिर चर्चा में हैं। उन्होंने असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) में करीब  2000 ट्रांसजेंडरों का नाम ना होने का मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया है। उन्होंने याचिका में कहा है कि एनआरसी के आवेदन में 'अन्य कैटेगरी नहीं है, इस वजह से ट्रांसजेंडरों को अपनी पहचान बताने के लिए बाध्य होना पड़ा। 

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Asianet News Hindi
Published : Jan 27 2020, 07:30 PM IST| Updated : Jan 27 2020, 07:35 PM IST
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चीफ जस्टिस एसए बोबडे की बेंच ने इस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर्स के पास 1971 से पहले के दस्तावेज नहीं हैं। इसलिए वे लोग लिस्ट से बाहर हो गए।
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असम में 31 अगस्त को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआरसी) की फाइनल लिस्ट जारीकी गई थी। इसमें 3.11 करोड़ लोगों को नागरिकता के लिए वैध माना गया था। वहीं, 19,06,657 लोगों के नाम इसमें नहीं हैं। इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने नागरिकता के लिए दावा नहीं किया था। जो लोग इस लिस्ट से संतुष्ट नहीं हैं, वे फॉर्नर ट्रिब्यूनल में आवेदन कर रहे हैं।
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कौन हैं स्वाति बिधान बरुआ?: स्वाति असम के पांडु शहर की रहने वाली हैं। वे देश की तीसरी और असम की पहली ट्रांसजेंडर जज हैं। उनसे पहले पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी ट्रांसजेंडर जज बन चुकी हैं।
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स्वाति को बचपन में काफी परेशानियां उठानी पड़ीं। उन्होंने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें लगता था कि उनकी रूह एक गलत शरीर में कैद है। ना वे खुद को लड़का मानती थीं, ना ही वे लड़कियों की तरफ आकर्षित होती थीं।
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वे बताती हैं कि जब वे सिर्फ 12 साल की थीं तबसे ही उन्हें लिपस्टिक लगाना, नाखून बड़े करना, लड़कियों जैसे तैयार होना अच्छा लगता था। लेकिन जब घरवालों को यह बात पता चली तो उन्होंने स्वाति की खूब पिटाई की और उन्हें घर पर कैद कर दिया।
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स्वाति घर से भागकर मुंबई चली गई थीं। यहां वे सेक्स सर्जरी करवा कर लड़के से लड़की बनना चाहती थीं। लेकिन घरवालों के विरोध के चलते वे ऐसा नहीं कर पाईं। इसके बाद उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आखिर में 2013 में वे सर्चरी कराकर बिधान से स्वाति बन गईं। हालांकि, बाद में उनके परिवार ने उन्हें अपना लिया।
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स्वाति के पिता रेल विभाग में हैं। उन्होंने बीकॉम के बाद कानून की पढ़ाई की। अभी वे लोक अदालत में पदस्थ हैं।

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