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चौरी चौरा कांड: जब अंग्रेजों ने सत्याग्रहियों पर बरसा दीं गोलियां, जवाब में मिली 22 सिपाहियों को दर्दनाक मौत
4 फरवरी, 1922 भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक खौफनाक दिन के रूप में याद किया जाता है। इस दिन गुस्साई भारतीय भीड़ ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी में आग लगा दी थी। इस हादसे में उसमें छुपकर बैठे 23 पुलिस कर्मचारी जिंदा जल गए थे। इस घटना को इतिहास में चौरीचौरा के नाम से जाना जाता है। इस घटना से आहत होकर महात्मा गांधी ने गुजरात के बारदौली गुजरात से शुरू किया अपना अहसयोग आंदोलन रद्द कर दिया था। इस घटना के दोषी 19 लोगों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा सुनाई थी। इन्हें शहीद माना गया। उनकी याद में चौरी गांव में एक स्मारक है। बता दें कि चौरी चौरा यूपी के गोरखपुर जिले में एक कस्बा है। यह दो गांवों चौरी और चौरा से मिलकर बना है। चौरी चौरा की घटना को 100 साल पूरे होने पर उसे शताब्दी वर्ष के तौर पर मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये घटना को समर्पित एक डाक टिकट जारी किया। आइए जानते हैं इसकी कहानी...
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जानें क्या है घटना...
चौरी चौरा की घटना को 100 साल हो गए हैं। इसे शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है। केंद्र सरकार ने इसे शताब्दी समारोह के रूप में मनाने का फैसला किया है।
महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार, अंग्रेजी पढ़ाई छोड़ने और चरखा चलाने की अपील की थी। तब देशभर में असयोग आंदोलन चल रहा था। 4 फरवरी, 1922 को चौरी चौरा के भोपा मार्केट में बड़ी संख्या में सत्याग्रही जुटे। वे शांति से मार्च निकाल रहे थे, लेकिन पुलिस ने उसे अवैध घोषित कर रखा था। इसी दौरान एक कांस्टेबल ने गांधी टोपी को अपने पैरों से कुचल दिया। इससे सत्याग्रहियों का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने पुलिस चौकी में आग लगा दी।
फिर क्या हुआ...
पुलिस ने सत्याग्रहियों पर गोलीबारी शुरू कर दी। इस हादसे में 11 सत्याग्रही शहीद हो गए। 50 से ज्यादा घायल हुए। जब पुलिस की गोलियां खत्म हो गईं, तो भीड़ ने उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। पुलिसवाले भागकर पुलिस चौकी में छुप गए। उग्र भीड़ ने दुकानों से मिट्टी का तेल उठाया और पुलिस चौकी फूंक डाली। इस हादसे में थानेदार सहित 23 पुलिसकर्मी मारे गए।
(चौरी चौरा में स्थित शहीद स्मारक)
172 लोगों को दोषी ठहराया गया
इस घटना के लिए ब्रिटिश सरकार की गोरखपुर अदालत ने 9 जनवरी 1923 को 418 पेज का फैसला सुनाया। इसमें 172 लोगों को दोषी मानकर ज्यादातर को फांसी की सजा सुनाई गई। सिर्फ 2 लोगों को 2 साल की सजा दी गई। वहीं, 47 लोगों को बरी कर दिया गया। इस फैसले को गोरखपुर कांग्रेस कमेटी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की पैरवी पंडित मदन मोहन मालवीय ने की। इस तरह 30 अप्रैल 1923 को हाईकोर्ट का फैसला आया। इसके बाद 19 को फांसी, 16 को काला पानी की सजा सुनाई गई। बाकी लोगों को 2 से लेकर 8 साल तक की जेल दी गई। इसमें भी 3 लोगों को दंगा भड़काने के आरोप में 2 साल की सजा सुनाई गई थी। जबकि 38 लोगों को बरी कर दिया गया था।
(गांधीजी के साथ मदनमोहन मालवीय)
गांधीजी का विरोध...
चौरी चौरा की घटना के बाद जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन कैंसल किया, तो क्रांतिकारियों ने उनका विरोध किया। 1922 की गया कांग्रेस में प्रेमकृष्ण खन्ना और उनके साथियों ने रामप्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर गांधी का खूब विरोध किया। उनका मानना था कि पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोली चलाकर गलत किया था।
(असहयोग आंदोलन के दौरान गांधीजी)
पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले देवरिया के संत बाबा राघव दास ने मदन मोहन मालवीय से क्रांतिकारियों की पैरवी करने का अनुरोध किया था। जिले के बरहज कस्बे में देवरिया बाबा का आश्रम है।
(चौरी चौरा रेलवे स्टेशन और शहीद स्मारक)