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विकास दुबे इतना बड़ा अपराधी था तो पैरोल कैसे मिली...भड़क गए जज, पूछा, हैदराबाद से कैसे अलग है?
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2 जुलाई की रात कानपुर के बिकरू गांव में विकास दुबे ने अपने साथियों के साथ मिलकर 8 पुलिसवालों की हत्या की थी। 9 जुलाई की सुबह विकास दुबे को उज्जैन के महाकाल मंदिर में हिरासत में लिया गया। यूपी एसटीएफ वहां से 10 जुलाई की सुबह विकास दुबे को कानपुर ले आ रही थी, लेकिन कानपुर से 17 किमी. दूर ही विकास दुबे का एनकाउंटर कर दिया गया।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बोबड़े ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा, यह केस हैदराबाद एनकाउंटर से अलग कैसे है? तब डीजीपी के वकील हरीश साल्वे ने कहा, यह केस हैदराबाद से बहुत अलग है। जब सामने विकास दुबे जैसे अपराधी हो तो पुलिस क्या करे? पुलिसवालों के भी मौलिक अधिकार हैं।
सुनवाई के दौरान एक टाइम ऐसा भी आया जब जज साहब भड़क गए। राज्य सरकार के वकील तुषार मेहता ने कहा, विकास दुबे पर 65 एफआईआर दर्ज थी। वह पैरोल पर बाहर था। इस पर सीजेआई भड़क गए। उन्होंने कहा, हमको मत बताइए कि विकास दुबे क्या था। उसपर इतने केस दर्ज थे, फिर भी वह जेल से बाहर था। यह सिस्टम का फेल्योर है।
कोर्ट ने कहा, इससे सिर्फ एक घटना दांव पर नहीं है, बल्कि पूरा सिस्टम दांव पर है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय पारिख ने कहा, मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के मीडिया में आए बयानों से भी लगता है कि एनकाउंटर स्वाभाविक नहीं था। इस पर सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल से कहा, मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बयानों को भी देखा जाए। अगर उन्होंने कोई ऐसा बयान दिया है और उसके बाद कुछ हुआ है तो इस मामले को भी देखना चाहिए।
कोर्ट ने यूपी सरकार को नसीहत भी दी। जज ने कहा, एक राज्य के तौर पर आपको शासन में कानून को बनाए रखना होगा। ऐसा करना आपका कर्तव्य है।
सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने यूपी सरकार के सर्वोच्च अदालत के एक पूर्व जज और एक रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर को जांच समिति में शामिल करने का आदेश दिया है। यानी विकास दुबे एनकाउंटर मामले में उत्तर प्रदेश सरकार जांच कमिटी को दोबारा से गठित करेगी।
सरकार ने कोर्ट को आश्वस्त किया है कि दो दिनों में नई कमिटी की अधिसूचना कोर्ट के सामने पेश की जाएगी। बुधवार को कोर्ट मामले की अगली सुनवाई करेगा।