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- जाते-जाते जिंदादिली सिखा गए मिल्खा सिंह, लेकिन अधूरी रह गई अंतिम इच्छा..कहा था दिल में बस एक ही ख्वाहिश
जाते-जाते जिंदादिली सिखा गए मिल्खा सिंह, लेकिन अधूरी रह गई अंतिम इच्छा..कहा था दिल में बस एक ही ख्वाहिश
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दरअसल, मिल्खा सिंह ने साल 2016 में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि 'वह चाहते हैं कि मेरे जीते जी कोई मेरा रिकॉर्ड तोड़े और भारतीय एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल जीते। ऐसा कोई खिलाड़ी भारत में हो जो मेरी इस आखिरी ख्वाहिश को पूरा करे। फिर एक बार ओलंपिक में तिरंगा लहराए। अब मैं 90 साल का हो चुका हूं, लेकिन मेरी यह अंतिम इच्छा अभी तक पूरी नहीं हुई है। मुझे मेरी जिंदगी बहुत कुछ मिला नाम, पहचान दौलत और सम्मान, लेकिन जो चाहिए था वह अब तक नहीं मिली। इस तरह फ्लाइंग सिख की यह अंतिम इच्छा अधूरी ही रह गई।
मिल्खा सिंह ने बताया था कि मैं जब एथलेटिक्स में गोल्ड पाने के लिए दौड़ता था, मेरे पास जूते नहीं थे और ना ही कोई ट्रैक सूट था। इतना ही नहीं ऐसे कोच भी नहीं थे जो सही सीख देते। कहीं कोई स्टेडियम तक नहीं था। लेकिन मेरे पास जुनून और देश के नाम मेडल जीतने का जज्बा था। शायद इसलिए मैं वह कर पाया जो आज तक कोई नहीं कर सका। मुझे दुख बस इसी बात का है कि कोई दूसरा मिल्खा सिंह क्यों नहीं पैदा हुआ। आज देश में 125 करोड़ से ज्यादा भारत की जनसंख्या पहुंच गई है, लेकिन ऐसा एक भी युवा नहीं जो गोल्ड मेडल एथलेटिक्स में जीते।
वहीं मिल्खा सिंह का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि 18 जून की सुबह उनका अचानक ऑक्सीजन लेवल तेजी से गिरने लगा था जो 70 पर पहुंच गया। ब्लड प्रेशर भी गिर गया। वहीं लंग्स 80 फीसदी डैमेज हो गए थे। ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहे थे। ऐसी हालत में कोई भी एक घंटे से ज्यादा तक नहीं जी सकता था। लेकिन मिल्खा सिंह अंतिम सांस तक जिंदगी की जंड़ते रहे। उन्होंने ऐसी स्थिति में भी करीब 10 घंटे जीवन और मौत की जंग लड़ी।
यह तस्वीर चडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल की है, जब लिफ्ट के जरिए फ्लाइंग सिख के शव को नीचे ले जाते हुए अस्पताल के कर्मचारी। साथ में मिल्खा सिंह के बेटे जीवा मिल्खा जीवा सिंह साथ थे।