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Raksha bandhan 2022: ये हैं रक्षाबंधन से जुड़ी 10 बड़ी बातें, जो सभी के लिए जानना जरूरी है
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पुरातन समय में श्रावणी पूर्णिमा पर ब्राह्मण अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधते थे, बदलते समय के लिए ये परंपरा रक्षाबंधन में बदल गई। ये रक्षा सूत्र मंत्रों द्वारा रक्षित होते थे। ऐसा माना जाता था कि इन अभिमंत्रित रक्षा सूत्र को बांधने से कई तरह की परेशानियां अपने आप ही दूर हो जाती थी।
रक्षाबंधन पर्व पर भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दौरान राखी बांधना अशुभ माना जाता है। किवदंति के अनुसार, शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल के दौरान ही रक्षा सूत्र बांधा था, जिसके चलते एक ही साल के अंदर उसका सर्वनाश हो गया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पहला रक्षा सूत्र देवराज इंद्र की पत्नी शचि ने अपने पति को बांधा था। जिससे उन्होंने असुरों पर विजय प्राप्त की थी। ये रक्षा सूत्र देवताओं के गुरु बृहस्पति ने तैयार किया था। तभी से रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा शुरू हुई।
ज्योतिषियों के अनुसार 11 अगस्त को दिन भर भद्रा काल रहेगा, जो रात 08.30 तक रहेगा। इसके बाद रक्षाबंधन पर्व मनाया जा सकता है। हालांकि कुछ विद्वानों का कहना है कि भद्रा पाताल में होने से इसका प्रभाव नहीं माना जाएगा। इस विषय में अपने गुरु का मार्गदर्शन लेकर ही निर्णय लें।
जब भगवान विष्णु वचनबद्ध होकर राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। तब देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया और उपहार स्वरूप उनसे अपने पति यानी भगवान विष्णु को मांग लिया। ये भी रक्षाबंधन से जुड़ी एक प्रचलित कथा है।
ज्योतिष शास्त्र के कारण भद्रा शनिदेव की बहन हैं। पैदा होते ही ये संसार को खाने के लिए दौड़ी, ये देखकर देवता भी डर गए। तब ब्रह्मदेव ने उनके लिए एक समय निश्चित कर दिया। इसलिए भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। ऐसा करने से कुछ न कुछ अशुभ होने का भय बना रहता है।
11 अगस्त को पूर्णिमा तिथि, श्रवण नक्षत्र के साथ ही गुरुवार का शुभ संयोग बन रहा है। ये योग खरीदारी के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। इस दिन खरीदी गई चीजें लंबे समय तक फायदा पहुंचाती हैं। इस दिन बिजनेस से जुड़े काम भी कर सकते हैं।
ज्योतिषियों के अनुसार, 11 अगस्त को रक्षाबंधन पर्व पर आयुष्मान, सौभाग्य और ध्वज नाम के शुभ योग रहेंगे, इनके अलावा शंख, हंस और सत्कीर्ति नाम के राजयोग भी इस दिन बन रहे हैं। इतने सारे शुभ योग में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाएगा।
ज्योतिषियों के अनुसार, इस समय गुरु और शनि दोनों अपनी-अपनी राशियों क्रमश: मीन और मकर में वक्री स्थिति में है। ऐसा योग करीब 200 साल बाद बना है। इसके अलावा इस दिन मंगल वृषभ राशि में, शुक्र कर्क राशि में, बुध सिंह राशि में, सूर्य कर्क राशि में, राहु मेष राशि में और केतु तुला राशि में रहेंगे।
रक्षाबंधन पर्व श्रावण मास के अंतिम दिन यानी पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। इसके दूसरे दिन से हिंदू पंचांग का छठा महीना भादौ शुरू हो जाता है। पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा का संयोग श्रवण नक्षत्र से होता है, इसलिए इस महीने का नाम श्रावण रखा गया है।
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